संजय गुप्त। नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दसवीं बार शपथ ले ली और मंत्रियों के विभागों का बंटवारा भी हो गया, पर यह चर्चा थम नहीं रही कि आखिर राजग ने इतनी प्रचंड जीत कैसे हासिल कर ली। चुनावी जीत कई कारणों पर निर्भर करती है। बिहार में राजग की जीत के भी कई कारण रहे।

एक बड़ा कारण रहा जदयू-भाजपा के साथ उसके अन्य सहयोगी दलों के बीच बेहतर सीट बंटवारा और तालमेल। इसके अलावा एक अन्य प्रमुख कारण है नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में बिहार का पटरी पर आना। इसका संज्ञान इसलिए अधिक लिया गया, क्योंकि इसके पहले लालू-राबड़ी यादव का शासनकाल इस कदर जंगलराज का पर्याय बन गया था कि पिछले चुनावों की तरह इस चुनाव में भी मुद्दा बना और उसने अपना असर भी दिखाया।

विपक्ष यह सब देखने से इन्कार कर रहा है। विपक्षी दल और विशेष रूप से कांग्रेस वोट चोरी का ही राग अलाप रही है। वोट चोरी का आरोप चुनावों के पहले तभी उछाल दिया गया था, जब चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर कराना शुरू ही किया था। विपक्ष ने वोट चोरी का आरोप लगाकर धरना-प्रदर्शन करने के साथ वोटर अधिकार यात्रा तक निकाली, लेकिन चुनाव आते-आते यह कोई मुद्दा ही नहीं रहा।

चुनाव बाद के आंकड़े यह बताते हैं कि कुछ ऐसे क्षेत्र जहां बड़ी संख्या में लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कटे, वहां कहीं राजग जीता तो कहीं विपक्ष। ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया कि राजग को एसआईआर का लाभ मिला। मतदाता सूची से लाखों नाम कट जाने के बाद भी किसी ने यह शिकायत नहीं की कि उसका नाम गलत तरीके से काट दिया गया है। यानी जो नाम कटे, वे सही कटे। यदि ऐसा नहीं होता लोगों ने सड़कों पर उतरकर शिकायत की होती। ऐसे लोगों को सामने लाकर राजनीतिक दल भी शिकायत नहीं कर सके तो इसीलिए कि उन्हें कोई ऐसा मिला ही नहीं।

चुनाव आयोग ने बिहार में कम समय में जिस तरह एसआईआर कराया और उसके उपरांत सफलतापूर्वक चुनाव कराए, इसके लिए उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए, लेकिन विपक्ष उसकी आलोचना करने के साथ नौ राज्यों और तीन केंद्रशासित क्षेत्रों में हो रहे एसआईआर का विरोध कर रहा है। विपक्ष शासित राज्य और विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ दल एसआईआर का कुछ ज्यादा ही विरोध कर रहे हैं।

बंगाल की मुख्यमंत्री ने एसआईआर के विरोध में चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है और उसे अनावश्यक बताया है। वे ऐसा इसके बाद भी कह रही हैं कि बंगाल में रह रहे हजारों बांग्लादेशी वापस अपने देश लौट रहे हैं। यह एसआईआर का ही असर है कि तमाम बांग्लादेशी बांग्लादेश लौटने को आतुर हैं। वे इसीलिए लौट रहे हैं, क्योंकि उन्होंने घुसपैठ की थी। उनके बांग्लादेश लौटने से गृहमंत्री अमित शाह की यह बात सही सिद्ध होती है कि देश में घुसपैठिए रह रहे हैं और वे भारत के ससांधनों का दोहन कर रहे हैं।

भारत जैसे विकासशील देश में अवैध रूप से आ बसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। उन्हें निकालने के लिए अन्य उपाय भी किए जाने चाहिए, क्योंकि यह काम चुनाव आयोग का नहीं कि वह घुसपैठियों के खिलाफ कदम उठाए। बांग्लादेशी घुसपैठिए इसीलिए लौट रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि एसआईआर के चलते उनकी पोल खुल जाएगी।

यह उम्मीद की जाए कि एसआईआर की मौजूदा प्रक्रिया से बंगाल समेत सभी राज्यों में वोटर लिस्ट दुरुस्त होगी। चूंकि इसके पहले वोटर लिस्ट ठीक करने का काम करीब दो दशक पहले हुआ था, इसलिए उसमें तमाम खामियां घर कर गई हैं। वोटर लिस्ट में केवल दोहराव ही नहीं है, उनमें मृतकों और अन्यत्र बस गए लोगों के नाम भी दर्ज हैं। निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए वोटर लिस्ट का सही होना आवश्यक है।

समझना कठिन है कि विपक्षी दलों को वोटर लिस्ट ठीक किए जाने से क्या परेशानी है। वे वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायत भी करते हैं और एसआईआर भी नहीं होने देना चाहते। आखिर एसआईआर पहली बार तो हो नहीं रहा। उसे कराना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआईआर पर रोक लगाने की जरूरत नहीं समझी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एसआईआर को जरूरी बताए जाने के बाद भी विपक्षी दल यह माहौल बना रहे हैं कि इसके जरिये भाजपा चुनाव जीतने के लिए जोड़तोड़ करती है और चुनाव आयोग उसका साथ देता है।

इसी शिकायत के साथ 12 राज्यों में हो रहे एसआईआर के खिलाफ फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। बिहार में निराशाजनक प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस दिल्ली के रामलीला मैदान में जिस तरह एक रैली करने जा रही है, उससे साफ है कि वह इस मुद्दे पर अपने झूठे अभियान को जारी रखेगी। इसके संकेत राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के अन्य नेताओं के चुनाव आयोग के खिलाफ आए बयानों से मिल रहा है।

राहुल गांधी चुनाव आयोग को जिस तरह निशाने पर ले रहे हैं, वह एक संवैधानिक संस्था का अपमान ही है। वे संवैधानिक संस्था को कमजोर करने की कोशिश में खुद के साथ अपने दल को ही कमजोर कर रहे हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट एसआईआर को सही मान रहा है। भले ही विपक्षी नेताओं समेत कुछ कथित लोकतंत्र हितैषी 12 राज्यों में हो रहे एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हों, पर इसमें संदेह है कि वे वहां से इस प्रक्रिया को रुकवा सकेंगे।

विपक्ष यह समझने से इन्कार कर रहा है कि वह झूठे आरोपों के सहारे न तो जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बढ़ा सकता है और न ही भाजपा की राजनीतिक बढ़त को रोक सकता है। बिहार में बड़ी जीत के साथ देश भर में भाजपा के विधायकों की संख्या 1654 हो चुकी है, जो उसके लिए एक रिकार्ड है। आने वाले समय में उसके विधायकों की संख्या में और वृद्धि होना तय है।

यदि विपक्ष को भाजपा की राजनीतिक बढ़त रोकनी है तो उसे अपना नैरेटिव ऐसा बनाना होगा, जिससे वह लोगों का भरोसा जीत सके। यह काम झूठे आरोपों के सहारे नहीं हो सकता। विडंबना यह है कि एसआईआर पर झूठे आरोप का ही सहारा लिया जा रहा है। लोकतंत्र में जैसे सत्ताधारी दल का अत्यधिक सशक्त होना ठीक नहीं, वैसे ही विपक्ष का बहुत कमजोर होना भी शुभ नहीं।