जागरण संपादकीय: चुनाव आयोग का सही फैसला, एसआईआर को लेकर प्रतिबद्ध
दुर्भाग्य से विपक्षी दल यही चाहते हैं। उन्होंने बिहार में मतदाता सूचियों के सत्यापन की प्रक्रिया को लेकर जिस तरह आसमान सिर पर उठा लिया उसे देखते हुए इसका अंदेशा है कि वे देशव्यापी एसआईआर पर भी हायतौबा मचाएंगे। ऐसे में चुनाव आयोग को विपक्षी दलों के दुष्प्रचार की काट के लिए तैयार रहना होगा।
यह अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग देश भर में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण अर्थात एसआईआर को लेकर न केवल प्रतिबद्ध है, बल्कि उसने राज्यों के चुनाव अधिकारियों को यह निर्देश भी दे दिया कि वे 30 सितंबर तक इस प्रक्रिया के लिए तैयार रहें। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग अक्टूबर के अंत अथवा नवंबर के आरंभ में देश भर में मतदाता सूचियों के सत्यापन का काम शुरू कर सकता है। यह कार्य होना ही चाहिए।
एक तो इसलिए, क्योंकि पिछली बार अधिकांश राज्यों में मतदाता सूचियों का सत्यापन 2002 और 2004 के बीच हुआ था। अच्छा यह होगा कि चुनाव आयोग एक निश्चित अंतराल के बाद मतदाता सूचियों के सत्यापन की प्रक्रिया नियमित रूप से पूरी करे। इसकी आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि अब एक बड़ी संख्या में लोग रोजगार-व्यापार के सिलसिले में अपने मूल निवास स्थान से अन्यत्र चले जाते हैं।
इसके अतिरिक्त यह भी किसी से छिपा नहीं कि अनेक स्थानों पर मृत लोगों के नाम मतदाता सूचियों में दर्ज बने रहते हैं। बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया ने तो इस आशंका को भी बल दे दिया है कि अवांछित लोग और विशेष रूप से बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल आदि के नागरिक फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे भारतीय मतदाता बन बैठे हैं।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए, लेकिन सीमावर्ती राज्यों और विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में ऐसा होने की प्रबल आशंका है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बांग्लादेशी घुसपैठिये किस तरह देश के विभिन्न हिस्सों में जा बसे हैं। उन्होंने फर्जी दस्तावेजों से राशन कार्ड, आधार और उनके जरिये मतदाता पहचान पत्र भी हासिल कर लिए हैं।
अब जब चुनाव आयोग देश भर में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है तो उसे इसके लिए हरसंभव प्रयत्न करने होंगे कि इस प्रक्रिया में किसी भी गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे। नि:संदेह इतने बड़े देश में मतदाता सूचियों में सुधार करने की प्रक्रिया में कहीं न कहीं कुछ न कुछ खामी देखने को मिल सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मतदाता सूचियों का सत्यापन ही न किया जाए।
दुर्भाग्य से विपक्षी दल यही चाहते हैं। उन्होंने बिहार में मतदाता सूचियों के सत्यापन की प्रक्रिया को लेकर जिस तरह आसमान सिर पर उठा लिया, उसे देखते हुए इसका अंदेशा है कि वे देशव्यापी एसआईआर पर भी हायतौबा मचाएंगे। ऐसे में चुनाव आयोग को विपक्षी दलों के दुष्प्रचार की काट के लिए तैयार रहना होगा। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि बंगाल जैसे राज्यों में उसे दुष्प्रचार के साथ राज्य सरकारों के असहयोग का भी सामना करना पड़ सकता है।
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