लंदन, हर्ष वी पंत। Coronavirus In Wuhan:  वुहान में जिस बीमारी ने दस्तक दी वह अब वैश्विक महामारी बन गई है। भारत में भी इसके तीन नए मामले सामने आए हैं। कोरोना के कहर से चीन में मृतकों की संख्या तकरीबन 2900 का आंकड़ा पार कर चुकी है। वहां करीब 80,000 से अधिक लोग इस वायरस की चपेट में बताए जा रहे हैं। तमाम जहाज समंदर तटों पर जस से तस खड़े हैं, क्योंकि बंदरगाह पर खौफ पसरा हुआ है कि कहीं जहाज से उतरने वाले कोरोना वायरस के वाहक न हों।

हर एक गुजरते दिन के साथ यह वायरस वैश्विक आवाजाही और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सेहत भी बिगाड़ रहा है। इससे चीनी साम्यवादी पार्टी यानी सीपीसी पर दबाव और बढ़ा है। चीन में अब तक दो हजार से अधिक लोगों की जिंदगी कोरोना वायरस की भेंट चढ़ चुकी है। ऐसे हालात में राष्ट्रपति शी चिनफिंग खुद मास्क पहनकर एक अस्पताल में अपनी हालत का परीक्षण कराने के लिए पहुंचे और उन्होंने इस महामारी से निपटने के लिए और ‘निर्णायक’ कदम उठाने का आह्वान किया।

इस बीमारी के शुरुआती चरण में शी एक तरह से परिदृश्य से बाहर ही रहे और इससे निपटने का जिम्मा उन्होंने प्रधानमंत्री ली कछ्यांग को सौंपा हुआ था। हालांकि इस पर हुए जनाक्रोश के बाद शी को हाल में खुद ही कमान संभालनी पड़ी। चूंकि कोरोना का प्रकोप वर्ष 2002-03 के दौरान फैले सार्स से कहीं ज्यादा हो गया है तो यह न केवल आम चीनियों, बल्कि सीपीसी और शी के लिए भी एक बेहद गंभीर खतरे के रूप में उभरा है। तब भी वैश्विक महामारी बन चुके सार्स को लेकर सूचनाएं छिपाने के मामले में चीन को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के कोप का भाजन बनना पड़ा था।

ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं कि कोरोना से निपटने के मामले में चीन सरकार ने अप्रत्याशित रूप से कदम उठाए। इनके तहत हुबेई प्रांत के तमाम शहरों को एक तरह से बंद कर दिया गया। वुहान इसी प्रांत का हिस्सा है। इस सूबे से परिवहन को रोक दिया गया है। सैलानियों की आवाजाही बंद कर दी गई है। करोड़ों लोगों को घर में रहने की हिदायत मिली है। र्बींजग, कर्नंमग, ग्वांगझू और शेनझेन जैसे बड़े शहरों में जनजीवन थम गया है जिसकी तपिश उद्योग-धंधों को झेलनी पड़ रही है। तकरीबन 5.6 करोड़ लोगों को अस्थायी एकांत स्थानों पर रखा गया है।

चीनी सरकार ने ये कदम जरूर उठाए, लेकिन इसमें काफी देर कर दी। इसके कारण चीनी मॉडल की खामियां एक बार फिर उजागर हो गईं। सरकार ने जो कदम उठाए, उनमें पारदर्शिता का भी अभाव था। वुहान के स्थानीय निकाय प्रशासन ने शुरुआत में सूचनाएं बाहर ही नहीं आने दीं। इसके चलते वायरस पर समय रहते अंकुश नहीं लग पाया और एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा की आशंका मजबूत होती गई। इसका ही परिणाम रहा कि चीनी सरकार के खिलाफ जनाक्रोश बेहद तीखा हो चला है। सीपीसी और शी की साख पर सवालिया निशान लगे हैं। जिन सरकारी अधिकारियों ने निहित स्वार्थों और जनता के प्रति अपने कर्तव्यों के ऊपर पार्टी के प्रति वफादारी को वरीयता दी, उनकी इस उद्दंडता ने लोगों को एक बड़े खतरे की ओर धकेल दिया।

शी की पेशानी पर बल डालने वाली इस समय तमाम वजहें हैं। चीन की अर्थव्यवस्था पहले ही सुस्ती की शिकार हो चुकी है तिस पर इस महामारी के कारण उसकी हालत और खराब होगी। ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि इस साल चीन की जीडीपी वृद्धि दर में एक से दो प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है जब कई मोर्चों पर चीन के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं। हांगकांग में हो रहे विरोध-प्रदर्शन को लेकर वह पहले से ही हमले झेल रहा है। ताइवान में भी चीन विरोधी सरकार दोबारा सत्ता में आ गई है। अमेरिका ने भी उस पर शिकंजा कड़ा किया है। चीन के साथ होने वाले व्यापार में 74 अरब डॉलर की कमी दर्शाती है कि चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले कुछ असर दिखाने लगे हैं।

किसी भी तरह के हालात से निपटने के लिए चीन द्वारा त्वरित और नाटकीय फैसले लेने की उसकी क्षमता को उसके ‘अधिनायकवादी लाभ’ के तौर पर रेखांकित किया जाता है। अब कोरोना वायरस से निपटने के लिए भी उसी जांची- परखी तिकड़म का सहारा लिया जा रहा है। असल में कम्युनिस्ट पार्टी की यही परिपाटी रही है कि वह किसी भी समस्या का ठीकरा स्थानीय स्तर पर फोड़ती है और संसाधन जुटाकर यह आभास कराती है कि वह हालात से निपटने में गंभीरता से जुटी है। ताजा मामले में भी यही हुआ। मौतों का आंकड़ा बढ़ने के साथ ही सीपीसी ने त्वरित कदम उठाते हुए कोरोना के केंद्र बने हुबेई प्रांत में कई वरिष्ठ अधिकारियों की छुट्टी कर दी है।

सीपीसी के लिए महत्वपूर्ण है कि वह इस रूप में नजर आए कि कोरोना वायरस जैसी आपदा से निपटने में वह प्रभावी रूप से मुस्तैद है। तानाशाही सरकारों की बुनियाद अमूमन इसी धारणा पर टिकी होती है कि वे सुरक्षा एवं स्थायित्व प्रदान करती हैं। चीन में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए सीपीसी इसी धारणा का सहारा लेती आई है। हालांकि कोरोना वायरस से निपटने में प्रत्यक्ष हुए कुप्रबंधन इस धारणा को मिथ्या ही साबित करता है। साथ ही यह इस बात को भी दर्शाता है कि विपरीत हालात में सीपीसी प्रभावी प्रशासन के मामले में भला कैसे अपनी छवि बचा पाएगी। यह संकट दुनिया को इसी पहलू से परिचित कराता है कि तथाकथित चीनी मॉडल वैसा नहीं है जैसी उसकी खुशनुमा तस्वीर पेश की जाती है। देर-सबेर इस विपदा पर भी काबू पा लिया जाएगा। यह चीन और शी चिर्नंफग की बड़ी सफलता मानी जाएगी। मगर इसके साथ यह भी स्पष्ट होता जाएगा कि सीपीसी और शी को सत्ता में बनाए रखने की आम चीनियों को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

कोरोना संकट दुनिया को सेहत से जुड़ी आपदा के साथ ही इस पहलू से भी परिचित कराता है कि तथाकथित चीनी मॉडल वैसा नहीं है जैसी उसकी खुशनुमा तस्वीर पेश की जाती है। अब देर-सबेर इस विपदा पर भी काबू पा लिया जाएगा। यह चीन और शी चिनफिंग की बड़ी सफलता मानी जाएगी। मगर इसके साथ यह भी स्पष्ट होता जाएगा कि चीनी साम्यवादी पार्टी यानी सीपीसी और शी चिनफिंग को सत्ता में बनाए रखने की आम चीनियों को कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

[प्रोफेसर, किंग्स कॉलेज, लंदन]

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