डॉ. अमिता। पिछले महीने एक बुजुर्ग दंपती की खबर खूब चर्चित हुई। यह घटना थी उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की, जिसमें बेटे-बहू की उपेक्षा और उत्पीड़न से परेशान बुजुर्ग ने नहर में छलांग लगा दी। पति को बचाने के लिए पत्नी भी नहर में कूद गई और नौ किमी तक पति का हाथ थामकर तैरती रही, लेकिन उन्हें बचा नहीं पाई। इस घटना के कुछ ही दिन बाद छत्तीसगढ़ के जशपुर से खबर आई कि एक बेटे ने कुल्हाड़ी से काटकर मां के टुकड़े कर डाले।

एक अन्य खबर के अनुसार उपेक्षा से त्रस्त पिता ने बेटियों के अपमान और लालच से तंग आकर चार करोड़ रुपये की संपत्ति मंदिर को दान दे दी। ऐसी तमाम घटनाएं समाज में आए दिन घटित हो रही हैं। भारतीय समाज में आज भी श्रवण कुमार आदर्श माने जाते हैं। मां-बाप की कामना होती है कि उनका बेटा श्रवण कुमार हो, लेकिन श्रवण कुमार भारतीय परंपरा से अब खत्म से होते दिखते हैं। बुजुर्गों की बदहाल स्थिति और बढ़ते वृद्धा आश्रम इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यह रुझान समय के साथ और बढ़ता ही जा रहा है।

भारत में वृद्धों की सेवा और रक्षा के लिए कई कानून बने हैं। केंद्र सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए 2007 में वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम लागू किया। भारत के रजिस्ट्रार जनरल की तरफ से नमूना पंजीकरण प्रणाली रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रजनन दर घटी है, जिसके कारण 0-14 वर्ष की आबादी घट रही है और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की जनसंख्या 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। केरल सरकार ने इसी बढ़ती आबादी और बुजुर्गों के जीवन की समस्याओं के मद्देनजर वृद्ध आयोग का गठन किया, जो सराहनीय कदम है, लेकिन दुर्भाग्यवश तमाम सुविधाएं, नियम-कानून कागजों में ही ज्यादा सीमित हैं।

पिछले कुछ वर्षों में बुजुर्गों से जुड़े अलग तरह के मामले सामने आए। इनमें ज्यादातर बुजुर्ग विधवा अथवा विधुर थे और अकेले थे। पति या पत्नी का सहारा ऊपर वाले ने छीन लिया था और बच्चों का किस्मत ने। जिस बुढ़ापे के लिए बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया था, उन्होंने ही बुढ़ापे में जीना मुश्किल कर दिया और वह भी थोड़ी सी संपत्ति के लिए। दुर्भाग्यवश ऐसी घटनाओं में बुजुर्ग नियमानुसार मदद मांगने जाते हैं तो उन्हें कोई सहायता नहीं मिलती है। कई मामलों में बुजुर्गों ने सबसे पहले वन स्टाप सेंटर में शिकायत की। वहां अदालत की तर्ज पर तारीखें मिलने लगीं। तारीख पर दोनों पक्षों को बुलाया जाता। थक-हार कर शिकायत मुख्यमंत्री ग्रिवांस सेल, एसडीओ, कलेक्टर, एसपी, डीजीपी, कमिश्नर, मानवाधिकार आयोग, डीएलएसए और हेल्पलाइन नंबर पर की गई। सामाजिक सुरक्षा निदेशालय को भी सूचना भेजी गई, जहां से जिलाधिकारी को कार्रवाई करके रिपोर्ट भेजने का निर्देश मिला, किंतु सब व्यर्थ रहा।

अचंभे की बात यह है कि कई अधिकारियों और पुलिस वालों को भी वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम की जानकारी नहीं होती। एक अधिकारी सिर्फ इतना जानते थे कि 10,000 रुपये भरण-पोषण दिया जाता है। जबकि इसके तहत माता-पिता द्वारा दुर्व्यवहार की शिकायत पर संतानों पर दंड, जुर्माने के साथ संपत्ति से बेदखल करने और हस्तांतरित संपत्ति वापस लेने का भी प्रविधान है, लेकिन इसका शायद ही इस्तेमाल होता है।

शारीरिक और आर्थिक असमर्थता के बीच अधिकारियों और थाने के चक्कर लगा-लगाकर कई बुजुर्ग टूट जाते हैं और अवसाद में जीवनयापन करने लगते हैं। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि ये वही बुजुर्ग हैं, जिनकी कहानियां बच्चों में संस्कारों की नींव रखती थी, जिनकी लोरियां उन्हें सुखद नींद में परियों के देश का भ्रमण कराती थी। माता-पिता जब डांटते, तब दादा-दादी का ही आश्रय होता था। एकल परिवार की संकल्पना ने बच्चों से बुजुर्गों का सहारा छीन लिया और बुजुर्गों से छत।

भागमभाग के बीच संतानें बुजुर्गों को समय नहीं दे पातीं, जिससे उनमें अकेलापन, अवसाद बढ़ रहा है। साथ ही हिंसात्मक घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है। माता-पिता अपनी संतानों के खिलाफ शिकायत नहीं करना चाहते। ऐसा करते भी हैं तो तब तक कोई कार्रवाई नहीं होती, जब तक कोई अनहोनी घटना नहीं घट जाती। प्रशासन का रुख वृद्धों के मनोबल को तोड़ देता है। अंतत: वे वृद्धाश्रम जाने को मजबूर हो जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं।

बुढ़ापे में आर्थिक समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। सरकारी नौकरी वाले तो पेंशन से जी लेते हैं, परंतु वृद्धावस्था पेंशन से गुजारा मुश्किल होता है। अपने देश में वृद्धाश्रम और डे केयर सेंटर भी कम हैं और जो हैं, उनमें से ज्यादातर बदहाल हैं। बुजुर्गों के संरक्षण संबंधी मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। इनका पालन नहीं करने वालों पर कठोर सजा का प्रविधान हो। बुजुर्गों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनें और घर पर सेवा मिले। इसके अलावा, बुजर्गों को वृद्धाश्रम भेजने पर जोर न देकर उनके अधिकारों को संरक्षित करने की पहल हो। इस सबके साथ चेतनाशून्य समाज का जागना भी बहुत जरूरी है।

(लेखिका हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)