विचार: अब हमारा लक्ष्य हो आर्थिक स्वतंत्रता, तेजी से बढ़ रही भारत की प्रगति
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हमें जो स्वतंत्रता दी हम उसका उत्तरोत्तर विस्तार करते हुए आर्थिक और तकनीकी स्वतंत्रता को उतनी ही दृढ़ता से हासिल करें। यही डिजिटल स्वदेशी का सार है यही विकसित भारत का पथ है और यही वह विरासत होगी जो हम आने वाली पीढ़ियों के हाथों में सौंपेंगे।
गुरमीत सिंह। भारत ने स्वतंत्रता के 78 वर्षों की यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। यह यात्रा केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भी रही है। अब जब हम 2047 में विकसित भारत बनने का सपना देख रहे हैं, तब यह समझना आवश्यक है कि ‘राष्ट्र प्रथम’ का संकल्प ही हमें उस स्वर्णिम लक्ष्य तक पहुंचाएगा।
आने वाले 21 वर्ष हमें आर्थिक और तकनीकी महाशक्ति बनने का अवसर दे रहे हैं। भारत के विज्ञानियों, इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों ने दशकों से वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। आज भी सफलता की गाथाएं लिखी जा रही हैं। अंतरिक्ष में चंद्रयान-3 और मंगलयान की सफलता, डिजिटल पेमेंट व्यवस्था का अभूतपूर्व विस्तार और वैक्सीन निर्माण में विश्व नेतृत्व हमारी क्षमताओं के प्रमाण हैं।
आज दुनिया में वर्चस्व की लड़ाई युद्धभूमि पर नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था, तकनीक और नवाचार के मोर्चे पर हो रही है। डाटा, डिजिटल नेटवर्क और उन्नत तकनीक पर नियंत्रण रखने वाले देश ही आने वाले कल की वैश्विक व्यवस्था तय करेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) इस नए समीकरण का केंद्र स्तंभ है।
यह स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, परिवहन और रक्षा-हर क्षेत्र में बदलाव ला रहा है। एआइ केवल तकनीक नहीं, बल्कि आर्थिक सशक्तीकरण और रणनीतिक क्षमता का आधार है। नैसकाम के अनुसार, 2025 तक एआइ और डाटा भारत की जीडीपी में लगभग 500 अरब डालर का योगदान कर सकते हैं।
वर्ल्ड इकोनमिक फोरम का अनुमान है कि 2030 तक एआइ लगभग तीन करोड़ नए रोजगार पैदा कर सकता है। भारत इस क्षेत्र में पीछे रहने का जोखिम नहीं उठा सकता। एआइ आधारित विभिन्न तकनीकी अनुप्रयोगों का हर क्षेत्र में आकलन करते हुए उससे अपनी क्षमताओं और उत्पादकता को बढ़ाना जरूरी है। एआइ की मदद से कृषि में पैदावार का पूर्वानुमान, स्वास्थ्य में त्वरित निदान, शिक्षा में व्यक्तिगत मार्गदर्शन, आपदा प्रबंधन में सटीक योजना बनाकर हम इन क्षेत्रों में उत्पादकता और रोजगार बढ़ा सकते हैं। केवल तकनीक का उपभोग करना पर्याप्त नहीं होगा। हमें एआइ एल्गोरिदम, भाषाई माडल और हार्डवेयर समाधान भी खुद विकसित करने होंगे। यह हमारे डिजिटल स्वदेशी आंदोलन की मजबूती के लिए भी अति आवश्यक है।
आज स्वदेशी का दायरा केवल कपड़ों या कृषि तक सीमित नहीं है। डिजिटल युग में इसका मतलब है- डाटा, साफ्टवेयर और हार्डवेयर पर आत्मनिर्भरता। सरकार के अनुसार, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय आय का 11.7 प्रतिशत थी और 2030 तक यह 20 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। यह कृषि और विनिर्माण से भी बड़ी शक्ति बन सकती है, बशर्ते हम तकनीकी नेतृत्व अपने हाथ में रखें।
भारत एआइ, बायोटेक्नोलाजी, ग्रीन एनर्जी के साथ-साथ अब क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कदम रख रहा है। भारत ने ‘नेशनल क्वांटम मिशन’ की शुरुआत की है, जिसका लक्ष्य 2031 तक क्वांटम तकनीक में वैश्विक नेतृत्व प्राप्त करना है। इस दिशा में चल रहे शोध एवं स्टार्टअप आने वाले वर्षों में डिजिटल और राष्ट्रीय सुरक्षा, नवाचार और औद्योगिक स्वावलंबन के नए द्वार खोल सकते हैं।
आज का वैश्विक परिदृश्य भी हमें इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने का संकेत देता है। ऊर्जा संकट, पर्यावरणीय चुनौतियां, आर्थिक अस्थिरता और सुरक्षा संबंधी खतरे से निपटना अब विश्व स्तर पर अनिवार्य हो चुका है। इन जटिल परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता केवल एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता का भी आधार है। भारत अपनी प्राचीन सभ्यता, लोकतांत्रिक मूल्यों और सांस्कृतिक विविधता के आधार पर टिकाऊ और समावेशी विकास माडल पेश कर सकता है।
भारत के पास आज दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल है। हमारे पास कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि यदि उन्हें सही दिशा, शिक्षा और अवसर मिले, तो वे देश की आर्थिक प्रगति को अभूतपूर्व गति दे सकते हैं। भारत इंटरनेट पर एआइ सीखने वाले छात्रों और पेशेवरों की संख्या में दुनिया में सबसे आगे है। यानी रुचि और उत्साह प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, लेकिन सीखने की संख्या के बावजूद कौशल और दक्षता के स्तर में अभी अंतर है। इसका मतलब है कि जो सीखा जा रहा है, उसे गहराई से समझने और व्यावहारिक रूप से लागू करने की क्षमता में और सुधार की आवश्यकता है।
यदि हम इस अंतर को भरने में सफल हुए, तो यह युवा शक्ति न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के लिए तकनीकी समाधान तैयार कर सकती है। भारत का लक्ष्य केवल तकनीकी उत्पादों और सेवाओं का आयात या उपभोग नहीं होना चाहिए, बल्कि स्वयं को तकनीकी निर्माता, नवप्रवर्तक और वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करना होना चाहिए।
यह तभी संभव है, जब हम सभी तकनीकी शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यमशीलता को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में अंगीकार करें। इसके लिए शिक्षा संस्थानों और अनुसंधान केंद्रों को ऐसा माहौल और संसाधन प्रदान करने होंगे, जहां उन्हें प्रयोग, नवाचार और अगली पीढ़ी की तकनीकों के विकास का पूरा अवसर मिले।
सरकार, उद्योग और अकादमिक जगत मिलकर ऐसा माहौल तैयार करें, जो तकनीकी कौशल विकास, स्टार्टअप समर्थन और रोजगार सृजन के अनुकूल हो। स्पष्ट है कि 2047 का भारत आज के निर्णयों से आकार लेगा। अगर हम तकनीकी आत्मनिर्भरता, अनुसंधान और रोजगार सृजन में सक्रिय हुए, तो अगले दो दशक हमें वैश्विक नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर देंगे।
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हमें जो स्वतंत्रता दी, हम उसका उत्तरोत्तर विस्तार करते हुए आर्थिक और तकनीकी स्वतंत्रता को उतनी ही दृढ़ता से हासिल करें। यही डिजिटल स्वदेशी का सार है, यही विकसित भारत का पथ है और यही वह विरासत होगी, जो हम आने वाली पीढ़ियों के हाथों में सौंपेंगे।
(लेखक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल और उत्तराखंड के राज्यपाल हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।