[संजय गुप्त]। मोदी सरकार ने 2024 के आम चुनाव के पहले अपने आखिरी पूर्ण बजट के जरिये देशवासियों को प्रोत्‍साहन देने के साथ यह संदेश भी दिया कि वे अगले 25 वर्षों में देश को विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ें। यह संदेश देने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा कि अमृतकाल के इस पहले बजट ने विकसित भारत के संकल्प की पूर्ति के लिए आधार प्रदान किया है। प्रधानमंत्री मोदी यह संदेश देने में एक बड़ी हद तक इसलिए सफल रहे, क्योंकि वित्त मंत्री की ओर से पेश बजट देश के विकास में गरीबों, किसानों, महिलाओं एवं युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने वाला है। इसके साथ ही बजट के जरिये सरकार ने आधारभूत ढांचे का निर्माण करने के अतिरिक्त स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा पर भी विशेष ध्‍यान दिया है।

बजट में मध्‍य वर्ग को इन्कम टैक्‍स में जो राहत दी गई, उसे कुछ लोग चुनावी रणनीति के रुप में देख रहे हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में लगातार कर का संग्रह बढ़ रहा है और विकास दर छह प्रतिशत से अधिक रहने के आसार हैं। इसी कारण मध्य वर्ग को कर राहत मिल सकी। यदि अर्थव्यस्था इसी गति से आगे बढ़ती रहे तो भविष्य में भी कर राहत मिल सकती है।

चूंकि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं, इसलिए यह मानकर चला जा रहा था कि बजट में लोक लुभावन योजनाएं होंगी, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रेवड़ी संस्कृति अपनाने के बजाय अपने चिरपरिचित अंदाज में बजट तैयार कराया, जिसमें सबसे अधिक महत्‍व विकास को दिया गया। इसी कारण आधारभूत ढांचे के मद में दस लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए। इससे बुनियादी ढांचे का विकास होने के साथ उद्योगों को भी लाभ मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इस तरह रेलवे के पूंजी आवंटन में भारी वृद्धि की गई है। इस बजट में रेलवे को 2.41 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इससे रेल यात्रा सुगम होने के साथ माल की ढुलाई बढ़ने की उम्मीद है।

रेलवे की तरह बजट में सड़क और परिवहन पर भी ध्यान देना समय की मांग थी। इस क्षेत्र में फिलहाल कई चुनौतियां है, जो सड़क निर्माण की इंजीनिरिंग को लेकर सामने आई हैं। सड़क परियोजनाओं का लंबित होना भी एक चुनौती है। बजट में सड़क एवं परिवहन क्षेत्र को बल देने के लिए प्रविधान तो कई वर्षों से किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी विश्‍व स्‍तरीय राजमार्ग नहीं बन पाए हैं और न ही यातायात सुगम हो पाया है। आशा की जानी चाहिए कि अब इस पर ध्यान दिया जाएगा और सड़कों के रखरखाव के साथ उनकी इंजीनियरिंग को और बेहतर किया जाएगा।

देश का विकास शहरों से निकलेगा, इस बात को बजट में भी माना गया और नगर निकायों यह संदेश दिया गया कि वे अपनी क्षमता बढाएं और आत्‍मनिभर बनें। इसके लिए शहरी निकायों को संपत्ति कर संबंधी सुधार आगे बढ़ाने होंगे और शहरी ढांचे के लिए यूजर चार्ज की प्रणाली अपनानी होगी। बजट में सरकार ने यह स्‍पष्‍ट कर दिया कि शहरी निकायों को पैसा जुटाने के लिए म्‍यूनिसिपल बांड की दिशा में बढ़ना होगा। यह तभी होगा, जब वे अपनी अपनी साख बेहतर करेंगे। चूंकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से पर्यावरण लगातार दूषित एवं गरम हो रहा है और इसे लेकर विकसित देश अपनी जिम्‍मेदारी पूरी नहीं कर रहे हैं, इसलिए भारत की चुनौती बढ़ गई है। इसी कारण भारत अपने उत्‍सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है।

बजट में नेट जीरो उत्‍सर्जन का लक्ष्‍य पाने के लिए और ग्रीन हाइड्रोजन एवं ऊर्जा बदलाव के लिए 35 हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इसी तरह की दूरदर्शिता सहकारिता क्षेत्र में दिखाई गई है। वास्तव में जबसे सहकारिता मंत्रालय गठित हुआ है, तब से सहकारिता क्षेत्र में मोदी सरकार ने तमाम क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। इस बजट में भी प्रविधान है कि सहकारी समितियां गांव-गांव अनाज भंडारण के लिए गोदाम बनाएंगी। इससे जहां किसानों को उचित समय पर अपनी उपज बेचने की सहूलियत मिलेंगी, वहीं सहकारी समितियां आर्थिक रुप से मजबूत होंगी।

विश्‍व में तकनीक के जरिये जो क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं, भारत उनसे अछूता नहीं है। भारत में मोबाइल फोन क्रांति एक मिसाल है। बजट बताता है कि सरकार का 5जी तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर विशेष ध्‍यान है। चूंकि गर्वनेंस में 5जी तकनीक का बहुत महत्‍व रहेगा इसलिए सरकार ने उस पर भी ध्‍यान दिया है। तकनीक के अलावा कृषि क्षेत्र में जो आवंटन किए गए, उनसे यही पता चलता है कि किसान कल्‍याण सरकार की प्राथमिकता में है। किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास जारी रखने के लिए बजट में 1.25 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इसके बाद यह कहने का कोई मतलब नहीं कि किसान सरकार की वरीयता में नहीं।

इस पर आश्चर्य नहीं कि विपक्ष को बजट में कुछ भी पसंद नहीं आया। यह राजनीतिक पैंतरेबाजी है, इसका पता राहुल गांधी के इस बयान से चलता है कि मित्र काल में आए बजट में नौकरियां पैदा करने के लिए कोई नजरिया नहीं और न ही महंगाई से निपटने की योजना है। उनके अनुसार सरकार का असमानता दूर करने का भी कोई इरादा नहीं है। ऐसे ही बयान अन्य कांग्रेसी और दूसरे दलों के नेताओं के भी हैं। अच्छा होता कि कांग्रेस बजट को राजनीतिक नजरिये से देखने के बजाय आर्थिक दृष्टि से देखती। इसके साथ ही इस पर भी गौर करती कि मनमोहन सरकार के समय किस तरह लोक लुभावन बजट पेश किए जाते थे। इसी कारण नीतिगत पंगुता की स्थिति बनी थी और विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा था।

विपक्ष कुछ भी कहे, कोई भी सरकार अपने बलबूते बेरोजगारी दूर करने का काम नहीं कर सकती। रोजगार के भरपूर अवसर पैदा करने के लिए सरकार को ऐसा माहौल बनाना होता है, जिससे निजी निवेश बढ़े। इस बजट के जरिये यही करने की कोशिश की गई है। सरकार उत्‍पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है। उसे चाहिए कि वह उत्‍पादन बढ़ाने के साथ सेवा क्षेत्र को विकसित करने पर भी विशेष ध्यान दे, ताकि दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार का सृजन लगातार होता रहे।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]