जागरण संपादकीय: हिंसा की चपेट में लेह, सावधानी जरूरी
जब लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था तब इस क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश बनाने की मांग होती थी। जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद उसे यह दर्जा मिल गया तो अलग राज्य की मांग पर जोर दिया जाने लगा। इसके औचित्य को सिद्ध करने वाले तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन उन पर जोर देने के लिए हिंसा की राह पर जाना दुर्भाग्यपूर्ण भी है और चिंताजनक भी।
लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने और इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांगों को लेकर लेह में जारी शांतिपूर्ण आंदोलन जिस तरह हिंसक हो उठा और जिसके नतीजे में चार लोग मारे गए और कई घायल हो गए, उसके पीछे कोई शरारत भी हो सकती है।
इसका अंदेशा इसलिए होता है, क्योंकि हिंसा के दौरान भाजपा कार्यालय को आग लगाने के साथ लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के कार्यालय को क्षति पहुंचाई गई और सुरक्षा बलों के वाहनों को निशाना बनाया गया। यह आंदोलन इसलिए हिंसक उपद्रव में तब्दील हो गया, क्योंकि अनशन पर बैठे दो लोगों की तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
लद्दाख की मांगों को लेकर आंदोलन भले ही लेह एपेक्स बाडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेतृत्व में हो रहा हो, लेकिन उसकी कमान मुख्यतः पर्यावरण एवं सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के हाथ में थी। लगता है वे अपने आंदोलन में शामिल लोगों और खासकर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए।
यह ठीक है कि हिंसा भड़कने के बाद उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया और शांति की अपील की, लेकिन उन्हें इस पर गौर करना होगा कि उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसक तत्वों ने कैसे पटरी से उतार दिया? इस हिंसा का इसलिए कहीं कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि गृह मंत्रालय ने 6 अक्टूबर को लद्दाख के प्रतिनिधिमंडल के साथ अगले दौर की बातचीत सुनिश्चित कर दी थी। यह बातचीत होने के पहले ही मांगों को मानने की जिद पकड़ने का कोई मतलब नहीं था।
जब लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, तब इस क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश बनाने की मांग होती थी। जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद उसे यह दर्जा मिल गया तो अलग राज्य की मांग पर जोर दिया जाने लगा। इसके औचित्य को सिद्ध करने वाले तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन उन पर जोर देने के लिए हिंसा की राह पर जाना दुर्भाग्यपूर्ण भी है और चिंताजनक भी।
लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग करने वाले इस क्षेत्र के लिए अपना लोक सेवा आयोग भी चाह रहे हैं और एक के बजाय दो लोकसभा सीटें भी-एक लेह के लिए और दूसरी कारगिल के लिए।
यह सही है कि जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होने के दौरान लद्दाख को 370 के तहत जो विशेष अधिकार मिले थे, वे केंद्रशासित बनने के बाद समाप्त हो गए, लेकिन इस नतीजे पर पहुंचना सही नहीं होगा कि इससे क्षेत्र के लोगों की संस्कृति और जमीनों के लिए खतरा पैदा हो गया।
ऐसा लगता है कि इस खतरे को भय के भूत की तरह खड़ा किया गया। जो भी हो, केंद्र सरकार को इस अशांत हो उठे क्षेत्र में शांति का माहौल बनाए रखने को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि यह चीन और पाकिस्तान से लगा इलाका है।
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