इससे बेहतर और कुछ नहीं कि वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले पर दोनों ही पक्ष संतोष जता रहे हैं। हालांकि अभी अंतिम फैसला आना शेष है, लेकिन दोनों पक्षों को संतुष्ट करने वाले अंतरिम फैसले से एक बड़ा लाभ यह होगा कि वे लोग निःशस्त्र होंगे, जो इस कानून में संशोधन को लेकर आम लोगों को बरगला रहे थे।

इसके नतीजे में एक महत्वपूर्ण कानून पर सस्ती राजनीति पर विराम लगेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोटे तौर पर वक्फ कानून में संशोधन की आवश्यकता को सही ठहराता है। उसने संशोधित कानून के एक प्रविधान पर रोक लगाई और दो प्रविधानों में संशोधन कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम न हों और वक्फ बोर्ड का सीईओ यथासंभव मुस्लिम समुदाय से हो।

उसने गैर-मुस्लिम सीईओ बनने पर रोक नहीं लगाई। उसने उस प्रविधान को भी स्थगित कर दिया, जिसके तहत यह व्यवस्था बनाई गई थी कि जब तक नामित अधिकारी की रिपोर्ट दाखिल नहीं होती, तब तक संपत्ति को वक्फ संपत्ति न माना जाए। इसके साथ ही उसने फिलहाल इस शर्त को भी हटा दिया कि किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना चाहिए।

इस पर कानून के विरोधियों को बहुत आपत्ति थी, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि इसे तब तक के लिए ही हटाया गया है, जब तक इस्लाम के अनुयायी होने को परिभाषित नहीं किया जाता। सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारी को संपत्ति अधिकार तय करने के अधिकार पर रोक लगाकर एक तरह से सरकार को झटका दिया, लेकिन एक तो अभी यह अंतरिम फैसला ही है और दूसरे यह भी ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बाई यूजर वाले प्रविधान पर इस कानून में बदलाव के विरोधियों को राहत नहीं दी।

यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि पुराने कानून के अनुसार यदि कोई संपत्ति लंबे समय से वक्फ द्वारा इस्तेमाल की जा रही है तो जरूरी दस्तावेजों के अभाव में भी उसे वक्फ बोर्ड की माना जा सकता था। नए कानून में इस रियायत को हटा दिया गया है। साफ है कि अब केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि कागज तो नहीं हैं, लेकिन अमुक जमीन इसलिए वक्फ की है, क्योंकि उसका इस्तेमाल इसी रूप में हो रहा था।

सुप्रीम कोर्ट का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि उसे वक्फ संशोधन कानून के सभी प्रविधानों को असंवैधानिक करार देने की कोई आवश्यकता नहीं महसूस हुई। वास्तव में किसी भी कानून को सिरे से खारिज करने का काम नहीं होना चाहिए। कोई भी कानून संपूर्ण नहीं होता। यदि किसी कानून में कोई कमी है तो उसे दूर करना चाहिए, न कि उसे असंवैधानिक करार देकर संसद की सारी मेहनत पर पानी फेरने का काम होना चाहिए।