भ्रष्टाचार का भयावह रूप, भ्रष्ट अधिकारी सरकार की आंखों में धूल झोंकने में कैसे हो रहे सफल
सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के यहां से इतनी अधिक संपत्ति मिलना सामान्य बात नहीं। यह केवल आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक कमाई का मामला नहीं। यह बेलगाम भ्रष्टाचार का भयावह मामला है।
सीबीआइ ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम वापकोस यानी वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक राजेंद्र कुमार गुप्ता के विभिन्न परिसरों पर छापेमारी के दौरान जिस तरह लगभग 38 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की, उससे यही पता चलता है कि भ्रष्टाचार किस तरह अपनी जड़ें जमाए हुए है। राजेंद्र कुमार गुप्ता के एक दर्जन से अधिक ठिकानों से केवल 38 करोड़ रुपये नकद ही नहीं मिले, आभूषण संग संपत्तियों के अनेक दस्तावेज भी मिले।
सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के यहां से इतनी अधिक संपत्ति मिलना सामान्य बात नहीं। यह केवल आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक कमाई का मामला नहीं। यह बेलगाम भ्रष्टाचार का भयावह मामला है। यह ठीक है कि आखिरकार सीबीआइ वापकोस के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक तक पहुंच गई, लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर उन्होंने इतनी अकूत संपत्ति कैसे जुटा ली? निःसंदेह यह नहीं माना जा सकता कि यह संपत्ति उन्होंने 2019 में सेवानिवृत्त होने के बाद कंसल्टेंसी के अपने कथित व्यवसाय से अर्जित की होगी।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि यह संपदा सेवा में रहते समय अपने पद और प्रभाव का अनुचित इस्तेमाल करते हुए जुटाई गई होगी। क्या यह कहा जा सकता है कि वह ऐसा करने वाले एकलौते अधिकारी होंगे? वास्तव में ऐसे अधिकारियों की गिनती करना कठिन है और इसका प्रमाण सीबीआइ की ओर से समय-समय पर सरकारी अधिकारियों के यहां की जाने वाली छापेमारी से चलता है। इस छापेमारी के दौरान अनेक अधिकारियों के पास से आय के ज्ञात स्रोतों से कहीं अधिक और कई बार तो बेहिसाब संपदा मिलती है।
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सीबीआइ भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करती रहती है, क्योंकि यह कठिनाई से ही सुनने को मिलता है कि किसी भ्रष्ट अधिकारी को उसके किए की सजा मिली। चूंकि भ्रष्ट अधिकारियों को मुश्किल से ही सजा मिलती है, इसलिए सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इस आम धारणा को गलत नहीं कहा जा सकता कि जो भी सरकारी विभाग निर्माण कार्य कराते हैं या फिर उनके लिए ठेके देते हैं, उनके अफसर करोड़ों के वारे-न्यारे करते हैं।
यह सीबीआइ ही बता सकती है कि वापकोस के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने इतनी अधिक संपदा कैसे जुटा ली, लेकिन इतना तो समझा ही जा सकता है कि भ्रष्ट अधिकारियों की वैसी निगरानी नहीं की जा पा रही, जैसी आवश्यक है। इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा भी कोई उपाय नहीं कि सरकारी तंत्र के तौर-तरीके ऐसे हैं, जिनमें भ्रष्ट अधिकारी दोनों हाथों से अवैध कमाई करने में सक्षम हैं। उनकी यह सक्षमता न केवल शर्मनाक है, बल्कि चिंताजनक भी। सरकार कुछ भी दावा करे, लगता यही है कि भ्रष्ट अधिकारी उसकी आंखों में धूल झोंकने में सफल हैं।
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