विचार: राहुल गांधी की नाकाम राजनीति, साख और कांग्रेस का समर्थन दरक रहा
नागरिकता संशोधन कानून किसी की नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि नागरिकता देने से जुड़ा है। इसके बावजूद राहुल गांधी उसके विरोध में अड़ गए कि इसके जरिये संविधान से खिलवाड़ हो रहा है। उनसे सवाल बनता है कि क्या 1958 में केंद्र की सरकार उन शरणार्थियों से वादा करके संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही थी? राहुल गांधी का यह रवैया कुछ और नहीं, बल्कि तुष्टीकरण की पराकाष्ठा ही है। इससे न केवल उनकी साख प्रभावित हो रही है, अपितु कांग्रेस का समर्थन भी दरक रहा है।
HighLights
मनमोहन सरकार में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा
मोदी का भ्रष्टाचार मुक्त भारत का संकल्प
राहुल गांधी पर निराधार आरोप लगाने के आरोप
सुरेंद्र किशोर। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 15 अगस्त, 2011 को लाल किले की प्राचीर से कहा था कि देश की तरक्की में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा है, लेकिन इससे निपटने के लिए उनके पास कोई जादुई छड़ी नहीं है। मनमोहन सरकार में भ्रष्टाचार के एक से बढ़कर एक बड़े मामले सामने आए थे। इनमें 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में घोटाले के मामले सुर्खियों में छाए रहे। इस पर जब उनसे सवाल किया जाता तो वह कहते कि गठबंधन सरकारों की अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं।
केंद्र में जब उनकी सरकार बदली तो भ्रष्टाचार से निपटने का रवैया भी पूरी तरह बदल गया, बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि भ्रष्टाचार पर उनका लचर रवैया भी केंद्र में सत्ता परिवर्तन का एक कारण बना। नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान संभालने के पहले ही कह दिया था कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’ मोदी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने इस संकल्प को बार-बार दोहराया भी। उन्होंने 2016 में कहा कि हमारी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की कोशिश में जुटी हुई है और मैं भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा कर ही दम लूंगा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह कथित राजनीतिक विवशता का रोना न रोते हुए मोदी देश में नई प्रशासनिक संस्कृति की नींव डाल रहे हैं।
मोदी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से परेशान कांग्रेस समेत एक दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि केंद्र सरकार सीबीआइ, ईडी और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। सवाल है कि यदि दुरुपयोग हो रहा है तो अदालतें हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रही हैं? भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार के कोई समझौता न करने वाले रवैये के कारण ही नेहरू-गांधी परिवार को यह अहसास हुआ है कि उन्हें ऐसे मामलों में कोई राहत नहीं मिलने वाली। ध्यान रहे कि नेशनल हेराल्ड से संबंधित मुकदमा सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका के आधार पर मनमोहन सिंह के शासनकाल में ही शुरू हुआ था।
नेहरू-गांधी परिवार ने शायद सोचा होगा कि मोदी सरकार में उन्हें इस मामले में रियायत मिल सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। सोनिया गांधी और राहुल गांधी, दोनों इस केस में जमानत पर हैं। उनका सत्ता में लौटने का सपना भी दूर-दूर तक पूरा होता नहीं दिख रहा। इस निराशा से उपजी कुंठा के कारण ही राहुल गांधी का अपनी वाणी पर कोई संयम नहीं रह गया है। उन्होंने सत्य और असत्य का भेद मिटा दिया है। वे मोदी के खिलाफ धमकी, गाली-गलौज और अत्यंत अशिष्ट शब्दों का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं करते। इसके चलते उन्हें कई मुकदमों का भी सामना करना पड़ रहा है, लेकिन लगता है कि उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं।
उन्हें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ रहा कि उनके ऐसे रवैये से राजनीतिक विमर्श का स्तर रसातल में ही क्यों न चला जाए या संसद की गरिमा तार-तार हो जाए। अपने बड़बोलेपन में उन्हें यह भी अहसास नहीं रहता कि वे क्या कह रहे हैं। कभी वे भारतीय राज्य पर सवाल उठाते हैं कि भारत राष्ट्र न होकर महज राज्यों का एक संघ है तो कभी कहते हैं कि उनकी लड़ाई सिर्फ भाजपा-आरएसएस से ही नहीं, बल्कि इंडियन स्टेट यानी भारतीय राज्यव्यवस्था से है। इसी से राहुल गांधी की मानसिकता को समझा जा सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर निराधार आरोप लगाए। जब आयोग ने राहुल से कहा कि वे अपने आरोपों के पक्ष में शपथपत्र दें तो राहुल उसके लिए राजी नहीं हुए। इसी से संकेत मिला कि उनके आरोपों में कितना दम था। महात्मा गांधी ने एक समय ‘सत्य के साथ प्रयोग’ किए थे, लेकिन लगता है कि राहुल गांधी ने असत्य को ही अपनी प्रयोगशाला बना लिया है। जब उनके आरोप नहीं टिकते तो वे तुरंत नया राग छेड़ने लगते हैं। जब आयोग और चुनावी प्रक्रिया पर निशाना साधने से बात नहीं बनी तो वे कहने लगे कि जदयू-भाजपा की सरकार ने बिहार को बर्बाद कर दिया।
ऐसा आरोप मढ़ते हुए राहुल भूल गए कि बिहार में लालू प्रसाद यादव के कुख्यात जंगलराज का हिस्सा उनकी पार्टी कांग्रेस भी रही है। लालू सरकार में बिहार की जो प्रति व्यक्ति आय आठ हजार रुपये थी, वह नीतीश राज में बढ़कर 68 हजार रुपये हो गई है। वस्तुत: कुछ भी कह देना और उसके पक्ष में कोई साक्ष्य न देना राहुल गांधी की शैली बन गई है। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी उन्होंने श्रीनगर में कहा था कि ‘देश में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। उनका यौन शोषण हो रहा है, लेकिन पुलिस उन्हें न्याय नहीं दिला पर रही है।’ इन आरोपों के बारे में जानकारी लेने के लिए पुलिस राहुल गांधी के आवास पर तीन बार गई, मगर वे कोई ठोस जवाब और साक्ष्य नहीं दे सके।
नीतिगत मामलों पर भी राहुल गांधी अपरिपक्वता का परिचय देते रहते हैं। मोदी सरकार ने 2019 में जब नागरिकता संशोधन कानून की दिशा में कदम बढ़ाए तो अतिवादी तत्वों के दबाव में राहुल गांधी उसके विरोध में जुट गए। जबकि वास्तविकता यही है कि 1958 और 2003 में खुद कांग्रेस सरकार ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आस्था के कारण प्रताड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का वादा किया था। मोदी सरकार 2019 में उसी वादे की पूर्ति के प्रयास में लगी थी।
नागरिकता संशोधन कानून किसी की नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि नागरिकता देने से जुड़ा है। इसके बावजूद राहुल गांधी उसके विरोध में अड़ गए कि इसके जरिये संविधान से खिलवाड़ हो रहा है। उनसे सवाल बनता है कि क्या 1958 में केंद्र की सरकार उन शरणार्थियों से वादा करके संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही थी? राहुल गांधी का यह रवैया कुछ और नहीं, बल्कि तुष्टीकरण की पराकाष्ठा ही है। इससे न केवल उनकी साख प्रभावित हो रही है, अपितु कांग्रेस का समर्थन भी दरक रहा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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