सुशील कुमार सिंह। रोजगार की चुनौती से निपटना किसी सरकार के लिए कभी भी आसान नहीं रहा है। रोजगार बढ़ाने को लेकर विश्व भर में हमेशा चिंता प्रकट की जाती रही है। देश में भी मोदी सरकार के सामने रोजगार के मोर्चे पर खरा उतरने की चुनौती है। हालांकि इसके लिए वह तमाम कोशिशें भी कर रही है, लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। गौरतलब है कि स्वरोजगार की दिशा में स्टार्टअप से लेकर मुद्रा योजना को बढ़ावा दिया गया, मगर सूरत फिर भी नहीं बदली है। अब बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रोजगार सृजन के लिए कई उपाय किए हैं जिससे उम्मीदें जगी हैं, परंतु इसमें सौ फीसद सफलता को लेकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।

दरअसल किसी भी देश के विकास की सैद्धांतिक और व्यावहारिक स्थिति को यदि समझना है तो वहां के युवाओं में कौशल और रोजगार की स्थिति को देखना चाहिए। भारत इन दिनों रोजगार के मामले में तेजी से पिछड़ रहा है। गौरतलब है कि बेरोजगारी की दर बीते 45 वर्षो में सबसे अधिक है। आर्थिक सर्वेक्षण यह बताता है कि साल 2011-12 से 2017-18 के बीच 2.62 करोड़ लोगों को नौकरियां मिली हैं जो संगठित क्षेत्र से संबंधित हैं।

यह संख्या मांग की तुलना में काफी कम है। इसकी सूरत बदलने के लिए नीतियों और योजनाओं की सख्त आवश्यकता है। ताजा बजट यह इशारा करता है कि सरकार रोजगार के अवसर बढ़ाने को लेकर कुछ नए प्रयास करेगी। इसके तहत वह स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर निर्मित करने से लेकर युवाओं को प्रशिक्षण देने तथा उन्हें विदेशों में रोजगार हासिल करने के काबिल बनाने का काम करेगी। वह स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली स्टार्टअप कंपनियों को भी कर के मामले में छूट दे रही है ताकि यह क्षेत्र व्यापक बने।

इसके अलावा सरकारी हो या सार्वजनिक क्षेत्र अराजपत्रित कर्मचारियों की नियुक्ति में भी बड़े सुधार की बात बजट में की गई है। अब इसकी परीक्षा का आयोजन ऑनलाइन किया जाएगा और इसके लिए हर जिले में टेस्ट सेंटर होंगे जिसमें 112 जिले प्राथमिकता में रहेंगे जो देश में सबसे पिछड़े हैं। कई पाठ्यक्रमों को रोजगारपरक बनाने की भी बात कही गई है। कुछ कोर्सो को उद्योगों के कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा। जाहिर है इससे युवाओं में कौशल विकास होगा और उनके लिए रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे। हालांकि स्वरोजगार के लिए शुरू की गई सरकार की महत्वाकांक्षी मुद्रा योजना को इस बजट में 500 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं।

इसके ठीक पहले बजट में भी आवंटन का यही आंकड़ा था। रोचक यह है कि सरकार इसी के बल पर 12 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने की बात करती रही है। ऐसे में उचित होता कि बजट में इसके लिए और आवंटन बढ़ाया जाता। वहीं प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम को बजट में 25 सौ करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं जो पिछले बजट की तुलना में 36 करोड़ अधिक हैं। हालांकि इसके लिए भी आवंटन बढ़ाया जा सकता था। इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। ऐसे में स्वरोजगार भी एक विकल्प बन जाता है। साथ ही निजी क्षेत्र में रोजगार की तलाश व्यापक पैमाने पर किया जाना भी लाजमी है।

बजट में इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि युवाओं को विदेश में रोजगार के लिए तैयार किया जाए। चूंकि रोजगार के अपने मानक होते हैं। यदि इसके अनुरूप युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाए और तैयार किया जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके लिए संभावनाएं प्रबल होंगी। वित्त मंत्री ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया है। 2025 तक बेहतर सैलरी वाली चार करोड़ नौकरियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब रोजगार के अवसरों के मुताबिक युवाओं में कौशल विकास होगा। विभिन्न सर्वे कहते हैं कि नवंबर 2019 तक लगभग 70 लाख लोगों को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण दिया गया जो देश में 75 करोड़ से अधिक युवाओं की तुलना में काफी कम है।

ब्रिक्स को विकसित और विकासशील देशों का पुल कहा जाता है। इसमें पांच देश हैं। भारत बेरोजगारी के मामले में दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के बाद आता है। रोजगार के मसले में चीन बेहतर देश है। सरकार 2030 तक साढ़े आठ करोड़ रोजगार चीनी मॉडल पर असेंबलिंग सिस्टम से विकसित करना चाहती है। रिपोर्ट भी बताती है कि 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रमबल वाला देश होगा और इनकी सही खपत के लिए बड़े नियोजन की दरकार होगी। बजट में शिक्षा पर लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई है, जबकि कौशल विकास के लिए तीन हजार करोड़ रुपये की बात की गई है।

देखा जाए तो यह मांग के अनुरूप कम है। देश में रोजगार की संख्या बढ़े इसे लेकर बजट तो बढ़ाने ही पड़ेंगे। साथ ही युवाओं को भी यह समझना होगा कि केवल डिग्री रोजगार का मानक नहीं है। विनिर्माण क्षेत्र को दुरुस्त किए बिना रोजगार नहीं बढ़ पाएगा। पांच टिलियन की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य भी रोजगार सृजन के साथ ही हासिल होगा। सशक्त समाज आर्थिक सुदृढ़ता के बगैर संभव नहीं है। इसके लिए रोजगार जरूरी है। इस बजट में बागवानी, पशुपालन एवं डेयरी, मत्स्य पालन आदि के क्षेत्रों के लिए किए गए प्रावधानों से भी ग्रामीण जगत में रोजगार को बढ़त मिल सकती है।

विश्व बैंक का एक पुराना आंकड़ा है कि यदि भारत में पढ़ी-लिखी सभी महिलाएं कामकाजी हो जाएं और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को वहां के वातावरण के हिसाब से रोजगार के मौके उपलब्ध हो जाएं तो जीडीपी में चार फीसद की बढ़त हो जाएगी। अभी अर्थव्यवस्था सुस्ती का सामना कर रही है। ऐसे में निवेश, मांग और उत्पादन भी कमजोर हालत में हैं। ऐसी स्थिति में रोजगार के अवसर पैदा करने हैं तो इसके लिए संतुलित नीति के साथ धन की व्यवस्था करने सहित अच्छे मन को प्रकट करना ही होगा। उचित है कि मोदी सरकार इस दिशा में कुछ करती नजर आ रही है।

अपेक्षित रूप से रोजगार सृजन कभी आसान नहीं होता। भारत जैसे देश में तो यह चुनौती और विकराल हो जाती है। एक तो युवा आबादी की भरमार और उस पर आर्थिक सुस्ती से सिकुड़ते रोजगार ने इस मोर्चे पर सरकार के लिए दोहरी चुनौती बढ़ा दी है। मोदी सरकार इससे निपटने के लिए तमाम कोशिशें कर तो रही है, लेकिन उसे आवश्यक सफलता नहीं मिल रही। अब बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रोजगार सृजन के लिए कई उपाय किए हैं जिससे उम्मीदें जगी हैं

(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)