जागरण संपादकीय: रक्षा तैयारी में तेजी, अग्नि-प्राइम मिसाइल दागने का सफल परीक्षण
यह अच्छा है कि भारत निजी कंपनियों के सहयोग से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को तैयार करने में जुट गया है लेकिन वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि चीन छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान का परीक्षण कर चुका है। अब जब भारत आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है तब फिर उसे अपनी जरूरत की रक्षा सामग्री भी खुद बनाने के लिए कमर कसनी चाहिए।
देश में पहली बार ट्रेन से अग्नि-प्राइम मिसाइल दागने का सफल परीक्षण इसका सूचक है कि भारत अपनी रक्षा तैयारियों को लेकर सजग है। अग्नि-प्राइम न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल है और यह दो हजार किमी से अधिक मार कर सकती है और तीन हजार किलोग्राम तक विस्फोटक वहन कर सकती है।
इस मिसाइल को ट्रेन से लांच करने में महारत हासिल करने का मतलब है कि भारत अब कहीं से भी परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें दाग सकता है। ऐसी क्षमता दुनिया के चंद देशों के पास ही है। भारत ने ट्रेन से दागी जाने वाली मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ एक बार फिर अपनी सामरिक और तकनीकी श्रेष्ठता सिद्ध की।
भारत किस तरह रक्षा के हर मोर्चे को मजबूत करने में लगा हुआ है, इसका परिचायक रक्षा मंत्रालय की ओर से हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल के साथ किया गया 62 हजार करोड़ रुपये का करार भी है। इस समझौते के तहत वायुसेना को 97 तेजस लड़ाकू विमान मिलेंगे।
ये उन मिग-21 लड़ाकू विमानों का स्थान लेंगे, जिन्हें वायुसेना से विदा किया जा रहा है। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि विदेशी लड़ाकू विमानों का स्थान स्वदेशी लड़ाकू विमान लें। रक्षा मंत्रालय और एचएएल के बीच हुए समझौते के अनुसार वायुसेना को तेजस लड़ाकू विमानों की आपूर्ति 2027-28 में शुरू होगी।
चूंकि एचएएल सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी है, इसलिए उसे यह देखना होगा कि आपूर्ति तय समय पर हो। उसे यह इसलिए सुनिश्चित करना होगा, क्योंकि अतीत में तेजस विमानों की समय पर आपूर्ति को लेकर सवाल उठ चुके हैं। ये सवाल स्वयं वर्तमान वायुसेना प्रमुख उठा चुके हैं।
तेजस लड़ाकू विमानों को समय पर तैयार करने में एक बड़ी बाधा उसके इंजन हैं। हालांकि तेजस स्वदेशी लड़ाकू विमान है, लेकिन वह अपने इंजन और कुछ अन्य उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। यह निर्भरता एक समस्या है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तेजस लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिका से पर्याप्त संख्या में इंजन मिलने में देरी हो रही है।
भारत का अगला लक्ष्य लड़ाकू विमानों के इंजन खुद बनाना होना चाहिए। चूंकि तेजस चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है और अमेरिका, रूस, चीन आदि पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के बाद छठी पीढ़ी के विमान बनाने की कोशिश में हैं, इसलिए भारत को भी तेजी दिखानी होगी।
यह अच्छा है कि भारत निजी कंपनियों के सहयोग से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को तैयार करने में जुट गया है, लेकिन वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि चीन छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान का परीक्षण कर चुका है। अब जब भारत आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है, तब फिर उसे अपनी जरूरत की रक्षा सामग्री भी खुद बनाने के लिए कमर कसनी चाहिए।
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