डॉ. मनमोहन शर्मा। अथर्ववेद में वर्णित आयुर्वेद वह विज्ञान है, जो आयु अर्थात जीवन का ज्ञान देता है। हर वह व्यक्ति जो स्वस्थ एवं सुखी जीवन की कामना करता है, उसे आयुर्वेद को जानना एवं अपनाना चाहिए, क्योंकि आयुर्वेद न केवल मनुष्य को निरोग रखने पर बल देता है, बल्कि स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने का संदेश देता है।

आयुर्वेद इसलिए विशिष्ट है, क्योंकि यह शरीर की व्याधियां दूर करने के साथ मन के दोषों का भी निदान करता है। इसीलिए योग और ध्यान भी आयुर्वेद के अंग हैं। मान्यता है कि आयुर्वेद को स्वयं ब्रह्मा जी से भगवान धन्वंतरी और उनके उपरांत विभिन्न ऋषियों एवं महर्षियों जैसे सुश्रुत, चरक आदि द्वारा जनकल्याण हेतु प्रतिपादित किया गया। इसके उद्देश्य को यह श्लोक प्रकट करता है-

स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं

आतुरस्य विकार प्रशमनं च॥

अर्थात स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी के रोग का प्रशमन करना ही आयुर्वेद का प्रयोजन है। संपूर्ण ब्रह्मांड पंचमहाभूत अर्थात आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना है। इसी सिद्धांत पर आयुर्वेद आधारित है। आयुर्वेद की मान्यता है कि बह्मांड हो या सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव, सभी का मूल एक ही है। यही पंचमहाभूत शरीर में दोष, धातु एवं मल के रूप में विद्यमान रहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन दोष वात, पित्त, कफ माने गए हैं। इन दोषों की समवस्था ही मनुष्य में स्वास्थ्य को परिभाषित करती है।

जहां अधिकांश चिकित्सा पद्धतियां विशेषकर पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियां मात्र मनुष्य के भौतिक शरीर के रोगों को ठीक करने पर केंद्रित हैं, वहीं आयुर्वेद जीवन के सभी क्षेत्रों में मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक है। इसीलिए उसे संपूर्ण चिकित्सा पद्धति कहा गया है। दिनचर्या, ऋतुचर्या, योग, आहार आदि मूलभूत जीवनशैली द्वारा एवं प्रकृति से प्राप्त हानिरहित फल-फूल, जड़ी-बूटी, खनिजों इत्यादि द्वारा चिकित्सा का प्रविधान आयुर्वेद में ही मिलता है।

आयुर्वेद हमें सिखाता है कि कैसे जीवन में अप्राप्त की प्राप्ति की जाए, प्राप्त का रक्षण किया जाए, रक्षित की वृद्धि की जाए एवं जो वर्जित है, उसका त्याग किया जाए। यही स्वस्थ एवं सुखी जीवन का मूलमंत्र है। भारतवर्ष में प्रारंभ से ही आयुर्वेद हमारी संस्कृति और जीवनशैली का अभिन्न अंग रहा, पर कालांतर में आक्रांताओं द्वारा भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की प्रवृत्ति एवं दासता की मानसिकता के चलते आयुर्वेद का क्षरण हुआ। इसके उपरांत अंग्रेजी सत्ता में आयुर्वेद को समाप्त करने का प्रयास किया गया और आयुर्वेद को निष्प्रभावी बताकर पश्चिमी चिकित्सा को ही महत्व दिया गया।

आयुर्वेद को श्रीहीन करने के लिए आयुर्वेद चिकित्सकों, वैद्यों को झोलाछाप अर्थात नकली डाक्टर कहा गया। कोविड महामारी के समय आयुर्वेदिक औषधियां कोरोना वायरस के प्रभाव को समाप्त करने तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुईं। इस कारण आयुर्वेद के प्रति पुनः विश्वास एवं रुचि जाग्रत हुई। वर्तमान में भारत सरकार एवं उसकी संस्थाओं द्वारा आयुर्वेद को प्रोत्साहित करने के लिए नई योजनाएं शुरू करने के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा की सुविधाएं बढ़ाने के जो प्रयत्न किए जा रहे हैं उनसे भी आयुर्वेद का प्रभाव और उसके प्रति भरोसा बढ़ रहा है।

आयुर्वेद प्रकृति पर आधारित विज्ञान है। इस कारण प्रकृति का संरक्षण ही आयुर्वेद का संरक्षण है। यह हम सबकी चिंता का विषय बनना चाहिए कि आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग होने वाली वनस्पतियां, खनिज आदि दुर्लभ होते जा रहे हैं या फिर उनकी उपलब्धता कम हो रही है। इन्हें संरक्षित करना आयुर्वेद के लिए एक बड़ी चुनौती है। वन संरक्षकों एवं किसानों को औषधि के रूप में प्रयोग होने वाली वनस्पतियों, पौधों, वृक्षों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

इसका लाभ केवल आयुर्वेद को ही नहीं, ग्रामीणों और विशेष रूप से किसानों को भी होगा। आयुर्वेदिक औषधियों की गुणवत्ता स्थापित करने के लिए मानक नियमों का पालन भी समय की मांग है। आयुर्वेद की विश्वसनीयता में वृद्धि के लिए यह भी अनिवार्य है कि आयुर्वेदिक औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक शोध को प्राथमिकता दी जाए। यह कार्य आयुर्वेद से जुड़े संस्थानों को विशेष रूप से करना होगा। यह प्राथमिकता के आधार पर किया भी जाना चाहिए, क्योंकि मानव को संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाला विज्ञान यही है। भारत सरकार को इस पर भी ध्यान देना होगा कि आयुर्वेद की महत्ता विश्व स्तर पर कैसे स्थापित हो।

आयुर्वेद के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए युवाओं में इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की भी आवश्यकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति विज्ञानसम्मत पद्धति है। अभी अपने देश में जनसंख्या के सापेक्ष पर्याप्त संख्या में आयुर्वेद चिकित्सक नहीं हैं। लोगों और विशेषकर युवाओं को यह समझना होगा कि मानव स्वास्थ्य की वास्तविक कुंजी आयुर्वेद में निहित है और आत्मा, इंद्रियों एवं मन की प्रसन्नता आयुर्वेद से ही संभव है। आयुर्वेद शरीर, मन और चेतना में संतुलन बनाए रखने का काम करता है और आज की आधुनिक जीवनशैली में इसकी आवश्यकता कहीं अधिक बढ़ गई है। इस आवश्यकता की पूर्ति ही आयुर्वेद दिवस को सार्थक करेगी।

(लेखक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं)