विचार: आधारभूत ढांचे को लीलती अतिवृष्टि, मानसून के विदा होते ही बाढ़ और जलजमाव जनित परेशानियों को भुला देना ठीक नहीं
वर्ष 2019-2020 की परिकल्पना के अनुसार भारत में जल इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में 15 वर्षों तक 270 अरब डालर का निवेश होना था। इस परिकल्पना पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यह समय की मांग है कि जल निकासी के लिए पाइपलाइन या नहरों का ऐसा नेटवर्क स्थापित किया जाए कि क्षेत्रों का आपस में जल संतुलन स्थापित हो सके।
मान सिंह। इस मानसून ने यह दर्शाया कि वर्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मानसून की विदाई के बीच देश के अनेक हिस्सों में भारी बारिश देखने को मिली। पिछले दशकों के अनुभवों पर गौर करें तो बाढ़ का प्रकोप मुख्यतः पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में देखने को मिलता था, लेकिन इस वर्ष का परिदृश्य बिल्कुल भिन्न है।
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड के साथ-साथ गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब तक में बाढ़ का विकराल रूप सामने आया। पंजाब और हरियाणा, जो देश के लिए प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक क्षेत्र माने जाते हैं, वहां बाढ़ के कारण लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसलें नष्ट हो गईं। बादल फटने के कारण पहाड़ी राज्यों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर के विभिन्न स्थानों पर जन-धन की भारी हानि हुई। इसे केवल दुर्योग नहीं समझा जाना चाहिए।
अब यह साफ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तूफान, चक्रवात, अतिवृष्टि, बादल फटने और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं अधिक होंगी। इससे देश भर में सभी प्रकार की फसलों की हानि के साथ-साथ मौजूदा बुनियादी ढांचे जैसे रेल, सड़क, बिजली, बड़े पुल, दूरसंचार नेटवर्क आदि को भी क्षति होगी। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र को चौतरफा हानि झेलनी पड़ेगी। इस समस्या का टिकाऊ और दीर्घकालिक समाधान क्या हो सकता है, इस पर गंभीर चिंतन होना चाहिए और इसमें देर नहीं की जानी चाहिए। यह ठीक नहीं होगा कि मानसून विदा होते ही बाढ़ और जलजमाव जनित परेशानियों को भुला दिया जाए।
अनेक वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि आने वाले वर्षों में बादल फटने की आवृत्ति बढ़ सकती है और जलवृष्टि की तीव्रता भी अनिश्चित रहेगी। कब, कहां और कितनी वर्षा होगी, इसका पूर्वानुमान भी कठिन होगा। अभी तक विश्व में मौसम विज्ञान से संबंधित कोई उपग्रह और उपकरण बादल फटने की भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हुए हैं और न ही निकट भविष्य में इसकी संभावना है।
इसलिए जल से संबंधित बुनियादी ढांचे की बार-बार हानि को सहने के बजाय, एक साथ राष्ट्रव्यापी सुदृढ़ इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जाना चाहिए। भारत की विकास यात्रा में सड़क, रेल, हवाई मार्ग, नागरिक विमानन, बिजली, दूरसंचार और मोबाइल आदि का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया गया है। इन क्षेत्रों में अभी पर्याप्त निवेश का सिलसिला कायम है। इसी के चलते आज भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है। पिछले 50 वर्षों में जल इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करने के लिए भी प्रयास किए गए हैं, लेकिन वे आज पर्याप्त नहीं दिखते।
नदियों को आपस में जोड़ने की योजनाओं पर 1972 से विचार चल रहा है, लेकिन केवल एक-दो उदाहरण ही सामने आए हैं। जल शक्ति मंत्रालय के गठन की प्रासंगिकता को और भी बल मिलेगा, यदि सभी प्रकार के जल संसाधनों का उपयोग कर जल शक्ति अभियान के अंतर्गत आने वाले दो मुख्य उद्देश्यों ‘हर घर को नल से जल’ और ‘हर खेत को जल’ को पाइपलाइन या खुली नहरों के नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त किया जाए।
हमारे देश में जल संबंधी बुनियादी ढांचे को स्थापित करने से समुचित राजस्व की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसके परिणामस्वरूप जो भी ढांचा बनता है, उसके रख-रखाव के लिए आवश्यक जन-धन संसाधन बहुत कम आवंटित होते हैं। अन्य क्षेत्रों जैसे रेल, सड़क, हवाई मार्ग, मोबाइल नेटवर्क आदि में निवेश से संबंधित संगठनों को राजस्व और अन्य अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। ऐसे में जल अवसंरचना के निर्माण में निजी कंपनियां आने से हिचकती हैं और निवेश करने से कतराती हैं।
वर्तमान सरकार का लक्ष्य आत्मनिर्भर और विकसित भारत है। यह लक्ष्य प्राप्त करना तब संभव होगा, जब भारत जल के क्षेत्र में सुरक्षित होगा, क्योंकि कृषि की सुरक्षा जल सुरक्षा पर निर्भर करती है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में और विकराल होंगे। इसके परिणामस्वरूप देश में बड़े संकट खड़े होंगे। अतिवृष्टि जनित जल संकट का स्वरूप क्या होगा, यह केवल प्रकृति ही जानती है। सबसे अधिक जनसंख्या वाला भारत आपदा प्रबंधन और निवारण की तैयारी हमेशा करता रहता है।
अब उसे हर स्तर पर जल निकासी के लिए सक्षम ढांचे को भी तैयार करने की आवश्यकता है। अच्छा हो कि नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं के साथ इसे जोड़ा जाए, ताकि एक स्थान के बाढ़ का पानी दूसरे स्थान का संरक्षित जल संसाधन बने, न कि समुद्र में मिल जाए। जल अवसंरचना के निर्माण की गति में वृद्धि और सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने में और देरी नहीं होनी चाहिए।
वर्ष 2019-2020 की परिकल्पना के अनुसार भारत में जल इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में 15 वर्षों तक 270 अरब डालर का निवेश होना था। इस परिकल्पना पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यह समय की मांग है कि जल निकासी के लिए पाइपलाइन या नहरों का ऐसा नेटवर्क स्थापित किया जाए कि क्षेत्रों का आपस में जल संतुलन स्थापित हो सके। सुदृढ़ राष्ट्रव्यापी जल अवसंरचना के निर्माण में चीन की भांति भारी निवेश करके ही भारत आत्मनिर्भर और 2047 तक विकसित राष्ट्र बन सकता है।
(लेखक आइसीएआर-आइएआरआइ के जल प्रौद्योगिकी केंद्र के पूर्व परियोजना निदेशक हैं)
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