शिवकांत शर्मा। अमेरिका की गिनती संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों एवं संरक्षकों में होती है। इसी संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने संबोधन में यूरोपीय देशों को शरणार्थियों और आप्रवासियों के विरुद्ध उकसाने की कोशिश की। जबकि शरणार्थियों की सहायता यूएन की स्थापना का एक प्रमुख उद्देश्य है, क्योंकि वह मानवाधिकारों की रक्षा में शामिल है।

अपने संबोधन में ट्रंप ने कहा घुसपैठिये आप्रवासियों की फौज यूरोप की विरासत को ध्वस्त कर रही है और यूएन शरणार्थियों के लिए सहायता देकर इस संकट को गंभीर बना रहा है। याद रहे कि इस महीने की शुरुआत में कुछ दक्षिणपंथियों ने लंदन के मध्यवर्ती इलाके में एक विशाल विरोध जुलूस निकाला था, जिसमें लगभग 1.5 लाख लोगों ने भाग लिया था। उसमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं और दर्जनों पुलिसकर्मियों को चोट लगी।

पिछली एक सदी से चले आ रहे आप्रवासन के कारण लंदन एक बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक महानगर बन चुका है। यहां की आबादी में 41 प्रतिशत से अधिक आप्रवासी हैं। पश्चिमोत्तरी, पूर्वी और मध्य लंदन के दस से अधिक जिलों में आप्रवासी 55 से 60 प्रतिशत हो चुके हैं। महापौर पाकिस्तानी मूल के आप्रवासी हैं।

यहां समस्या घुसपैठियों की है, जो फ्रांस और ब्रिटेन के बीच पड़ने वाली इंग्लिश चैनल को छोटी-छोटी नौकाओं और डोंगियों से पार करते हैं। इनमें से अधिकतर अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के होते हैं। इनकी संख्या कोविड महामारी के समय तेजी से बढ़कर 45 हजार सालाना का आंकड़ा पार कर गई थी, जिसकी वजह से सुनक सरकार गिरी। प्रधानमंत्री स्टार्मर की सरकार के उपायों से घुसपैठ में कुछ कमी तो आई, पर वह पर्याप्त नहीं थी। इसीलिए यह सरकार भी डगमगा रही है।

सवाल उठता है कि इतने गहरे जातीय और सांस्कृतिक मिश्रण के बाद अब अचानक यूरोप और अमेरिका में आप्रवासन इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा क्यों बन रहा है? इसकी आर्थिक और सांस्कृतिक दो वजहें हैं। यूरोप और अमेरिका दोनों जगह आम आदमी की आर्थिक उन्नति पिछले दो-तीन दशकों से धीमी पड़ी हुई है।

पहले सूचना प्रौद्योगिकी और अब यंत्रबुद्धि की क्रांति के कारण कारोबारों, उद्यमियों और मैनेजरों के वेतन और लाभ तो बढ़े हैं, लेकिन आम आदमी के वेतन बढ़ती महंगाई और खर्चों की बराबरी नहीं कर पा रहे हैं। रोजगार तेजी से घट और बदल रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेंशन और जनकल्याण के खर्चे तेजी से बढ़ने के कारण सरकारों के बजट घाटे बढ़ते जा रहे हैं। लोगों में रोष है, क्योंकि सरकारें उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रही हैं।

जनता में सीमित साधनों से पैदा होते इस रोष को अवसरवादी नेता आप्रवासियों की तरफ मोड़ रहे हैं, जिन्हें निशाना बनाना आसान है। इस कहानी का दूसरा पहलू यह भी है कि घटती जन्मदर, बढ़ती औसत आयु वाले समाज में कामकाजी लोगों की और नई तकनीक के लिए नई कुशलता वालों की बढ़ती मांग को आप्रवासियों के बिना पूरा करना संभव नहीं। उसकी पूर्ति के बिना आर्थिक विकास तो दूर आर्थिकी को चलाया भी नहीं जा सकता। इसलिए आप्रवासन इन देशों की जरूरत है, बशर्ते वह सुनियोजित एवं नियंत्रित हो।

दूसरी वजह सांस्कृतिक है। ब्रिटिश कंजर्वेटिव पार्टी की नेता कैमी बैडनोक नाइजीरियाई मूल की आप्रवासी हैं। उन्होंने कहा, ‘सांस्कृतिक और जातीय विविधता समाज को स्वस्थ और प्रगतिशील बना सकती है, बशर्ते आप्रवासी समुदाय मेजबान समुदाय और उसकी संस्कृति के साथ घुल-मिलकर रहने की कोशिश करे। अपनी पहचान और संस्कृति के साथ-साथ मेजबान समुदाय की परंपरा और संस्कृति को सीखे और उसका आदर करे। जो आप्रवासी समुदाय ऐसा नहीं करते वहां टकराव होना अवश्यंभावी है।’ उनका इशारा मुस्लिम समुदाय के लिए बढ़ती शरीया अदालतों की तरफ था।

ब्रिटेन में 84 शरीया अदालतें कायम हो गई हैं। इसके बावजूद लगभग दो दशकों तक पाकिस्तानी मूल के लोगों के गिरोह आक्सफोर्ड समेत एक दर्जन से अधिक शहरों में अंग्रेज किशोरियों को फुसला कर उनसे दुराचार करते रहे। ग्रूमिंग गैंग नामक इस जघन्य कांड की जांच से पता चला कि पाकिस्तानी गैंग अंग्रेज किशोरियों की वेशभूषा और खुलेपन को उनके घटिया चरित्र की निशानी मानकर उनका इस्तेमाल करना जायज समझ रहे थे।

मेजबान समाज को अपने सांस्कृतिक मूल्यों के चश्मे से देखने वाली ऐसी हरकतें समूचे आप्रवासी समुदाय के प्रति शक और नफरत की आधारभूमि तैयार करती हैं। जांच से यह भी पता चला है कि इस कांड की हवा लगने के बावजूद दशकों तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि जिन इलाकों में यह सब हुआ वे आप्रवासियों के वोटबैंक माने जाते हैं।

आप्रवास पर निर्णय होने तक घुसपैठियों के भी भोजन-आवास की व्यवस्था का दारोमदार सरकार का होता है। पर्याप्त संख्या में आवास न होने के कारण उन्हें होटलों में रखना पड़ता है। लंदन के बीसियों होटल फैसले का इंतजार करते घुसपैठियों से ही भरे हैं। अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य और जनसेवाओं में हो रही कटौतियों से परेशान लोग जब होटलों को घुसपैठियों से भरा देखते हैं तो रोष उठना स्वाभाविक है।

ऊपर से पूर्वी लंदन के एक होटल में एक सोमाली घुसपैठिये ने चौदह वर्ष की एक स्थानीय अंग्रेज बच्ची और एक महिला के साथ दुराचार का प्रयास किया। इस घटना से उत्तेजित स्थानीय लोगों ने घुसपैठियों को होटल से भगाने के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिए। ऐसे प्रदर्शन बाकी शहरों के उन होटलों के बाहर भी होने लगे, जिनमें घुसपैठियों को रखा जा रहा था।

ऐसी घटनाओं से लंदन में हुए विशाल आप्रवासी विरोधी प्रदर्शन की आधारभूमि तैयार हुई। यह सही है कि ब्रिटेन और अमेरिका समेत पश्चिम के लगभग सभी देशों में भारत के आप्रवासियों की छवि शिक्षित, शांत, मेहनती और महत्वाकांक्षी समुदाय की है, परंतु सभी आप्रवासी समुदाय एक से नहीं हैं और एक या दो की अवांछनीय हरकतें भी पूरे समुदाय के खिलाफ माहौल खड़ा कर सकती हैं। इसलिए भारतीय समुदाय को भी सचेत रहने की जरूरत है।

(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)