आरके विज। माओवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षा बलों को हाल में कुछ बड़ी सफलताएं मिली हैं। इनमें महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादियों की केंद्रीय कमेटी एवं पोलित ब्यूरो के सदस्य वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू का दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सदस्यों सहित 60 माओवादियों का आटोमेटिक हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कई अर्थों में महत्वपूर्ण था। इनमें से कई जोन एवं डिवीजन स्तर के और कई तकनीकी शाखा के सदस्य थे, जो हथियारों के निर्माण से लेकर उनकी मरम्मत का काम संभालते थे।

भूपति दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सचिव रहा है और आत्मसमर्पण से पहले सेंट्रल रीजनल ब्यूरो का सचिव था। भूपति ने शांति वार्ता की पेशकश की थी, परंतु पार्टी के एकमत न होने से बात आगे नहीं बढ़ पाई। भूपति का आत्मसमर्पण माओवादियों के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। जब भूपति ने सशस्त्र संघर्ष को रोकने की बात कही तो उत्तर-बस्तर डिवीजन, माड डिवीजन और गढ़चिरौली डिवीजन के माओवादियों ने उसका समर्थन किया।

इसके बाद दंडकारण्य के माओवादी रूपेश उर्फ कोपा उर्फ सतीश, भास्कर उर्फ राजमन मडावी, माड की सचिव रनीता, पूर्व-बस्तर की सचिव निर्मला सहित 210 साथियों ने 17 अक्टूबर को जगदलपुर में आटोमेटिक हथियारों के साथ पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। यह देश में अभी तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। वहीं, 2025 में अब तक 312 माओवादी मुठभेड़ में मारे गए तो 1,600 से अधिक आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

माओवादियों के सोच में यह बदलाव अचानक नहीं आया। अगस्त 2024 में माओवादियों के पोलित ब्यूरो ने पार्टी को बचाने के लिए सुरक्षात्मक तरीके अपनाने का निर्णय लिया था। सभी बड़े दलों और कंपनियों को छोटे टुकड़ों में बांटकर सुरक्षा बलों से बचने के प्रयास माओवादी लगातार कर रहे थे। इसके बावजूद सुरक्षा बलों के अभियानों से वे सिकुड़ते जा रहे थे। मई 2025 में पार्टी महासचिव बसवराजू अपनी मिलिट्री कंपनी के साथ नारायणपुर जिले में हुई मुठभेड़ में मारा गया।

इसके बाद केंद्रीय कमेटी का सदस्य माडेम बालकृष्ण गरियाबंद में और रामचंद्र रेड्डी एवं कोसा भी मारे गए। कई माओवादियों ने विगत दिनों तेलंगाना में आत्मसमर्पण किया। इनमें पूर्व माओवादी किशन जी की पत्नी पद्मावती उर्फ सुजाता, चंदू, विकास आदि शामिल हैं। लगातार नए सुरक्षा कैंप स्थापित कर पुलिस को आगे बढ़ते हुए देखकर माओवादी सरगना समझ चुके हैं कि जो लड़ाई उन्होंने 1980 में दंडकारण्य में शुरू की थी, वह किसी भी हालत में जीत नहीं सकते। इसलिए बेहतर है कि आत्मसमर्पण कर अहिंसा का रास्ता अपनाया जाए। बावजूद इसके, सोनू और रुपेश ने कहा है कि वे आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहेंगे।

बदली हुई स्थिति में सरकार के दो कर्तव्य महत्वपूर्ण हैं। पहला यह कि क्षेत्र का समुचित विकास हो और दूसरे आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों का समुचित पुनर्वास। सरकार को चाहिए कि वह ऐसी समस्त सामाजिक असमानताओं को दूर करने का प्रयास करे, जिन्हें आधार बनाकर माओवादियों ने ग्रामीणों में पैठ बनाई थी। विकास की योजना ‘नियाद नेलानार’ (आपका अच्छा गांव) जैसी योजनाओं का विस्तार केवल सुरक्षा कैंपों की पांच किलोमीटर की परिधि तक सीमित न रखते हुए ऐसे पूरे इलाकों में कर दें, जहां माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

शिक्षा के आश्रम बनाने, स्वास्थ्य सेवा के लिए अस्पताल या डिस्पेंसरी बनाने की योजनाओं को शीघ्र मूर्त रूप देना होगा, क्योंकि आदिवासियों के लिए वनोपज जीवन का एक महत्वपूर्ण साधन है। उनके उचित दाम एवं उनकी प्रोसेसिंग के लिए कुछ योजनाएं लागू करने पर भी विचार करना होगा। सड़कों का निर्माण और मोबाइल टावर्स भी लगाए जाएं। ऐसे विकास कार्यों को क्रियान्वित करने में यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। सरकार यह निगरानी भी करे कि आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों को पुनर्वास नीति का लाभ शीघ्र मिले। उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण देकर रोजगार के साधन उपलब्ध कराने होंगे। यह सब करने के बाद भी उन इलाकों पर सुरक्षा बलों को नजर बनाए रखनी होगी, जहां माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार बसवराजू के मरने के बाद माओवादी अपने नए महासचिव का चुनाव नहीं कर पाए हैं। दंडकारण्य के नए सचिव का भी चुनाव नहीं हुआ है। यही कारण है कि केंद्रीय कमेटी एकजुट होकर कोई निर्णय नहीं ले पा रही है और सभी डिवीजन अपनी-अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर युद्धविराम की घोषणाएं कर रही हैं। हालांकि तेलंगाना स्टेट कमेटी ने युद्ध जारी रखने की बात कही है, परंतु वह न केवल स्वयं कमजोर स्थिति में है, बल्कि उसके बड़े सदस्य भी राज्य से बाहर शरण लिए हुए हैं। पूर्व महासचिव गणपति, केंद्रीय कमेटी सदस्य संग्राम, गणेशन्ना, हेमंत बिसरा आदि की तरफ से भी कोई बयान जारी नहीं हुआ है।

अभी पूरी माओवादी पार्टी नेतृत्वविहीन है तो भारत सरकार अगले वर्ष 31 मार्च तक माओवादियों के उन्मूलन को लेकर प्रतिबद्ध है। गृह मंत्रालय के अनुसार देश में माओवाद प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 11 रह गई है, जिनमें से केवल तीन जिले ही अत्यंत प्रभावित हैं। इन 11 जिलों में से सात छत्तीसगढ़ के हैं। इनमें नारायणपुर और कांकेर में लगभग समस्त माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। गरियाबंद जिले के माओवादियों ने भी आत्मसमर्पण की बात कही है।

कुछ क्षेत्रों को छोड़कर दंडकारण्य के लगभग सभी माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। अब केवल माओवादियों के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख देवजी के अलावा, मिलिट्री बटालियन का प्रमुख माडवी हिड़मा और दंडकारण्य कमेटी के कुछ सदस्य शेष हैं, जो शायद अभी आत्मसमर्पण करने या युद्ध जारी करने को लेकर असमंजस में हैं। संभव है कि वे भी सोनू और रूपेश की तरह परिस्थितियों को देखते हुए जल्द ही मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला करें। अगर ऐसा नहीं होता तो भी माओवादी पार्टी केवल एक औपचारिकता ही बनकर रह जाएगी।

(लेखक छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी हैं)