जैसी आशंका थी, वैसा ही हुआ। दीवाली के अगले दिन दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई शहरों में वायु प्रदूषण में वृद्धि देखने को मिली। इनमें मुंबई और कोलकाता भी हैं। इसका अर्थ है कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली-एनसीआर की ही समस्या नहीं और ग्रीन पटाखे प्रदूषण रोकने में उतने सहायक नहीं, जितने माने जा रहे। यह सहज ही समझा जा सकता है कि दीवाली के अगले दिन दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यह रहा कि ग्रीन पटाखों की आड़ में सामान्य पटाखे भी छोड़े गए।

वे दीवाली के अगले दिन भी छोड़े गए। शायद इसलिए और भी, क्योंकि इस बार दीवाली किस दिन मने, इसे लेकर दो राय थी। ग्रीन पटाखों के बारे में यह धारणा है कि वे अपेक्षाकृत पर्यावरण के अनुकूल हैं, लेकिन क्या राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान अर्थात नीरी यह सुनिश्चित करने में समर्थ है कि ग्रीन पटाखे उसके मानकों के हिसाब से ही बनते हैं? प्रश्न यह भी है कि क्या सरकारी तंत्र इसकी निगरानी करने में सक्षम है कि ग्रीन पटाखों की आड़ में सामान्य पटाखे न बिकने पाएं?

यह सही है कि वायु प्रदूषण का एकमात्र कारण पटाखे नहीं हैं, पर इसमें संदेह नहीं कि वे उसकी वृद्धि में सहायक बनते हैं। इससे लोग भी परिचित हैं, लेकिन दीवाली पर पटाखों के उपयोग को लेकर जैसे संयम का परिचय दिया जाना चाहिए, वह कम ही देखने को मिलता है। दीवाली पर पटाखों के उपयोग ने एक परंपरा का रूप ले लिया है, लेकिन समय की मांग है कि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए उनके सीमित इस्तेमाल को लेकर सचेत हुआ जाए।

इसी के साथ इसकी भी व्यवस्था की जाए कि देश भर में केवल ग्रीन पटाखे ही बनें और बिकें। इस पर भी विचार किया जा सकता है कि क्यों न पटाखों का उपयोग ऐसे मौसम में किसी अन्य पर्व पर किया जाए, जब वे प्रदूषण फैलाने-बढ़ाने का माध्यम न बनें। निःसंदेह ऐसा तब होगा, जब राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के अग्रणी लोग इसके लिए एकजुट होकर आगे आएंगे। ध्यान रहे स्वास्थ्य है तो सब कुछ है।

चूंकि दीवाली बाद का वायु प्रदूषण सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है, इसलिए पराली दहन, धूल, वाहन उत्सर्जन जैसे कारणों के निवारण को लेकर भी सख्ती का परिचय दिया जाए। इसलिए और भी, क्योंकि अब वायु प्रदूषण केवल दिल्ली-एनसीआर की समस्या नहीं।

यह देश के एक बड़े हिस्से की समस्या बन गया है और अब तक का अनुभव यही बताता है कि इस समस्या से पार पाने के प्रयास अपर्याप्त ही साबित होते हैं और वे भी तब, जब केंद्र और राज्य सरकारों समेत सुप्रीम कोर्ट भी उसकी रोकथाम के लिए सक्रिय होता है। इस सबके बाद भी सर्दियों में वायु प्रदूषण का सिर उठा लेना सामूहिक विफलता को ही बयान करता है।