चुनाव प्रचार के समय जब इसकी चर्चा होती है कि प्रमुख दलों के नेताओं की गतिविधियां क्या हैं और वे अपनी चुनावी सभाओं में क्या कह रहे हैं, तब बिहार में महागठबंधन और विशेष रूप से उसके एक प्रमुख घटक कांग्रेस के बीच यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर राहुल गांधी प्रचार के लिए आने में देरी क्यों कर रहे हैं? राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा के नाम पर बिहार में जोरशोर से चुनाव प्रचार करना शुरू किया था।

उनके तेवरों से यह लग रहा था कि वे बिहार विधानसभा चुनावों को गंभीरता से ले रहे हैं और इन चुनावों के माध्यम से अपने एक प्रमुख गढ़ रहे प्रदेश में पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की तैयारी में हैं, लेकिन पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने एक लंबे समय से बिहार की ओर रुख ही नहीं किया। उनकी पिछली बिहार यात्रा करीब दो महीने पहले हुई थी।

इस बीच प्रधानमंत्री समेत भाजपा के कई प्रमुख नेताओं ने बिहार में भाजपा की चुनावी सभाओं को संबोधित किया और तेजस्वी यादव ने भी अपनी सक्रियता दिखाई, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से राहुल गांधी ने बिहार जाना आवश्यक नहीं समझा। उन्होंने बिहार जाने के बजाय कोलंबिया और पेरू जैसे देशों की यात्रा करना आवश्यक समझा। वे वहां से लौट भी आए, लेकिन बिहार नहीं गए।

यह तो वही बता सकते हैं कि उन्होंने विदेश यात्रा से लौटकर भी बिहार जाना जरूरी क्यों नहीं समझा, लेकिन यदि उनकी अनुपस्थिति को लेकर कांग्रेस के नेता ही अपनी निराशा व्यक्त कर रहे हों तो इसके लिए राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं। राहुल गांधी के ऐसे ही रवैये के कारण प्राय: यह कहा जाता है कि राजनीति उनकी रुचि का विषय नहीं है।

यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने पार्टी के चुनाव प्रचार को लेकर उदासीनता का परिचय दिया हो। वे कुछ और राज्यों में भी ऐसा ही कर चुके हैं। इसी तरह वे जिन मुद्दों को तूल देते हैं उनका परित्याग भी कर देते हैं। एक ऐसे समय जब कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को फिर से हासिल करने के लिए हाथ-पैर मार रही है तब राहुल गांधी का रवैया पार्टी के लिए नुकसानदायक ही है।

वे केवल कांग्रेस की संभावनाओं को ही स्याह करने का काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक न होने का भी संदेश दे रहे हैं। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने में अनावश्यक देर की।

उसने ऐसा तब किया जब वह बिहार में अपने राजनीतिक भविष्य के लिए राष्ट्रीय जनता दल पर ही निर्भर है। समझना कठिन है कि इस निर्भरता के बाद भी उसने समय रहते तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने का फैसला क्यों नहीं किया?