विचार: सौ वर्षों की स्वर्णिम विरासत, यूपीएससी स्थापना के 100 वर्ष
आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के साथ यूपीएससी के शताब्दी वर्ष का उत्सव मनाते हुए हम सभी अपनी विरासत की मजबूती और समग्र समाज द्वारा इस संस्थान में व्यक्त विश्वास से अभिभूत और प्रेरित हैं। हम दोहराते हैं कि ईमानदारी निष्पक्षता और उत्कृष्टता के इस स्वर्ण मानक को बनाए रखेंगे। आगे बढ़ाने का हमारा संकल्प अटल है।
डॉ. अजय कुमार। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश करते हुए एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर खड़ा है। लोक सेवा आयोगों (पीएससी) की परिकल्पना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने संवैधानिक निकायों, सिविल सेवाओं में योग्यता के संरक्षक के रूप में की थी। इसी सोच के साथ यूपीएससी को केंद्रीय सिविल सेवाओं के अधिकारियों की भर्ती, पदोन्नति और अनुशासन संबंधी मामलों में अहम भूमिका सौंपी गई।
पिछले सौ वर्षों में इसकी विकास यात्रा केवल एक संस्थान का इतिहास नहीं है, बल्कि भारत के उस गहरे विश्वास का प्रतीक है, जो निष्पक्षता, विश्वास और सत्यनिष्ठा पर आधारित है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग-14 में अनुच्छेद 315 से 323 तक के तहत संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों को विशेष दर्जा दिया।
इसका उद्देश्य उनकी स्वतंत्रता और स्वायत्तता सुनिश्चित करना था, ताकि भर्ती, पदोन्नति और अनुशासन संबंधी मामलों में कोई दबाव या पक्षपात न हो। यह उनके दूरदर्शी विचारों का प्रमाण है कि यह संस्था आज भी योग्यता, भरोसे और ईमानदारी के सिद्धांतों पर मजबूती से खड़ी है। इसके जरिये दुनिया के सबसे विविधतापूर्ण एवं सबसे बड़े लोकतंत्र में शासन के विशाल कार्यभार का संचालन होता है।
यूपीएससी की इस ऐतिहासिक यात्रा में केवल प्रशासनिक निरंतरता ही नहीं दिखती, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों पर बढ़ते भरोसे का भी प्रतीक है। शुरुआती वर्षों में यूपीएससी कुछ ही परीक्षाएं आयोजित करता था, पर आज यह एक बड़ा और विविध कार्यक्षेत्र संभाल रहा है। आज प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा से लेकर इंजीनियरिंग, वानिकी, चिकित्सा, सांख्यिकी और कई अन्य सेवाओं के लिए भर्ती का दारोमदार यूपीएससी के पास है।
इसका दायरा बढ़ा है, पर इसका मूल दायित्व वही है-देश की सेवा के लिए सबसे योग्य प्रतिभाओं का चयन करना। सिविल सेवा परीक्षा का लाजिस्टिक कार्य भी असाधारण है। प्रारंभिक परीक्षा 2,500 से अधिक स्थानों पर आयोजित होती है। प्रारंभिक परीक्षा के लिए लगभग 10–12 लाख अभ्यर्थी आवेदन करते हैं।
मुख्य परीक्षा में चुनौती और जटिल हो जाती है, जहां विभिन्न केंद्रों पर प्रत्येक उम्मीदवार को उसकी ओर से चयनित विषय का प्रश्नपत्र उपलब्ध कराना होता है। यह चुनौती तब और बढ़ जाती है, जब दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है, जैसे सहायक लेखक की सुविधा। दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को बड़े फांट में प्रश्न पत्र दिए जाते हैं।
यदि यूपीएससी का इतिहास उसकी बुनियाद है, तो भरोसा, ईमानदारी और निष्पक्षता उसके स्तंभ हैं। दशकों से लाखों अभ्यर्थियों ने आयोग पर विश्वास जताया है कि सफलता या असफलता सिर्फ उनकी योग्यता पर निर्भर करेगी। यह विश्वास यूं ही नहीं बना। इसे बड़ी मेहनत और ईमानदारी से गढ़ा गया है।
प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, मूल्यांकन में निष्पक्षता और गलत तरीकों के खिलाफ सख्त रुख से यह संभव हुआ है। प्रश्नपत्र बनाने से लेकर परीक्षा आयोजन और मूल्यांकन तक प्रत्येक चरण में ईमानदारी का परिचय दिया जाता है। ईमानदारी से आशय है संस्था को राजनीतिक या बाहरी दबावों से बचाना, गोपनीयता बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना कि सर्वाधिक योग्य ही चयनित हों।
निष्पक्षता का अर्थ है सभी अभ्यर्थियों को समान अवसर देना-चाहे वे शहर से हों या गांव से, संपन्न हों या वंचित, अंग्रेजी में निपुण हों या न हों। हमारे जैसे विविधतापूर्ण देश में जहां कई स्तरों पर असमानता बनी हुई है, वहां यूपीएससी परीक्षाओं को समान अवसर का मैदान माना जाता है। संस्थान के लिए यह गर्व से भरी उपलब्धि है।
आज जब हम यूपीएससी का शताब्दी समारोह मना रहे हैं, तो हम उन गुमनाम नायकों को भी सम्मानित करें, जिनकी वजह से यह सफलता संभव हुई। इनमें प्रश्न तैयार करने और मूल्यांकन करने वाले विशेषज्ञ प्रमुख हैं। ये आयोग की अदृश्य रीढ़ हैं। ये देश के बेहतरीन विषय विशेषज्ञ हैं। अपने क्षेत्रों में सिरमौर होने के बावजूद बिना किसी पहचान या प्रसिद्धि की चाह में वे समर्पण के साथ काम करते हैं।
उनका सूक्ष्म कार्य, निष्पक्ष निर्णय और उत्कृष्टता के प्रति अडिग प्रतिबद्धता यूपीएससी की क्षमता का आधार रही है, जो परीक्षा प्रक्रिया को निष्पक्ष, पारदर्शी और मजबूत बनाती है। यही कारण है कि आयोग ने देश का भरोसा जीता और समय की हर कसौटी पर खरा उतरा। मैं व्यक्तिगत रूप से उनका धन्यवाद करता हूं, जिनकी निःस्वार्थ सेवा सुनिश्चित करती है कि लाखों उम्मीदवारों के सपनों और आकांक्षाओं का मूल्यांकन निष्पक्षता, कड़ाई और पूरी ईमानदारी के साथ हो।
शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे आयोग के लिए यह क्षण केवल उत्सव का नहीं, बल्कि व्यापक मंथन का भी है। शताब्दी वर्ष हमारे लिए अतीत का सम्मान करने, वर्तमान का जश्न मनाने और अगले सौ साल की दृष्टि तय करने का भी अवसर है। जैसे-जैसे भारत दुनिया में अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और तकनीकी प्रगति मौजूदा शासन माडल में बदलाव ला रही हैं।
ऐसे में एक संस्थान के रूप में यूपीएससी इन बदलावों के अनुसार खुद को ढालेगा, ताकि यह भारतीय लोकतंत्र में निष्पक्षता और अवसर का प्रकाश स्तंभ बना रहे। इस दिशा में समयानुकूल प्रयास भी आरंभ हो गए हैं। नए आनलाइन आवेदन पोर्टल से अभ्यर्थियों के लिए आवेदन प्रक्रिया आसान हो गई है। फेस रिकग्निशन तकनीक किसी भी धोखाधड़ी को रोकने में मददगार बनेगी।
हम चयनित उम्मीदवारों की तलाश के साथ-साथ उनकी मदद भी कर रहे हैं, जो हमारी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं। प्रतिभा सेतु जैसी पहल भी उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान कर रही है, जो फाइनल पर्सनालिटी टेस्ट तक पहुंचते हैं, पर अंतिम सूची में नहीं आ पाते। क्षमताओं को और बढ़ाने की दिशा में एआइ के प्रयोग को भी अपनाया जा रहा है।
आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के साथ यूपीएससी के शताब्दी वर्ष का उत्सव मनाते हुए हम सभी अपनी विरासत की मजबूती और समग्र समाज द्वारा इस संस्थान में व्यक्त विश्वास से अभिभूत और प्रेरित हैं। हम दोहराते हैं कि ईमानदारी, निष्पक्षता और उत्कृष्टता के इस स्वर्ण मानक को बनाए रखेंगे। आगे बढ़ाने का हमारा संकल्प अटल है।
(लेखक यूपीएससी के अध्यक्ष हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।