जागरण संपादकीय: एसआईआर विरोधी स्वर, काम सही तरह होना कहीं अधिक आवश्यक
बंगाल में एक बीएलओ की आत्महत्या के मामले में यह सामने आया कि उसने आवश्यक जानकारी तो जुटा ली थी, लेकिन स्पष्ट निर्देशों के अभाव में उसे अपलोड नहीं किया था। चुनाव आयोग को यह देखना होगा कि बीएलओ की छोटी-बड़ी सभी समस्याओं का समाधान हो और वे सही निर्देशों के अभाव या तकनीकी बाधा के चलते तनाव का शिकार न होने पाएं।
HighLights
चुनाव आयोग ने बीएलओ आत्महत्याओं पर रिपोर्ट मांगी
विपक्षी दलों द्वारा एसआईआर का विरोध
बीएलओ की समस्याओं का समाधान आवश्यक
यह अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) की प्रक्रिया में शामिल बूथ स्तर के अधिकारियों अर्थात बीएलओ की आत्महत्याओं की खबरों का संज्ञान लिया और संबंधित राज्यों से रिपोर्ट मांगी। राज्य निर्वाचन अधिकारियों को सबसे पहले तो इन खबरों की तह तक जाना होगा, ताकि पता लग सके कि उन्होंने काम के दबाव में आकर अपनी जान दी या फिर वे स्वाभाविक मृत्यु का शिकार बने।
यह स्पष्टता हासिल करना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि कई विपक्षी नेता और विशेष रूप से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह माहौल बना रही हैं कि एसआइआर के चलते बड़ी संख्या में बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं। कुछ विपक्षी नेता इसी बहाने एसआइआर को अनावश्यक बताते हुए उसे वोट चोरी की संज्ञा दे रहे हैं।
चुनाव आयोग को एसआइआर को लेकर बनाए जा रहे इस नकारात्मक अभियान से सतर्क रहना होगा। यह ठीक नहीं कि विपक्षी दल मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का भी उल्लेख करें और एसआइआर के खिलाफ भी खड़े होना पसंद करें।
यह सही है कि एसआइआर अपेक्षाकृत एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे कराया ही न जाए। इस प्रक्रिया में सबसे महती भूमिका बीएलओ की होती है। उन्हें घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करना होता है। यह देखने में आया है कि बीएलओ बनने वाले कई कर्मचारी इस काम को एक बोझ की तरह लेते हैं। उनकी पहली कोशिश बीएलओ बनने से बचने की होती है। यह ठीक नहीं।
यह तो कुछ वैसे ही है, जैसे सैनिक मोर्चे पर जाने से मना करें। यदि हर कोई एसआइआर करने से बचना चाहेगा तो फिर एक जरूरी काम होगा कैसे? सही ढंग से चुनाव तभी हो सकते हैं, जब मतदाता सूचियां दुरुस्त हों और इसके लिए एसआइआर किया जाना आवश्यक है। अब जब चुनाव आयोग बीएलओ की समस्याओं से परिचित होने के लिए आगे आया है, तब फिर उसे यह खास तौर से देखना होगा कि उनकी परेशानी का कारण प्रशिक्षण का अभाव या फिर किसी तरह की तकनीकी समस्या आड़े आना तो नहीं?
बंगाल में एक बीएलओ की आत्महत्या के मामले में यह सामने आया कि उसने आवश्यक जानकारी तो जुटा ली थी, लेकिन स्पष्ट निर्देशों के अभाव में उसे अपलोड नहीं किया था। चुनाव आयोग को यह देखना होगा कि बीएलओ की छोटी-बड़ी सभी समस्याओं का समाधान हो और वे सही निर्देशों के अभाव या तकनीकी बाधा के चलते तनाव का शिकार न होने पाएं।
हालांकि, चुनाव आयोग ने बीएलओ और अन्य अधिकारियों का मानदेय बढ़ाया है, लेकिन उसे काम के दबाव के पीछे के कारणों की पड़ताल भी करनी होगी। जहां समस्या हो, वहां उसे समयसीमा में ढील देने पर भी विचार करना चाहिए, क्योंकि यह काम सही तरह होना कहीं अधिक आवश्यक है।









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