टैरिफ की एक और डोज, दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार समझौते बनेगी बात
अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा से हलचल है। राहत की बात है कि यह टैरिफ पेटेंट दवाओं पर है जिससे भारतीय फार्मा कंपनियों पर कम असर होगा क्योंकि वे ज्यादातर जेनरिक दवाएं निर्यात करती हैं। जेनरिक दवाओं का हिस्सा 95% है। ट्रंप के इस फैसले से तत्काल नुकसान नहीं होगा लेकिन शेयर बाजार में गिरावट से चिंता बनी हुई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने दवाओं पर सौ प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा करके एक बार फिर हलचल पैदा कर दी। राहत की बात यह है कि उन्होंने पेटेंट दवाओं पर ही टैरिफ लगाया है। इस कारण भारतीय फार्मा कंपनियों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे अमेरिका को मुख्यतः जेनरिक दवाओं की ही आपूर्ति करती हैं।
इन कंपनियों की अमेरिका निर्यात होने वाली दवाओं में जेनरिक दवाओं का हिस्सा 95 प्रतिशत है। चूंकि पांच प्रतिशत हिस्सा ही पेटेंट दवाओं का है, इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले से भारतीय हितों को फिलहाल नुकसान होने नहीं जा रहा है, लेकिन जिस तरह भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई, उससे ऐसा लगता है कि शेयर बाजार ट्रंप को लेकर सुनिश्चित नहीं कि उनके फार्मा टैरिफ का दायरा केवल पेटेंट दवाओं तक ही सीमित रहने वाला है।
जो भी हो, ट्रंप के एक अक्टूबर से प्रभावी होने वाली दवाओं पर सौ प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले ने भारत की फार्मा कंपनियों को यह संदेश तो दे ही दिया कि वे उनके भावी कदमों को लेकर सतर्क रहें। उन फार्मा कंपनियों को तो सर्तकता बरतनी ही चाहिए, जो जेनरिक के साथ पेटेंट दवाएं भी अमेरिका को बेचती हैं या फिर बेचने का इरादा रखती हैं।
भले ही ट्रंप के दवाओं पर टैरिफ लगाने से यूरोपीय देशों की वे कंपनियां ही अधिक प्रभावित हुई हों, जो उसे पेटेंट दवाओं की आपूर्ति करती हैं, लेकिन भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि इसके पहले अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ थोप रखा है। इसके अलावा ट्रंप ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत को दी गई रियायत को खत्म कर चुके हैं और अभी हाल में एच-1 बी वीजा की फीस में अप्रत्याशित वृद्धि कर चुके हैं।
उनके ये तीनों ही कदम भारतीय हितों पर चोट करने वाले हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति रूस से तेल खरीदने के कारण भारत को तो निशाना बना रहे हैं, लेकिन चीन और तुर्किये के खिलाफ कोई कदम उठाने से इन्कार कर रहे हैं। यह ठीक है कि भारत के अडिग रहने और अमेरिका के दोहरे मानदंडों को बेनकाब करने के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के प्रति अपने कठोर रुख को नरम किया है, लेकिन बात तब बनेगी, जब दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार समझौता हो जाता है।
भारत की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह यथाशीघ्र इस समझौते को अंतिम रूप दे और ऐसा करते समय अपने हितों की रक्षा करे। यदि ऐसा हो जाए तो भी भारत को स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। आत्मनिर्भर भारत के सपने को तभी साकार किया जा सकता है, जब भारतीय उद्योग जगत विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा।
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