जागरण संपादकीय: शासन का विकेंद्रीकरण करे सरकार, प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता
नौकरशाही के अनावश्यक बोझ को घटाने की कवायद अमेरिका में बाकायदा शुरू हो गई है। दूसरा कार्यकाल संभालने से पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने एलन मस्क और विवेक रामास्वामी के नेतृत्व में डिपार्टमेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी का गठन कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। ट्रंप ने अनावश्यक सरकारी खर्च को घटाने के लिए एक समयसीमा भी दी है ।
आदित्य सिन्हा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। इस पहल से 50 लाख केंद्रीय कर्मी और 65 लाख पेंशनर लाभान्वित होंगे। आयोग मौजूदा वेतन, पेंशन एवं भत्तों के ढांचे को महंगाई एवं जीवनयापन की लागत में वृद्धि जैसे वृहद आर्थिक संकेतकों की कसौटी पर कसेगा। विभिन्न हितधारकों के साथ साथ परामर्श के बाद आयोग इसका एक सुसंगत ढांचा तैयार करेगा।
आयोग की अनुशंसाएं स्वीकार किए जाने के बाद कर्मचारियों के वेतन-भत्तों और पेंशन में बढ़ोतरी होगी, जिससे घरेलू उपभोग में तेजी आने के साथ ही समग्र आर्थिक को बड़ा सहारा मिलने की उम्मीद है। जहां तक वेतन आयोग की कार्यप्रणाली का प्रश्न है तो आयोग मुख्य रूप से मूल वेतन एवं महंगाई भत्ते को नए वेतन ढांचे के साथ जोड़कर देखता है और फिर उसमें वास्तविक बढ़ोतरी को जोड़ता है। इस वास्तविक बढ़ोतरी को फिटमेंट फैक्टर कहते हैं। फिटमेंट फैक्टर में महंगाई का दायरा, कर्मियों की जरूरतें एवं वित्तीय बोझ को उठाने की सरकार की क्षमता जैसे पहलू होते हैं।
सातवें वेतन आयोग में आधिकारिक बढ़ोतरी 14.2 प्रतिशत हुई थी, जो संभव है कि उतनी अधिक न लगे, मगर जब इसमें आवास भत्ते यानी एचआरए जैसे अन्य पहलुओं को जोड़ें तो यह काफी अधिक दिखेगी, क्योंकि उसका आकलन नए एवं ऊंचे मूल वेतन के आधार पर किया जाता है। पेंशनरों को भी फिटमेंट फैक्टर का लाभ मिलता है और नए सिरे से आकलन में उनकी पेंशन खासी बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप सरकारी खजाने से खर्च उसकी तुलना में काफी अधिक बढ़ जाता है, जितना प्रथमदृष्टया दिखता है। सातवें वेतन आयोग में वेतन बढ़ोतरी से सरकारी खजाने पर वास्तविक बोझ 24 प्रतिशत बढ़ा था।
आठवें वेतन आयोग से भी सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि सरकारी व्यय का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही वेतन-भत्तों और पेंशन पर खर्च हो रहा है। हालांकि अंतिम रूप से किस वेतनमान पर सहमति बनती है, यह तो राजनीतिक विवेक पर निर्भर होगा, क्योंकि कर्मचारियों की अपेक्षाओं और सरकारी खजाने के बीच संतुलन साधने की चुनौती होगी। इसके बावजूद आसार यही हैं कि आठवें वेतन आयोग में सातवें जितनी वेतन बढ़ोतरी नहीं होगी।
ऐसा इसलिए, क्योंकि एक तो मुद्रास्फीति अपेक्षाकृत नरम है और पिछली बार की तरह पुराने पेंशनरों को एमकुश्त लाभ के दोहराव की उम्मीद कम है, फिर भी नए वेतनमान में मौजूदा की तुलना में खर्च 20 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, जिससे देश के आर्थिक उत्पादन में आधे प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। यह तो निश्चित है कि इसके बाद कर्मचारियों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। हालांकि इससे केंद्रीय बजट पर बोझ भी बढ़ेगा। खासतौर से तब जब सरकार पहले से ही सामाजिक कल्याण एवं विकास कार्यक्रमों पर काफी खर्च कर रही है। आठवां वेतन आयोग लागू होने के बाद बाद राज्य सरकारों पर भी वेतन बढ़ोतरी का दबाव बढ़ेगा।
यह अच्छी बात है कि सरकार वेतन बढ़ोतरी की दिशा में आगे बढ़ रही है, लेकिन यह भी उतना ही आवश्यक है कि वह अपने ढांचे को सुसंगत एवं सुगठित बनाए। यह न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन वाली संकल्पना को साकार करने का एक बढ़िया अवसर है। केंद्र सरकार अपने कर्मियों का दायरा घटाकर नगरीय निकायों और पंचायतों के स्तर पर स्थानीय शासन ढांचे को सशक्त बनाने पर जोर दे। ये स्थानीय संस्थाएं बिजली, पानी, सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर तरीके से चिह्नित कर उन्हें प्रभावी रूप से प्रदान करने में कहीं अधिक सक्षम हो सकती हैं।
शासन-प्रशासन के विकेंद्रीकरण की पहल से सरकार सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता एवं गति बढ़ाने के साथ ही उन्हें और अधिक जवाबदेह बना सकती है। इसके लिए न केवल केंद्र से राज्यों और राज्यों से स्थानीय निकायों को जिम्मेदारियों का भार सौंपना होगा, बल्कि भीमकाय सरकारी ढांचे को भी चुस्त-दुरुस्त बनाना होगा। इसका अर्थ होगा कि कई विभागों का आकार घटाया जाए और एक जैसे विभागों का विलय किया जाए। इससे कार्यों में दोहराव नहीं होगा और सभी अपने एजेंडे की पूर्ति में ही ऊर्जा, समय एवं संसाधन लगाएंगे। इससे एक दूसरे के काम में खलल डालने की परिपाटी भी बंद होगी और शासन का ढांचा लचीला एवं प्रभावी बनेगा। जनता को भी राहत मिलेगी।
नौकरशाही के अनावश्यक बोझ को घटाने की कवायद अमेरिका में बाकायदा शुरू हो गई है। दूसरा कार्यकाल संभालने से पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने एलन मस्क और विवेक रामास्वामी के नेतृत्व में डिपार्टमेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी का गठन कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। ट्रंप ने अनावश्यक सरकारी खर्च को घटाने के लिए एक समयसीमा भी दी है। इस कवायद में संघीय, राज्यीय एवं स्थानीय शासन के ढांचे में उन पहलुओं को चिह्नित करना शामिल है जिससे पता चले कि किसी स्तर पर कार्य में दोहराव तो नहीं हो रहा। इसके जरिये पुराने ढर्रे वाली व्यवस्था से मुक्ति दिलाना भी शामिल है।
उक्त विभाग आधुनिक तकनीक के प्रयोग एवं निजी क्षेत्र के सहयोग से ऐसे सरकारी ढांचे के निर्माण को बल देना चाहता है, जो सक्षम बनकर सार्वजनिक सेवाओं की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक हो। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ के प्रयोग और आटोमेशन यानी स्वचालन को प्रोत्साहन देने संबंधी अहम सुधार भी शामिल हैं।
यह विभाग विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय पर जोर देकर निर्णयन की प्रक्रिया में सुस्ती को दूर करेगा, क्योंकि देरी से अक्सर परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है। तकनीकी नवाचारों पर जोर देने वाले मस्क और बाजार केंद्रित दृष्टिकोण के साथ रामास्वामी अपनी इस पहल के जरिये एक सुगठित एवं पारदर्शी सरकारी ढांचा बनाना चाहते हैं, जो बदल रही सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप तेजी से ढलकर करदाताओं के प्रति अपनी व्यापक जवाबदेही सिद्ध करे।
निःसंदेह आठवां वेतन आयोग लाखों कर्मियों एवं पेंशनरों की आकांक्षाओं की पूर्ति करेगा। अब जब इस आयोग की अनुशंसाएं सरकार का वित्तीय बोझ बढ़ाएंगी, तब वे व्यापक प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकताओं को रेखांकित करने का माध्यम भी बननी चाहिए।
(लेखक लोक-नीति विश्लेषक हैं)
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