योगी आदित्यनाथ। आज श्री अयोध्याधाम में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण का समारोह केवल मंदिर की पूर्णता का उत्सव नहीं, अपितु सनातन भारतीय आस्था, राष्ट्रधर्म और सांस्कृतिक अस्मिता के पुनर्प्रतिष्ठा की उद्घोषणा है। यह अवसर इसलिए भी विशिष्ट है कि वह संकल्प, जो कभी केवल भाव में था, आज वास्तु में बदल चुका है। वह स्थान जिसे लेकर शताब्दियों तक संघर्ष हुआ, वही अब श्रद्धा, गौरव और राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बन चुका है। कोटि-कोटि श्रद्धालुओं की प्रतीक्षा पूर्णता को प्राप्त हुई है और इस तृप्ति में तप, त्याग और सामूहिक संकल्प की सुगंध समाहित है।

विश्व इतिहास में अनेक संघर्ष हुए, साम्राज्य बने और मिटे, परंतु शायद ही कोई भूमि ऐसी हो जिसने इतने वर्षों तक अपने आराध्य के सत्य पर इतने अटल रहकर प्रतीक्षा की हो। श्रीराम जन्मभूमि का संघर्ष केवल न्याय का नहीं था, यह राष्ट्र के आत्मा के पुनरुद्धार का महायज्ञ था। शताब्दियों तक चले इस प्रयास में समाज का कोई वर्ग अछूता नहीं रहा। संन्यासी, संत, पुजारी, नागा, निहंग, राजनेता, चिंतक, विद्वान, साधारण गृहस्थ, वनों और कंदराओं में रहने वाले साधक, सभी ने जाति, पंथ या उपासना पद्धति जैसी सीमाओं से ऊपर उठकर स्वयं को रामकाज में समर्पित किया।

श्रीअयोध्याधाम में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर पर ध्वजारोहण केवल एक मंदिर के निर्माण की पूर्णता नहीं है, वरन सुदीर्घ काल से संचित भाव, प्रतीक्षा, संघर्ष और श्रद्धा के प्रकाश में परिणत हो रहे हैं। विवाह पंचमी का दिव्य संयोग इसे और पवित्र बनाता है। मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी पर ही प्रभु श्रीराम और माता जानकी का विवाह हुआ था। यह विवाह केवल दांपत्य का नहीं, बल्कि धर्म और प्रकृति की एकात्मता का प्रतीक है। आज उसी तिथि पर ध्वजारोहण परंपरा का निर्वाह ही नहीं, बल्कि यह संदेश भी है कि धर्म का प्रकाश सदा विजयी रहता है और रामराज्य के मूल्य कालजयी हैं। महर्षि वाल्मीकि ने कहा है, ‘रामो विग्रहवान् धर्मः’ अर्थात भगवान राम धर्म के साकार रूप हैं।

ध्वजारोहण समारोह केवल एक दिवस, एक अनुष्ठान या उत्सव का क्षण नहीं है। यह वह ऐतिहासिक संधि-रेखा है जहां सहस्राब्दियों की सांस्कृतिक स्मृति, पांच दशकों का न्याय संघर्ष, संत-परंपरा का तप, करोड़ों श्रद्धालुओं का धैर्य और संपूर्ण राष्ट्र की सामूहिक चेतना एकत्र होकर सत्य की प्रतिष्ठा, धर्म के पुनरोदय और श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण की पूर्णता का उद्घोष कर रही है।

भारत के अमृतकाल के सारथी आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कर-कमलों से पौष माह के शुक्ल पक्ष, द्वादशी, 22 जनवरी 2024 को अभिजित मुहूर्त में संपन्न हुई ‘श्री राम लला’ के बाल विग्रह की भव्य प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत अयोध्या ने विश्व को जिस तरह आकर्षित किया है, वह अभूतपूर्व है। प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत मात्र डेढ़ वर्षों में ही अयोध्या में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं-पर्यटकों की संख्या 40 करोड़ को पार कर चुकी है। होटल और धर्मशालाएं लगातार भरे हैं और स्थानीय आर्थिकी में रोजगार तथा व्यापार के नए अवसर तीव्र गति से बढ़े हैं। अयोध्या आज आस्था और अर्थव्यवस्था दोनों में समदर्शी भाव से दुनिया को आकर्षित कर रही है। जो लोग केवल तीर्थ आते थे, आज वे संस्कृति, स्थापत्य, अध्यात्म, पर्यटन और विरासत के विशाल संसार को देखने आ रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी ने अयोध्याधाम को त्रेतायुगीन वैभव के अनुरूप भव्य बनाने की परिकल्पना की। उनके मार्गदर्शन में इस अवधि में अयोध्या दिव्य भी बनी है, भव्य भी और नव्य भी। सड़कें, घाट, पाथवे, सुरक्षा तंत्र और सार्वजनिक सुविधाएं विकसित हुई हैं। महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, रामपथ, धर्मपथ, भक्ति पथ, जन्मभूमि पथ और सरयू तट का पुनरुद्धार इस परिवर्तन की आधार-धुरी बन चुके हैं। लगभग 50 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं अयोध्या को नया स्वरूप दे रही हैं। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण परियोजना ने भी इतिहास रचा है। यह विश्व की पहली धार्मिक परियोजना है, जिसने ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल का स्वार्ड आफ आनर तथा भारत की नेशनल सेफ्टी काउंसिल का सर्वोच्च सुरक्षा पुरस्कार प्राप्त किया है।

यह दर्शाता है कि निर्माण न केवल आस्था से, बल्कि वैश्विक इंजीनियरिंग और सुरक्षा मानकों के अनुरूप भी किया गया है। समूचा परिसर 2.7 एकड़ क्षेत्र में विकसित है, जिसमें लगभग 57,400 वर्गफुट का भव्य निर्मित क्षेत्र है। 360 फुट लंबे, 235 फीट चौड़े और 161 फुट ऊंचे इस त्रि-तल मंदिर में 20 फुट ऊंचे प्रत्येक तल, कुल 366 स्तंभ, 5 मंडप, 12 भव्य द्वार और सूक्ष्म शिल्प वाली विशिष्ट नागर शैली की वास्तुकला इसकी अद्वितीय भव्यता का प्रमाण हैं। भूतल पर बालकराम के दर्शन हो रहे हैं और प्रथम तल पर भव्य-दिव्य श्रीरामदरबार दर्शन की आकांक्षा पूरी हो रही है। परकोटा अंतर्गत शेषावतार मंदिर, संत तुलसीदास मंदिर, जटायु और गिलहरी की प्रतिमा तथा सप्त मंडप में महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि वाल्मीकि, अगस्त्य मुनि, निषादराज, माता शबरी और माता अहिल्या की प्रतिमा स्थापित है।

जब दिव्य शिखर पर भगवा ध्वज लहराएगा, तब वह किसी विजय का संकेत नहीं होगा। वह तो त्याग, तप, संघर्ष, धैर्य, करुणा और सत्य की उस अखंड साधना का प्रतीक होगा, जिसे करोड़ों लोगों ने पीढ़ियों तक जिया और सुरक्षित रखा। ध्वज यही संदेश देगा कि भारत अपने मूल्यों पर दृढ़ है और इन्हीं आधारों पर भविष्य का निर्माण कर रहा है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर केवल शिलाओं का समूह नहीं है। यह अश्रुओं का इतिहास है, संतों की साधना है, समाज का समर्पण है और उस राष्ट्र का जीवंत स्वरूप है, जिसने सत्य को कभी छोड़ा नहीं। यह मंदिर केवल श्रद्धा का केंद्र नहीं, बल्कि जीवन पथ का दीपस्तंभ है, जो आने वाले युगों को बताता रहेगा कि धर्म केवल पूजा की विधि नहीं, बल्कि आचरण की दृष्टि और समाज का आधार है। प्रभु श्रीराम से यही कामना है कि वे हर हृदय में मूल्य बनकर बसें और उनकी करुणा, मर्यादा और धर्मबुद्धि हमारे जीवन को सतत आलोकित करती रहे।

जय-जय श्री सीताराम!
(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)