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Coronavirus: लोगों को ऐसे बीमार बनाते आ रहे हैं जानवर, इन लोगों को है सबसे ज्यादा खतरा

Coronavirus पिछले 50 सालों में संक्रामक बीमारियां जानवरों से मनुष्यों में बहुत तेजी से पहुंची हैं। 1980 में सामने आया एचआइवी/एड्स संकट बंदरों के कारण सामने आया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 08:39 AM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 12:24 AM (IST)
Coronavirus: लोगों को ऐसे बीमार बनाते आ रहे हैं जानवर, इन लोगों को है सबसे ज्यादा खतरा
Coronavirus: लोगों को ऐसे बीमार बनाते आ रहे हैं जानवर, इन लोगों को है सबसे ज्यादा खतरा

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Coronavirus : भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में कोरोना पहुंच चुका है। नई संक्रामक बीमारियों के प्रकोप से दुनिया पहले भी परेशान होती रही है, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है और वो इसलिए कि लोगों के संक्रमित होने और मौतों का आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ा है। यह नया वायरस वन्यजीवों के प्रति हमारी सोच को उजागर करता है। साथ ही पशुजनित रोगों के बारे में हमारे जोखिम को भी बताता है। भविष्य में यह समस्या से ज्यादा आगे बढ़ सकता है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन और वैश्विकरण के चलते मनुष्यों और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ रहा है।

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बीमार बना रहे जानवर

पिछले 50 सालों में संक्रामक बीमारियां जानवरों से मनुष्यों में बहुत तेजी से पहुंची हैं। 1980 में सामने आया एचआइवी/एड्स संकट बंदरों के कारण सामने आया था। वहीं 2004-07 के बीच एवियन फ्लू पक्षियों से और 2009 में स्वाइन फ्लू का कारण सुअर थे। हालिया मामलों में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम(सार्स) चमगादड़ों के जरिए मनुष्यों तक पहुंचा तो वहीं चमगादड़ों ने ही हमें इबोला दिया। मनुष्य हमेशा से ही जानवरों से रोग प्राप्त करते आ रहे हैं। हालांकि यह तथ्य है कि ज्यादातर नई संक्रामक बीमारियां वन्यजीवों से आ रही हैं।

ऐसे पहुंचती है बीमारियां

ज्यादातर जानवरों में रोगाणु होते हैं, इनसे बीमारियों का खतरा होता है। रोगाणुओं का जीवन नए संक्रमित मेजबान पर निर्भर करता है और इसी तरह से वो दूसरी प्रजातियों में पहुंचता है। नए मेजबान की प्रतिरोधक क्षमता इस रोगाणु को खत्म करने की कोशिश करती है।

सबसे ज्यादा खतरा इन्हें

नई बीमारी, नए मरीजों में अक्सर खतरनाक होती है। यह इसलिए क्योंकि कोई भी उभरती बीमारी चिंता का विषय होती है और उसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं होता है। कुछ समूह अन्य की तुलना में बीमारी की चपेट में आने के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। सफाई के काम में लगे लोगों के बीमारियों के चपेट में आने की ज्यादा संभावना होती है। पोषण की कमी, स्वच्छता का अभाव या साफ हवा न होने के कारण इन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने लगती है। वहीं नए संक्रमण बड़े शहरों में तेजी से फैल सकते हैं, क्योंकि भीड़ में लोग उसी हवा में सांस लेते हैं और समान सतहों को छूते हैं। कुछ संस्कृतियों में लोग भोजन के लिए शहरी वन्यजीवों का भी उपयोग करते हैं। ये कारण भी बीमारियों के फैलने में सहायक होते हैं।

बचाव के लिए करें ये

समाज और सरकारें नए संक्रामक रोग को स्वतंत्र संकट मानती हैं, बजाय इसके कि वे यह पहचानें कि दुनिया कैसे बदल रही है। जितना हम पर्यावरण को बदलते हैं, उतनी ही संभावना है कि हम पारिस्थितिकी को बाधित करते हैं और बीमारी उभारने में के अवसर प्रदान करते हैं। 10 फीसद रोगाणुओं का रिकॉर्ड रखा गया है, शेष की पहचान के लिए अधिक संसाधन चाहिए। जिससे पता लगाया जा सके कि कौनसे जानवर इसके वाहक हैं। स्वच्छता, अपशिष्ट निपटान और कीट नियंत्रण से बीमारियों को फैलने से रोक सकते हैं।

बदलाव बढ़ा रहा खतरा

वातावरण और जलवायु परिवर्तन जानवरों की आदतों में बदलाव कर रहे हैं। वहीं मनुष्यों के जीवन में भी परिवर्तन आ रहा है। दुनिया की 55 फीसद आबादी शहरों में रहने लगी है जो 50 साल पहले 35 फीसद थी। बड़े शहर वन्यजीवों को नया आवास उपलब्ध करा रहे हैं। बहुतायत में खाद्य आपूर्ति की वजह से वन्यजीवों की प्रजातियां शहरों में जंगल की तुलना में ज्यादा सुरक्षित रहती हैं और शहर बीमारियों के विकसित होने वाले स्थान बन जाते हैं।

इस तरह कर रही प्रभावित

बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए संभावित आर्थिक परिणाम स्पष्ट हैं। संक्रमण की संभावना से कई देशों ने यात्रा प्रतिबंध लगाए हैं। इससे सीमाओं को पार करना कठिन होता है और आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है। आर्थिक रूप से ऐसी बीमारियां बहुत घातक सिद्ध होती हैं। 2003 में सार्स के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को छह महीने में अनुमानित करीब 40 बिलियन डॉलर (28 खरब 49 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ था।

भविष्य में बीमारियों का प्रकोप

जिस तरह से नए रोग लगातार सामने आ रहे हैं और फैल रहे हैं उससे नई प्रकार की महामारियां हमें लड़ने के लिए मजबूत स्थिति में ला रही हैं। यह हमारे भविष्य का अनिवार्य हिस्सा होंगी। एक सदी पूर्व स्पेनिश फ्लू ने करोड़ों लोगों को संक्रमित किया था और बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। विज्ञान की प्रगति और वैश्विक स्वास्थ्य में भारी निवेश से इस तरह की बीमारी में बेहतर बचाव हो सकेगा। दूसरा पहलू ये भी है कि शहरीकरण और असमानता बढ़ती है या फिर जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ता है तो हमें उभरती बीमारियों बढ़ते जोखिम के रूप में पहचान करनी चाहिए।

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