जाति जनगणना कराने की घोषणा के बाद अन्य अनेक मांगों के साथ आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत जताए जाने के बीच सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ध्यान देने योग्य है कि आरक्षण व्यवस्था रेल के डिब्बे जैसी हो गई है। जो लोग रेल के डिब्बे में बैठ जाते हैं, वे नहीं चाहते कि उसमें अन्य लोग प्रवेश करें।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के आरक्षण से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए की, लेकिन उसने ऐसा कहकर आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था की विसंगतियों को तो रेखांकित कर ही दिया। जैसे यह सही है कि आरक्षण सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ गए वर्गों के उत्थान का एक उपाय है, वैसे ही यह भी कि उसकी व्यवस्था खामियों से ग्रस्त है।

इसके चलते आरक्षित वर्गों की अपेक्षाकृत कुछ समर्थ जातियां आरक्षण का अधिकतम लाभ उठाने में समर्थ हैं। यह स्थिति एससी-एसटी आरक्षण में भी देखने को मिलती है और ओबीसी आरक्षण में भी। इसका एक कारण यह भी है कि सामाजिक न्याय की बातें करने वाले राजनीतिक दलों के नेता जब सत्ता में आए तो उन्होंने अपनी जाति वालों पर विशेष कृपादृष्टि रखी।

आरक्षण की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिससे आरक्षित वर्गों की जो भी जातियां सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से सबसे पीछे रह गई हैं, उन्हें उसका लाभ सबसे अधिक भी मिले और पहले भी। दावे चाहे जो किए जाएं, अभी ऐसा नहीं है और इसका प्रमाण यह है कि ओबीसी समुदाय की कई जातियां प्रायः खुद को एससी या एसटी घोषित करने की मांग करती रहती हैं। उन्हें लगता है कि ओबीसी वर्ग में रहते हुए उन्हें आरक्षण का लाभ लेना कठिन है।

आरक्षण व्यवस्था कैसे रेल के डिब्बे सरीखी हो गई है, इसका संकेत तब मिला था, जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण को उचित ठहराया था। इस फैसले का विरोध उन नेताओं ने सबसे अधिक किया था, जो स्वयं को सामाजिक न्याय का सिपाही कहते नहीं थकते।

वे आरक्षण में उपवर्गीकरण का विरोध इसीलिए कर रहे थे, ताकि प्रगति की दौड़ में सबसे पीछे रह गए लोग प्राथमिकता के आधार पर अपने हिस्से का लाभ न उठा सकें और उनका वोट बैंक एकजुट रहे।

इसकी भी अनदेखी न की जाए कि जब कभी ओबीसी आरक्षण में उपवर्गीकरण की पहल की गई तो उसका भी विरोध हुआ और शायद इसी कारण इसी उद्देश्य के लिए गठित रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आ सकी।

जो भी हो, समय की मांग है कि जाति जनगणना कराने के साथ ही एससी-एसटी एवं ओबीसी आरक्षण की विसंगतियों को दूर किया जाए, ताकि पात्र लोगों को आरक्षण का लाभ मिलना सुनिश्चित हो सके। इससे ही सामाजिक न्याय के उद्देश्य की सही तरह पूर्ति हो सकेगी।