अपने घर का सपना देखने वालों के साथ बिल्डर किस तरह छल कर रहे हैं, इसका पता सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीबीआइ को दिए गए इस आदेश से चलता है कि वह मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज से जुड़े प्रोजेक्टों में भी फ्लैट खरीदारों से धोखाधड़ी में एफआइआर दर्ज करे। इसके पहले उसने दिल्ली-एनसीआर के कई बिल्डरों के खिलाफ ऐसी ही एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश से यह आशंका गहरा गई है कि फ्लैट खरीदारों को ठगने का काम देश के अन्य शहरों में भी किया गया होगा। यह ठगी सबवेंशन स्कीम के तहत बिल्डरों की बैंकों के साथ साठगांठ के चलते हो रही थी। इस स्कीम के तहत बिल्डर फ्लैट खरीदारों को लोन दिलाते थे, लेकिन वे उसे अपने पास रखकर खुद बैंकों को किस्त चुकाते थे।

कुछ समय बाद वे लोन का यह पैसा अन्यत्र कहीं खपा देते थे। इस कारण लोगों को न फ्लैट मिलता था और न ही अपने नाम पर चढ़े लोन से छुटकारा। यदि बैंक सतर्क रहते तो इस घोटालेबाजी पर अंकुश लग सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश यही इंगित करता है कि वे भी लापरवाही का परिचय देते थे और उनकी बिल्डरों से मिलीभगत भी थी।

इस मिलीभगत ने ही इस घोटाले की जमीन तैयार की। कुछ मामलों में बैंकों ने जिस तरह बिल्डरों की परियोजनाओं का भौतिक सत्यापन किए बिना लोन की पूरी रकम जारी कर दी, उससे यही पता चलता है कि वे बंदरबांट करने की तैयारी किए बैठे थे। इसका एक मतलब यह भी है कि बैंकों में घोटालेबाज अधिकारी अब भी बैठे हैं।

कहना कठिन है कि बिल्डरों की चालबाजी से कितने फ्लैट खरीदारों के घर का सपना साकार नहीं हुआ? सुप्रीम कोर्ट को केवल यही सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि सीबीआइ फ्लैट खरीदारों को धोखा देने वाले बिल्डरों और बैंकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर उनके खिलाफ जांच तेज करे, बल्कि यह भी देखना चाहिए कि ठगी के शिकार फ्लैट खरीदारों को राहत कैसे मिले।

यह अच्छा नहीं होगा कि इन मामलों की जांच और फिर सुनवाई वर्षों तक होती रहे। न्याय समय पर न मिले तो वह अपनी महत्ता और लोगों का भरोसा खो देता है। यह किसी से छिपा नहीं कि बिल्डरों की ओर से पहले भी देश भर में न जाने कितने लोगों को ठगा गया है। ऐसे तमाम लोगों को अब भी राहत नहीं मिली है।

लोगों को बिल्डरों के छल-कपट से बचाने के लिए रेरा नामक जो कानून लाया गया था, उसने बिल्डरों की मनमानी पर एक हद तक तो अंकुश लगाया, लेकिन वह लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा है। यदि फ्लैट खरीदार के हितों की रक्षा उसकी प्राथमिकता में होते तो सबवेंशन स्कीम के नाम पर घोटाला नहीं हो पाता। अच्छा हो कि रेरा वालों की लापरवाही का भी संज्ञान लिया जाए।