रमेश कुमार दुबे। पूर्वोत्तर के सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ रही है। इसके तहत 13 नई रेल लाइन बिछाई जा रही हैं, जबकि पांच लाइनों का दोहरीकरण किया जा रहा है। इसी कड़ी में शनिवार को मिजोरम की राजधानी आइजोल तक रेल पहुंच गई। इसके पहले भारतीय रेल कश्मीर पहुंची थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 सितंबर को मिजोरम की पहली रेल लाइन बैराबी-सैरांग के उद्घाटन के साथ ही आजादी के 78 वर्षों और भारतीय रेलवे के शुरू होने के 172 वर्षों बाद मिजोरम रेलवे मानचित्र से जुड़ गया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी एक्सप्रेस समेत तीन ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाई। इससे मिजोरम को देश भर से सीधी रेल कनेक्टिविटी मिलेगी, जिससे लोगों को सुरक्षित, सस्ती और तेज यात्रा का विकल्प मिलेगा। इसके साथ ही खाद्यान्न, उर्वरक और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी समय पर हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि 51.38 किलोमीटर लंबी बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन के निर्माण पर 8,070 करोड़ रुपये की लागत आई है।

देश की सबसे कठिन परियोजनाओं में से एक इस रेलवे लाइन को 2008-09 में मंजूरी मिली थी और इस पर 2015 में काम शुरू हुआ था। इस लाइन पर 45 सुरंग, 55 बड़े पुल और 88 छोटे पुल हैं। इसके अलावा 114 मीटर ऊंचा देश का दूसरा पियर ब्रिज भी है जो कुतुबमीनार (72 मीटर) से भी ऊंचा है। इस रेल लाइन को भविष्य में 223 किलोमीटर आगे म्यांमार सीमा तक बढ़ाया जाएगा। इसके लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण भी किया जा चुका है। यदि यह रेल लाइन म्यांमार सीमा तक पहुंचती है तो इससे कलादान परियोजना का लाभ मिलेगा। स्पष्ट है कि भारत सरकार की ‘पूरब की ओर देखो नीति’ के लिए यह परियोजना एक अहम पड़ाव साबित होगी। बैराबी असम सीमा के निकट है, जबकि सैरांग राज्य की राजधानी आइजोल से लगभग 21 किलोमीटर दूर है। इस रेल लाइन को बिछाने में कई चुनौतियां आईं। कठिन पहाड़ी इलाका, भारी बारिश और सीमित संसाधनों की पहुंच जैसी कठिनाइयों से पार पाते हुए पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने इस रेल लाइन का निर्माण पूरा किया।

बैराबी-सैरांग रेल लाइन मिजोरम के लिए जीवनरेखा साबित होगी। इससे इलाके में पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ पूरे साल कनेक्टिविटी बनी रहेगी। इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, यात्रियों के अलावा इस परियोजना के जरिये माल ढुलाई भी होगी। सीमावर्ती राज्य होने के कारण इस परियोजना का सामरिक महत्व भी है। फिलहाल आइजोल पहुंचने के लिए या तो हवाई मार्ग से या फिर असम की बराक घाटी स्थित सिलचर से सड़क मार्ग से छह घंटे का दुर्गम पहाड़ी सफर करना पड़ता है। सड़क मार्ग प्राय: वर्षा काल में जमीन धंसने के कारण बंद हो जाता है।

पूर्वोत्तर के सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। इन परियोजनाओं के तहत 1500 किलोमीटर से अधिक लंबी पटरियां बिछाई जाएंगी। इनमें से कई परियोजनाएं क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा पहले से ही रेलवे नेटवर्क में शामिल हो चुके हैं। इस साल दिसंबर तक मणिपुर की राजधानी इंफाल तक रेल पहुंच जाएगी। वर्ष 2026 तक नगालैंड की राजधानी कोहिमा को रेल नेटवर्क से जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। सिक्किम को रेलवे नेटवर्क में शामिल करने की परियोजना पर भी काम तेजी से चल रहा है।

सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तिब्बत सीमा पर स्थित नाथुला तक ब्राड गेज लाइन बिछाने के लिए भी सर्वेक्षण शुरू हो गया है। पूर्वोत्तर भारत में 2014 से अब तक 1,824 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई जा चुकी है जो श्रीलंका के समूचे रेल नेटवर्क से अधिक है। इसके अलावा 1,189 किलोमीटर रूट पर कवच सुरक्षा सिस्टम लगाया जा रहा है। अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत क्षेत्र के 92 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास किया गया। दिसंबर 2025 तक पूर्वोत्तर की सभी रेल लाइनों का विद्युतीकरण पूरा होने की संभावना है।

सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र में नई रेल लाइन बिछाने, रेल लाइनों के दोहरीकरण और पूरे क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए 75,000 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसके तहत 13 नई रेल लाइन बिछाई जा रही हैं, जबकि पांच लाइनों का दोहरीकरण किया जा रहा है। यूपीए शासन के दौरान 2009 से 2014 के बीच सरकार ने पूर्वोत्तर में 333 किलोमीटर नई रेल लाइनों को मंजूरी दी, जिसका सालाना औसत 66.6 किलोमीटर है। इसके विपरीत 2014 से 2024 के बीच मोदी सरकार की ओर से पूर्वोत्तर के राज्यों में 1,728 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई गई, जिसका सालाना औसत 172.8 किलोमीटर है। स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर में 2009 से 2014 की तुलना में दोगुने से अधिक गति से नई रेल लाइन बिछाई। पूर्वोत्तर में आधारभूत ढांचा और सुरक्षा तंत्र पर जहां 2009 से 2014 के बीच सालाना औसतन 2,122 करोड़ रुपये स्वीकृत किए, वहीं 2024-25 में यह धनराशि बढ़कर 10,376 करोड़ रुपये पहुंच गई। इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि सड़कों की तरह रेल मार्ग भी विकास का जरिया हैं।

(लेखक निर्यात संवर्धन और विश्व व्यापार संगठन प्रभाग में अधिकारी हैं)