संजय गुप्त। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर वोट चोरी का मामला उठाकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा। इस बार उन्होंने कर्नाटक की अलंद विधानसभा सीट से कांग्रेस के 6,018 वोट काटे जाने का आरोप लगाया और एक प्रेस कांफ्रेंस में प्रजेंटेशन देकर यह समझाया कि किस तरह मोबाइल फोन के जरिये कांग्रेसी वोटरों के वोट काटे गए।

पिछली बार भी उन्होंने इसी तरह वोट चोरी के एक मामले को सामने रखा था और उसे एटम बम की संज्ञा दी थी। वे वोट चोरी के एक और मामले को सामने लाएंगे और उसे हाइड्रोजन बम बताएंगे। राहुल का चुनाव आयोग पर निशाना नया नहीं है। वे एक अर्से से यही कर रहे हैं। वे महाराष्ट्र में कथित वोट चोरी का मामला उछाल चुके हैं और बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन को भी वोटों की चोरी बता चुके हैं। पहले वे चुनाव आयोग पर निशाना साधने के लिए ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा उठाते थे। जब सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे की हवा निकल गई तो वोट चोरी के अपने आरोपों को एक अभियान बनाने में जुट गए। वे सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर हमला बोल रहे हैं। उनकी मानें तो मुख्य चुनाव आयुक्त भाजपा को जिताने के लिए कांग्रेस के वोट काटने का काम कर रहे हैं।

राहुल गांधी ने वोट चोरी के अपने आरोप को धार देने के लिए कर्नाटक की अलंद विधानसभा सीट से कांग्रेसी वोटरों के वोट काटे जाने का जो मामला सामने रखा, उससे यह प्रतीति हुई कि 6,018 वोटरों के नाम सचमुच हटा दिए गए, लेकिन कुल 24 वोट काटे गए और वे भी उनके, जिनके कटने चाहिए थे। अन्य वोट काटने की नाकाम कोशिश हुई थी। इस मामले में खुद चुनाव आयोग ने एफआइआर दर्ज कराई और इसकी जांच कर्नाटक सीआइडी कर रही है। राहुल गांधी का आरोप है कि चुनाव आयोग कर्नाटक सीआइडी को वोट काटे जाने के मामले में बार-बार मांगे जाने के बाद भी वांछित जानकारी नहीं दे रहा है, पर चुनाव आयोग के अनुसार 2023 के इस मामले में जो जानकारी मांगी गई थी, वह सीआइडी को उपलब्ध कराई जा चुकी है। इस हिसाब से गेंद सीआइडी के पाले में है।

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मोबाइल फोन के जरिये उस तरह वोट काटे या जोड़े नहीं जा सकते, जैसे राहुल गांधी कह रहे हैं। किसी का नाम वोटर लिस्ट से हटाने और जोड़ने की एक तय प्रक्रिया होती है और उसमें चुनाव कर्मचारी शामिल होते हैं। वे अपने स्तर पर छानबीन कर किसी का नाम जोड़ते या हटाते हैं। इस प्रक्रिया में कई बार गड़बड़ी भी होती है, लेकिन उसके लिए जिम्मेदार बीएलओ और अन्य चुनाव अधिकारी होते हैं, जो राज्य सरकार के तहत काम करते हैं। यदि किसी का नाम हटाने या जोड़ने में कोई खामी होती है तो इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि उसके लिए सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त जिम्मेदार हैं। राहुल गांधी यही साबित करने की कोशिश इसलिए कर रहे हैं, ताकि चुनाव आयोग को बदनाम कर सकें और यह माहौल बना सकें कि भाजपा छल-छद्म से चुनाव जीतती है।

भारत में 96 करोड़ वोटर हैं और इतने बड़े देश में कहीं पर भी मतदाता सूची में गड़बड़ी हो सकती है और होती भी है। राहुल गड़बड़ी के जो भी उदाहरण दे रहे हैं, वे कुछ सौ या हजार वोटों के हैं। यह सही है कि मतदाता सूची सही से तैयार होनी चाहिए, पर क्या कांग्रेस इसकी गारंटी ले सकती है कि उसके केंद्र की सत्ता में रहते समय चुनाव आयोग की ओर से तैयार मतदाता सूचियां दुरुस्त होती थीं? कांग्रेस इसलिए खिसियाई है, क्योंकि उसके लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो रहा है। उसने लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद यह माना था कि अब आगामी सभी चुनावों में उसकी जीत होगी, पर जब ऐसा नहीं हुआ तो हताशा में उसने अपनी हार का ठीकरा भाजपा और चुनाव आयोग पर फोड़ना शुरू कर दिया।

यदि कांग्रेस यह समझ रही है कि इससे उसका गिरता वोट प्रतिशत बढ़ जाएगा या फिर क्षेत्रीय दलों पर उसकी निर्भरता कम हो जाएगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। कांग्रेस पर लोग भरोसा नहीं कर पा रहे हैं तो उसकी रीति-नीति के कारण। राहुल यह समझने को तैयार नहीं कि भाजपा क्यों जीतती है? जहां भाजपा की जीत में प्रधानमंत्री मोदी की प्रभावी नेता की छवि भी कारगर साबित होती है, वहीं राहुल के लिए अपने दम पर कांग्रेस को चुनाव जिताना कठिन हो रहा है।

राहुल गांधी लगातार कह रहे हैं कि वोट चोरी के कारण लोकतंत्र खतरे में है, लेकिन वे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाकर खुद ही लोकतंत्र को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। वे संविधान की दुहाई दे रहे हैं, पर संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को नीचा दिखा रहे हैं। लोकतंत्र को मजबूत करने में राजनीतिक दलों, नौकरशाही, संवैधानिक संस्थाओं और अदालतों की एक बड़ी भूमिका होती है, पर राहुल तो बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की भी नहीं सुन रहे हैं और संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए चुनाव आयोग की साख नष्ट करने में तुले हैं। लोकतंत्र कायदे-कानून से चलता है। किसी की भी मनमानी लोकतंत्र को कमजोर करती है।

राहुल मनमानी ही कर रहे हैं। वे यह चाह रहे हैं कि वोट चोरी पर उनकी ओर से जो कहा जा रहा है, उसे सत्य मान लिया जाए। वे अपने कथित पुख्ता प्रमाणों के साथ अदालत भी नहीं जा रहे हैं। लोकतंत्र तब पटरी से उतरता है, जब उसकी संस्थाओं पर संकीर्ण स्वार्थों के लिए हमला बोला जाता है या फिर उन पर अनुचित दबाव बनाकर उन्हें कमजोर किया जाता है। आपातकाल में कांग्रेस ने यही किया था। लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी संस्था के कामकाज पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन यह काम भी जिम्मेदारी के साथ होना चाहिए। राहुल उलटे-सीधे आरोप लगाकर सनसनी तो फैला देते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि वोट चोरी हो रही है तो भाजपा झारखंड में क्यों हारी या फिर लोकसभा चुनाव में बहुमत से पीछे क्यों रह गई? क्या उनके रवैये को लोकतांत्रिक कहा जा सकता है? उन्होंने जिस तरह जेन-जी अर्थात नई पीढ़ी को वोट चोरी के खिलाफ खड़े होने के लिए कहा, उससे तो यही लगता है कि वे अपने अपुष्ट आरोपों के आधार पर लोगों को बरगलाकर अराजकता फैलाना चाह रहे हैं।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]