आदित्य सिन्हा। पिछले कुछ समय से भारत ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर्स यानी वैश्विक क्षमता केंद्रों के मानचित्र पर मजबूती से उभरा है। जीसीसी कहे जाने वाले ये केंद्र विकास के नए इंजन बनते हुए दिख रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा एच1बी वीजा पर की जा रही मनमानी के बाद भारत के लिए जीसीसी के मोर्चे पर बन रहे अवसरों का दायरा और भी बढ़ सकता है। बदली हुई परिस्थितियों में निवेश को लुभाने और प्रतिभाओं को खपाने की कहीं अधिक गुंजाइश बनेगी। एक तरह से एच1 बी वीजा प्रतिबंध देश में रोजगार विस्तार और नवाचार को गति देने का माध्यम भी बन सकते हैं।

जीसीसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा किसी अन्य देश में स्थापित कार्यस्थल होता है। इसकी स्थापना का उद्देश्य साफ्टवेयर विकास, अनुसंधान, डेटा विश्लेषण, ग्राहक सहायता या वित्तीय प्रबंधन जैसे व्यवसाय के महत्वपूर्ण पहलुओं को संभालना है। एक समय देश में काल सेंटर कामकाज की संस्कृति विकसित हुई थी, पर ये जीसीसी उनसे कहीं बढ़कर हैं। ये नए उत्पादों का डिजाइन करते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ से जुडे उपकरण बनाते हैं।

वैश्विक बैंकिंग संचालन संभालते हैं और यहां तक कि अपनी मूल कंपनियों के लिए उच्चस्तरीय शोध भी करते हैं। भारत में 1,800 से अधिक जीसीसी सक्रिय हैं, जो 21.6 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं। भारत में प्रतिभाओं के बड़े वर्ग, अपेक्षाकृत कम लागत और वीजा सहूलियत जैसे प्रमुख पहलू वैश्विक दिग्गजों को यहां जीसीसी स्थापना के लिए प्रेरित करते हैं। देखा जाए तो भारतीय जीसीसी इकोसिस्टम दुनिया भर की दिग्गज कंनियों के लिए कम पैसों में अधिक नवाचार का आधार बनता जा रहा है, जिसमें भारतीय प्रतिभाओं को भी लाभ मिल रहा है।

‘कैटालाइजिंग वैल्यू क्रिएशन इन इंडियन ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर्स’ शीर्षक से प्रकाशित पीडब्ल्यूसी की एक हालिया रिपोर्ट वैश्विक कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जीसीसी के महत्व पर प्रकाश डालती है। जीसीसी द्वारा अपनी मूल कंपनियों के कामकाज का बहुत छोटा सा हिस्सा संभालने के बावजूद वावजूद वित्त वर्ष 2020 से 2024 के बीच इन्होंने अपनी मूल कंपनियों के लिए सालाना 10 से 11 प्रतिशत की वैल्यू बढ़ाने का काम किया है। बोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप (बीसीजी) एक रिपोर्ट यह बताती है कि भारत न केवल जीसीसी का सबसे बड़ा केंद्र है, बल्कि प्रदर्शन के मामले में भी सबसे संतुलित है।

भारत में 30 प्रतिशत जीसीसी बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले हैं, जबकि छह प्रतिशत ही ऐसे हैं जो अन्य देशों से कमतर प्रदर्शन कर रहे हैं। यह पहलू बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय जीसीसी अब एआइ, क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा, डाटा एनालिटिक्स और उपयोगकर्ता अनुभव डिजाइन जैसे आधुनिक एवं उन्नत क्षेत्रों में विस्तार कर रहे हैं।

वे जोखिम और अनुपालन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, ग्राहक सेवा वितरण और संचालन के स्तर पर डिजिटल कायाकल्प की प्रक्रिया से भी जुड़े हैं। इस दौर में जब एआइ और जेनएआइ अपने आरंभिक चरण में है, तब भारतीय जीसीसी लागत-बचत और वितरण भूमिकाओं से नवाचार केंद्रों में बदल रहे हैं, जो वैश्विक कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमताएं बढ़ाने और उनकी प्रगति में सहायक बन रहे हैं।

केंद्र सरकार भी जीसीसी को प्रोत्साहन देने में लगी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ दिन पहले ही विशाखापत्तनम में आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि केंद्र राज्यों के साथ मिलकर भारत को जीसीसी का सबसे आकर्षक केंद्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उनका आशय था कि बेंगलुरु, हैदराबाद और गुरुग्राम जैसे महानगर आज इस मुहिम में आगे हैं, लेकिन इसके विकास की अगली बयार टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में बहनी चाहिए। इसके लिए बुनियादी ढांचे, डिजिटल कनेक्टिविटी और कौशल विकास पर ध्यान देना होगा।

केंद्र सरकार पूंजीगत व्यय में वृद्धि से इस मोर्चे पर प्रयासों को परवान चढ़ाने में भी लगी है। वित्त वर्ष 2014 में जो पूंजीगत व्यय जीडीपी का 1.7 प्रतिशत था, वह वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया। इसके चलते देश भर में हवाई अड्डों, रेलवे, मेट्रो, बंदरगाहों और राजमार्गों का विस्तार हो रहा है।

उद्योग संगठन सीआइआइ ने भी जीसीसी इकोसिस्टम को और मजबूत बनाने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। उसने सुझाया है कि केंद्र, राज्यों और वैश्विक निवेशकों के बीच समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय जीसीसी परिषद गठित की जाए। एआइ, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और क्वांटम एनालिटिक्स जैसे उन्नत क्षेत्रों के लिए विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे के साथ डिजिटल आर्थिक क्षेत्र यानी डीईएजेड विकसित किए जाएं। साइबर सुरक्षा, इंजीनियरिंग शोध एवं विकास और उत्पाद नवाचार जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्टता केंद्रों के माध्यम से उद्योग-शिक्षा साझेदारी को मजबूत करने पर भी उसने जोर दिया है।

जीसीसी के अगले चरण के विस्तार में महानगरों से परे उनका दायरा बढ़ाने के लिए एक सिंगल विंडो अनुमति प्रणाली अपनानी होगी, ताकि वैश्विक कंपनियों को भूमि अधिग्रहण, डाटा केंद्र और अनुपालन संबंधी अनुमति त्वरित गति से प्राप्त हो सके। दूसरा, उच्च-मूल्य से जुड़े कार्यों के लिए लक्षित प्रोत्साहनों का डिजाइन भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जो जीसीसी को शोध एवं विकास, उत्पाद डिजाइन और साइबर सुरक्षा जैसे परिदृश्य में आगे बढ़ाएं।

तीसरा, छोटे शहरों में बुनियादी ढांचे और उससे जुड़े अन्य अनेक पहलुओं को दुरुस्त करना। चौथा, कौशल के स्तर पर खाई को पाटने के लिए भविष्योन्मुख क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कौशल विकास एवं प्रमाणन कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है, जो उद्योग-शिक्षा साझेदारी पर आधारित हों।

इस दिशा में संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर की जीसीसी नीतियों का राष्ट्रीय ढांचे से उचित तालमेल भी उतना ही आवश्यक होगा। स्थानीय स्तर पर भूमि और बिजली सब्सिडी और लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम को लेकर भी सक्रियता दिखानी होगी। यदि इन बिंदुओं पर ध्यान दिया गया तो इस दशक के अंत तक जीसीसी 2.5 करोड़ नई नौकरियां सृजित करने के साथ नवाचार को नई उड़ान दे सकते हैं।

(लेखक लोक-नीति विश्लेषक हैं)