डॉ. विशेष गुप्ता। दिल्ली में लाल किले के पास धमाके के बाद से फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी संदेह के घेरे में है। उसे आतंकियों के अड्डे के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली बम धमाके का मुख्य आरोपित डा. उमर नबी और उसके कुछ साथी इसी यूनिवर्सिटी में चिकित्सक के रुप में कार्यरत थे। इस यूनिवर्सिटी में कार्यरत कई और डाक्टर एवं कर्मचारी जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। जांच एजेंसियां यह जानने का प्रयास कर रही हैं कि अल फलाह यूनिवर्सिटी व्हाइट कालर टेरर माड्यूल वालों का ठिकाना कैसे बन गई? प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को इस शिक्षा संस्थान में 415 करोड़ रुपयों की वित्तीय अनियमितता भी मिली है।

ईडी का आरोप है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी ने राष्ट्रीय मूल्याकंन प्रत्यायन परिषद (नैक) एवं यूजीसी की धारा 12(बी) के तहत मान्यता एवं सरकारी अनुदान मिलने की बात को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। जांच बताती है कि अल फलाह स्कूल आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी की नैक मान्यता 2013 से 2018 तक ही थी तथा शिक्षा विभाग की मान्यता 2011 से 2015 तक ही ‘ए’ ग्रेड रही।

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने नवीनीकरण कराए बिना ही अपने प्रपत्रों में ‘ए’ ग्रेड होने का दावा करते हुए छात्रों से करोड़ों की फीस वसूली। यह भी सामने आया है कि इस यूनिवर्सिटी ने वित्तीय वर्ष 2018 से 2025 तक 415.10 करोड़ रुपयों का शैक्षिक राजस्व अर्जित किया। 2018 के बाद इस यूनिवर्सिटी के राजस्व में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई। 2018-19 में जहां इसका वार्षिक राजस्व केवल 24.1 करोड़ था, वहीं 2024-25 में बढ़कर 81.10 करोड़ तक पहुंच गया। इसके अलावा इस यूनिवर्सिटी की हास्टल और मेस फीस को लेकर भी अनियमितताएं सामने आई हैं।

अल फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना 2014 में हरियाणा विधानसभा के अधिनियम 21 के तहत की गई थी। इसे यूजीसी द्वारा एक्ट 1956 की धारा 2 (एफ) के तहत मान्यता मिली। यह यूनिवर्सिटी एसोसिएशन आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआइयू) की भी सदस्य बनी। इसमें यूजी और पीजी के साथ-साथ पीएचडी स्तर के पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाने लगे। यह चिंता की बात है कि जिस उच्च शिक्षण संस्थान पर देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए श्रेष्ठ मानव संसाधन तैयार करने का उत्तरदायित्व था, वह सफेदपोश आतंकी माड्यूल की शरणस्थली बन गया। अल फलाह मामले ने इस जैसे अन्य शिक्षा संस्थानों की गहन जांच की आवश्यकता रेखांकित कर दी है।

यह स्वाभाविक ही है कि उच्च शिक्षा संस्थाओं को मान्यता देने और उनकी निगरानी करने वाली नियामक संस्थाओं पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस सच को कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में आतंकी माड्यूल का पनपना यूजीसी, एआइसीटीई और एनसीटीई जैसी नियामक संस्थाओं की उदासीनता को बयान करता है। अल फलाह का मामला यह भी बताता है कि नियामक संस्थाओं के पास कोई ठोस एवं प्रभावी निगरानी तंत्र नहीं है। यदि निगरानी तंत्र सही तरह काम कर रहा होता तो शायद अल फलाह यूनिवर्सिटी आतंकियों का अड्डा नहीं बनती और न ही वहां इतनी अधिक अनियमितताएं मिलतीं।

एक आंकड़े के अनुसार देश में 1191 विश्वविद्यालय हैं। इनमें निजी विश्वविद्यालय 502, राज्य विश्वविद्यालय 494, केंद्रीय विश्वविद्यालय 57 तथा डीम्ड विश्वविद्यालयों 138 हैं। निजी विश्वविद्यालयों की संख्या तेजी से बढ़ती ही जा रही है। साफ है कि उनकी निगरानी का काम और अधिक गहन तरीके से होना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि इंटरपोल और रैंड कारपोरेशन की नवीनतम टेरर विहेवियर इंटेलिजेंस रिपोर्ट से यह सामने आया है कि आतंकवाद एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है। अब मोबाइल फोन, लैपटाप इत्यादि के जरिये भी कट्टरपंथ का प्रसार हो रहा है। अल फलाह यूनिवर्सिटी में जिस तरह डाक्टर आतंक की राह पर चलते पाए गए, उससे साफ है कि उच्च शिक्षा प्राप्त और तकनीक में दक्ष युवा आतंकी बन सकते हैं। अल फलाह यूनिवर्सिटी में सफेदपोश माड्यूल के पकड़ में आने के बाद खुफिया एजेंसियों को अन्य शिक्षा संस्थानों की गतिविधियों को लेकर भी सतर्क रहना होगा।

हाल में सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली दंगों से जुड़ी सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल एसवी राजू ने लाल किले के निकट विस्फोट से जुड़ी घटना की चर्चा करते हुए दलील दी कि जब बुद्धिजीवी आतंकी बन जाते हैं तो वे कहीं ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। उच्च शिक्षित छात्रों को कट्टरपंथी बनाने से जुड़े इकोसिस्टम के उजागर होने से देश के समक्ष एक नया खतरा उत्पन्न होने के संकेत मिल रहे हैं। यह पहला मौका है जब यूजीसी से मान्यता प्राप्त एक शिक्षा संस्थान सफेदपोश आतंकी माड्यूल को संचालित करता पाया गया। एजेंसियों को संदेह है कि यह माड्यूल कश्मीर के अस्पतालों को जहरीले हथियार छिपाने के ठिकाने के रूप में प्रयोग करने का इरादा रखता था।

हम इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकते कि यूजीसी, एआइसीटीई और एनसीटीई जैसी नियामक संस्थाओं के होते हुए भी अक्सर फर्जी विश्वविद्यालयों द्वारा डिग्री देने के मामले सामने आते रहते हैं। यूजीसी हर साल ऐसे फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करता है। उनमें से कुछ बंद भी किए जाते हैं। फिर भी देश में आज 22 फर्जी विश्वविद्यालय संचालित हैं। इनमें 10 तो अकेले दिल्ली में ही संचालित हैं।

(लेखक पूर्व प्रोफेसर एवं प्राचार्य हैं)