बिना तैयारी लागू हुए फैसले से बढ़ी जनता की परेशानी, अक्षम नजर आया डीजीसीए
बिना तैयारी के लागू किए गए नियमों के कारण इंडिगो की उड़ानें रद्द होने से यात्रियों को परेशानी हुई। डीजीसीए को पायलटों के आराम और लैंडिंग लिमिट से जुड़े अपने फैसले को वापस लेना पड़ा। सवाल यह है कि इंडिगो नए नियमों का पालन करने में क्यों विफल रही, जबकि अन्य एयरलाइंस सक्षम थीं। इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
HighLights
इंडिगो की उड़ानें रद्द, यात्री परेशान
डीजीसीए का फैसला वापस
नियमों का पालन क्यों नहीं?
कोई सही निर्णय पूरी तैयारी के साथ लागू न किया जाए तो उसके कैसे बुरे नतीजे सामने आते हैं, इसका ही उदाहरण है पिछले कई दिनों से घरेलू विमान सेवा में सबसे अधिक हिस्सेदारी वाली एयरलाइन इंडिगो की सैकड़ों उड़ानों का रद होना और उसके चलते बड़ी संख्या में यात्रियों का परेशान होना।
विमान यात्रियों की परेशानी को देखते हुए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानी डीजीसीए को मजबूरी में अपना वह निर्णय वापस लेना पड़ा, जो सुरक्षित हवाई यात्रा के लिए आवश्यक था। इस निर्णय के तहत एक तो पायलटों के लिए साप्ताहिक आराम का समय 36 घंटे से बढ़ाकर 48 घंटे किया गया था और दूसरे रात की लैंडिंग की लिमिट छह से घटाकर दो कर दी गई थी।
चूंकि यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप था, इसलिए डीजीसीए को अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि सभी एयरलाइंस उसका पालन करने के लिए तैयार रहें। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि डीजीसीए ने इसकी निगरानी नहीं की कि इंडिगो ने नए नियमों का पालन करने के लिए आवश्यक तैयारी कर रखी है या नहीं?
आखिर डीजीसीए को यह क्यों नहीं देखना चाहिए था कि नए नियम लागू होने की स्थिति में इंडिगो के पास अपनी उड़ानों को संचालित करने के लिए पर्याप्त संख्या में पायलट होंगे या नहीं? या तो डीजीसीए ने यह देखने की जहमत नहीं उठाई या फिर इंडिगो प्रबंधन ने उसे अंधेरे में रखा। वस्तुस्थिति जो भी हो, एक प्रमुख नियामक संस्था का असहाय और अक्षम नजर आना कोई शुभ संकेत नहीं।
हवाई यात्रियों के समक्ष जो संकट पैदा हुआ, उससे डीजीसीए के साथ-साथ नागरिक उड्डयन मंत्रालय की दक्षता और सजगता पर गंभीर सवाल उठे हैं। आवश्यक केवल यह नहीं कि इन सवालों के जवाब दिए जाएं, बल्कि जो अप्रिय स्थिति बनी, उसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह भी ठहराया जाए।
इस सिलसिले में इसकी पड़ताल करनी होगी कि यदि अन्य एयरलाइंस डीजीसीए के नए नियमों का पालन करने में सक्षम रहीं तो फिर इंडिगो ऐसा क्यों नहीं कर सकी? कहीं इसलिए तो नहीं कि उसका ऐसा करने का इरादा ही नहीं था? उससे पूछा जाना चाहिए कि नए नियमों का पालन करने के लिए उसने अतिरिक्त पायलट क्यों नहीं भर्ती किए? आखिर ऐसा भी नहीं है कि नए नियम रातोंरात लागू किए गए हों।
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विमान यात्रियों को हुई असुविधा के लिए इंडिगो प्रबंधन ने खेद जता दिया, क्योंकि उसने एक तरह से जानबूझकर लोगों को परेशान किया। यदि डीजीसीए को अपना फैसला पलटना पड़ा तो उन परिस्थितियों के कारण ही जो इंडिगो ने एक तरह से जानबूझकर पैदा कीं। आखिर इससे बुरी बात और क्या हो सकती है कि कोई कंपनी नियामक संस्था को ही दबाव में लेने में सक्षम हो जाए?













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