आरके विज। बीते दिनों पुलिस अभिरक्षा में हुई एक मौत का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए थानों में सीसीटीवी कैमरा लगाने के अपने पूर्व आदेश की समीक्षा शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में ‘परमवीर विरुद्ध बलजीत सिंह’ प्रकरण में सभी राज्यों को थानों में पर्याप्त सीसीटीवी कैमरा लगाने के निर्देश दिए थे, ताकि अभिरक्षा में प्रताड़ना के प्रकरणों पर रोक लगाई जा सके। इसी तरह जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकरण में डीएनए सैंपल्स सुरक्षित ढंग से इकट्ठे करने और उन्हें 48 घंटे के अंदर फोरेंसिक लैब भिजवाने के निर्देश देते हुए एक मार्गदर्शिका जारी की।

इससे पहले जनवरी 2019 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत राज्यों को 10,000 से अधिक डीएनए कलेक्शन किट उपलब्ध कराई गई थीं, क्योंकि यौन अपराधों की विवेचना में डीएनए जांच एक जरूरी पहलू है। नए आपराधिक कानूनों में भी विवेचना के लिए वैज्ञानिक साक्ष्यों को अधिक महत्व दिया गया है। सात वर्ष या सात से अधिक वर्षों की कारावास से जुड़े आपराधिक प्रकरणों में फोरेंसिक विशेषज्ञ का घटना स्थल पर पहुंच कर फोरेंसिक साक्ष्य एकत्रित करना और मोबाइल फोन या किसी दूसरे इलेक्ट्रानिक यंत्र से घटनास्थल की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी अब जरूरी है। पुलिस द्वारा किसी स्थल की तलाशी और जब्ती के दौरान भी वीडियोग्राफी कर 48 घंटे में मजिस्ट्रेट को भेजना अनिवार्य है। द्वितीय प्रवृत्ति के इलेक्ट्रानिक साक्ष्य का सत्यापन भी साइबर विशेषज्ञ द्वारा किया जाना जरूरी है।

यह सही है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में फोरेंसिक संसाधनों को विकसित करने के लिए पांच वर्षों का समय दिया गया है, लेकिन उसकी पूर्ति के लिए राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध कराना आवश्यक है। पुलिस आधुनिकीकरण से जुड़ी वर्तमान योजना 1999-2000 में प्रारंभिक रूप से 10 वर्षों के लिए शुरू की गई थी। 10 साल बाद न केवल योजना की निरंतरता बनाए रखने की अनुशंसा की गई, बल्कि माओवाद प्रभावित इलाकों में फंड की बढ़ोतरी और तटीय एवं सीमावर्ती इलाकों के लिए भी विशेष योजना तैयार करने सिफारिश की गई।

पुलिस आधुनिकीकरण योजना से पुलिस की मोबिलिटी बढ़ने, दूरसंचार सुधरने, हथियारों की गुणवत्ता में बेहतरी, कंप्यूटराइजेशन, प्रशिक्षण और सुरक्षा के उपकरण खरीदने और फोरेंसिक लैब के आधुनिकीकरण में राज्यों को काफी फायदा हुआ है। इसमें यह भी अनदेखा न किया जाए कि समय के साथ पुलिस बल की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और कई नई चुनौतियां सामने आई हैं।

वैसे तो पुलिस और लोक व्यवस्था संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत ‘राज्य सूची’ में सम्मिलित हैं और पुलिस को आवश्यक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, पर संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्यों में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना केंद्र की भी प्रमुख जिम्मेदारी है। इसी दायित्व की पूर्ति हेतु केंद्रीय गृह मंत्रालय की अंब्रेला स्कीम ‘पुलिस आधुनिकीकरण के लिए राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को सहायता’(एएसयूएमपी) के जरिये राज्यों को पुलिस आधुनिकीकरण राशि उपलब्ध कराई जाती है। इसमें उत्तराखंड, हिमाचल एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए फंडिंग पैटर्न 90:10 है। यानी 90 प्रतिशत योगदान केंद्र का, जबकि शेष इन राज्यों का। अन्य राज्यों के लिए यह अनुपात 60:40 है। इससे पहले यह भागीदारी 75:25 थी, परंतु वर्ष 2012-13 से इसे बदलकर 60:40 कर दिया गया।

इसमें संदेह नहीं कि केंद्र सरकार ने पुलिस आधुनिकीकरण योजना को लगातार जारी रखा हुआ है, परंतु इसके अंतर्गत वार्षिक फंड आवंटन में लगातार कमी आ रही है। जहां 2012-13 में केंद्र सरकार की भागीदारी करीब 1,558 करोड़ रुपये थी, वहीं 2023-24 में यह अपने सबसे कम स्तर 460 करोड़ रुपये पर आ गई। जुलाई 2024 से नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद वर्ष 2025-26 में केंद्र की भागीदारी बढ़कर करीब 1,007 करोड़ रुपये हो गई है। इस क्रम को लगातार बढ़ाए रखना होगा।

केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय संसाधन के प्रवाह की निगरानी के लिए पब्लिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम यानी पीएफएमएस जैसी व्यवस्था भी अपनाई गई है, लेकिन यह उपयोग के लिहाज से बहुत अनुकूल नहीं है। जितने भी वित्तीय संसाधन राज्यों को आवंटित किए जाते हैं, उनमें से वास्तविक व्यय हमेशा कम रहता है। कई बार निर्माता या विक्रेता कंपनी की पर्याप्त भागीदारी नहीं होती या कभी विक्रेता द्वारा समय पर उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते। कई बार राज्य सरकार से एकीकृत सामग्री की स्वीकृति मिलने में विलंब होता है तो कई बार निर्माण कार्यों के पूरा होने में ठेकेदार देर लगा देता है।

समय के साथ गवर्नमेंट-ई-मार्केट (जैम) के संचालन में काफी सुधार हुआ है। इसके बावजूद एमएसएमई और स्टार्टअप्स को निविदा सुरक्षा राशि जमा करने में छूट मिलने से वे गंभीरता से प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित नहीं होते। इन वजहों से कई बार स्वीकृत राशि समय पर खर्च नहीं हो पाती और कुछ समय बाद वह लैप्स हो जाती है। पुलिस आधुनिकीकरण की एएसयूएमपी योजना के अंतर्गत माओवाद प्रभावित इलाकों के लिए सुरक्षा संबंधी व्यय-एसआरई, विशेष केंद्रीय सहायता-एससीए और विशेष अधोसंरचना स्कीम के माध्यम से भी राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है, ताकि सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचा मजबूत हो सके। इसके अलावा फोरेंसिक लैब आधुनिकीकरण एवं जेलों के आधुनिकीकरण की योजनाएं भी जारी हैं।

माओवादियों के खिलाफ मुहिम के लगातार सिकुड़ने के बावजूद इस मोर्चे पर वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता बनी रहेगी, ताकि काम अधूरा न रह जाए।

न केवल नए आपराधिक कानून लागू करने के लिए फोरेंसिक जैसी आवश्यकताओं, अपितु साइबर क्राइम, एआइ और कई अन्य नई तकनीकी चुनौतियों से निपटने के लिए पुलिस को अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी। इसीलिए पुलिस आधुनिकीकरण के प्रयासों में केंद्र सरकार की भागीदारी किसी भी लिहाज से नहीं घटनी चाहिए।

(लेखक भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं)