तमिलनाडु के करूर में अभिनेता से नेता बने जोसफ विजय की रैली में भगदड़ मचने से 40 लोगों की मौत यही बता रही है कि अपने देश में इस तरह की घटनाओं से सबक सीखने से इन्कार किया जा रहा है।

करूर की रैली में महिलाओं, बच्चों समेत 40 लोगों के कुचल कर मारे जाने की घटना की जांच हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश अरुणा जगदीशन को सौंप दी गई है, लेकिन इसके आसार कम ही हैं कि इस भयावह हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाने के साथ उन्हें दंडित भी किया जा सकेगा।

इसकी उम्मीद इसलिए कम है, क्योंकि अपने देश में जनहानि की गंभीर से गंभीर घटनाओं की जांच में लीपापोती ही अधिक होती है। इस मामले में भी ऐसा ही हो और इतने अधिक लोगों की मौतों के लिए किसी को कठघरे में न खड़ा किया जाए तो आश्चर्य नहीं।

चूंकि भगदड़ की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कभी कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती, इसलिए सबक भी नहीं सीखा जाता और रह-रहकर ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं। इस वर्ष यह भगदड़ की सातवीं-आठवीं ऐसी घटना है, जिसमें लोगों की जान गई है।

करूर की घटना में प्रथमदृष्ट्या विजय जिम्मेदार दिख रहे हैं, क्योंकि वे इतनी देर से सभा स्थल पहुंचे कि शाम के सात बज गए। स्पष्ट है कि रैली के आसपास अंधेरा हो गया होगा। यह बात भी सामने आ रही है कि रैली स्थल में कुछ समय के लिए बिजली चली गई थी।

हो सकता है कि यह भगदड़ मचने का एक बड़ा कारण बनी हो। जो भी हो, यह तो स्पष्ट है कि रैली में लोगों की सुरक्षा के लिए न तो विजय के कार्यकर्ताओं ने कोई प्रबंध कर रखे थे और न ही वहां उपस्थित पुलिसकर्मियों ने किसी तरह की सजगता दिखाई। जैसा कि हमेशा होता है, इस बार भी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल निकला है।

विजय और उनके समर्थक कुछ भी कहें, वे अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। इसलिए और नहीं बच सकते, क्योंकि उन्होंने अपनी रैली में आने वाले लोगों की संख्या के बारे में भी कोई सही जानकारी नहीं दी थी। बहुत संभव है कि इसके चलते पुलिस ने भी पर्याप्त व्यवस्था न की हो।

करूर में भगदड़ इसलिए भी मची, क्योंकि बहुत से लोग नेता नहीं अभिनेता विजय को देखने आए थे। अपने देश और विशेष रूप से तमिलनाडु में सेलेब्रिटी स्टेटस वाले लोगों के प्रति दीवानगी कुछ ज्यादा ही है। लोग खिलाड़ियों, फिल्मी सितारों और ऐसी ही अन्य हस्तियों की एक झलक पाने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं।

बेंगलुरु में आरसीबी की जीत के जश्न में भगदड़ इसीलिए मची थी, क्योंकि लोग क्रिकेटरों की एक झलक पाने के लिए आतुर हो गए थे। यह ठीक है कि करूर की घटना पर सभी ने शोक संवेदना व्यक्त की, लेकिन यदि इस घटना से कोई ठोस सबक नहीं सीखा जाता तो इन संवेदनाओं का कोई मूल्य नहीं।