जागरण संपादकीय: सुप्रीम कोर्ट की चिंता, सेवानिवृत्ति से पहले न्यायाधीशों का अनेक आदेश पारित करना अंतिम ओवर में छक्के मारने जैसा
न्यायपालिका और विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट को यह समझना होगा कि यदि ठोस न्यायिक सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ा गया तो न्यायिक तंत्र को लेकर उठने वाली चिंताएं बढ़ती ही रहनी हैं।
HighLights
सेवानिवृत्ति से पहले न्यायाधीशों के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित
न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया
भ्रष्टाचार और लंबित मुकदमे अभी भी बड़ी समस्या
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करके अपनी अप्रसन्नता प्रकट करने के साथ ही न्यायपालिका की एक और विसंगति की ओर ही संकेत किया कि सेवानिवृत्ति से ठीक पहले न्यायाधीशों का अनेक आदेश पारित करना अंतिम ओवर में छक्के मारने जैसा है, लेकिन केवल इतने से समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। यह कोई नई बात नहीं कि सेवानिवृत्ति से ठीक पहले न्यायाधीशों द्वारा कई आदेश पारित करने का चलन लंबे समय से कायम है।
इस पर कई बार प्रश्न उठे हैं। बीते दिनों यह प्रश्न एक याचिका की शक्ल में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी पहुंचा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने का आदेश दिया, लेकिन प्रश्न यह है कि उसने जिस प्रवृत्ति की ओर चिंता जताई, उसका समाधान निकाला जाएगा या नहीं? इसका औचित्य नहीं कि न्यायपालिका की विसंगतियों पर चिंता तो जताई जाए, लेकिन उनका समाधान न निकाला जाए।
यह एक तथ्य है कि न्यायपालिका में वैसे सुधार नहीं हो रहे हैं, जैसे अनिवार्य हो गए हैं। जो छोटे-मोटे सुधार हो भी रहे हैं, वे मूल समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं। सुगम तरीके से और समय पर न्याय मिलना पहले की ही तरह कठिन बना हुआ है। लंबित मुकदमों का बोझ भी कम होता नहीं दिख रहा है। उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर उठे सवालों का भी कोई समाधान नहीं निकल रहा है।
अन्य अनेक समस्याओं के साथ न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ किस तरह कुछ नहीं किया जा पा रहा है, इसका ताजा उदाहरण है भ्रष्टाचार के चलते महाभियोग का सामना कर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा का इस शिकायत के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना कि उनके खिलाफ लोकसभा स्पीकर द्वारा गठित जांच कमेटी नियम विरुद्ध है।
इस शिकायत से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव से जवाब भी मांग लिया। इस याचिका पर अंतिम निर्णय़ जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह गंभीर आरोपो से घिरने के बाद भी अपने पद पर बने हुए हैं। हाल-फिलहाल उनके मामले का निपटारा होने के कोई आसार नहीं।
यह ध्यान रहे कि कदाचार के आरोपों से घिरे उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों को महाभियोग के जरिये ही हटाया जा सकता है और अभी तक किसी जज के मामले में वह सफल नहीं हो सका है। इसका यह मतलब नहीं कि न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे, उनमें कोई सत्यता नहीं थी। न्यायपालिका और विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट को यह समझना होगा कि यदि ठोस न्यायिक सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ा गया तो न्यायिक तंत्र को लेकर उठने वाली चिंताएं बढ़ती ही रहनी हैं।













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