भारतीयों के प्रति जहर उगलने में खर्च हो रही है पाकिस्तान की पूरी ऊर्जा
लेख में पाकिस्तान की भारत के प्रति नफरत और उसकी अमानवीय हरकतों का वर्णन है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले और एशिया कप में भारतीय टीम द्वारा पाकिस्तान को हराने का उल्लेख किया गया है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के बेशर्मी भरे दावों और परमाणु युद्ध की धमकी का भी जिक्र है।
ए. सूर्यप्रकाश। इस साल अप्रैल में पाकिस्तानी आतंकियों ने पहलगाम में मजहब पूछकर 26 गैर-मुस्लिमों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी। पूरा देश इस घटना से शोक और आक्रोश में डूबा हुआ था, जबकि अधिकांश पाकिस्तानी इस बर्बर कृत्य की सराहना में लगे हुए थे। असल में अधिकांश पाकिस्तानी हिंदुओं के प्रति कुंठा और नफरत से भरे हुए हैं। चूंकि उनका वजूद ही नफरत पर टिका हुआ है, इसलिए वे इस भाव से बाहर निकल पाने में असमर्थ हैं। उनकी अशिष्ट भाषा भी उनकी अशिक्षा और हताशा को ही दर्शाती है।
पढ़े-लिखे टेलीविजन एंकर, सैन्य जनरल से लेकर क्रिकेटर तक भी इसी नफरती आग के शिकार हैं। इस निर्लज्ज व्यवहार का ताजा नमूना बीते दिनों तब देखने को मिला, जब भारतीय टी-20 कप्तान सूर्य कुमार यादव को पूर्व पाकिस्तानी कप्तान मोहम्मद यूसुफ ने एक टीवी कार्यक्रम में अपमानजनक शब्द कहे। इस पर एंकर या अन्य प्रतिभागी भी उन्हें टोकने के बजाय खुद भी बेशर्मी से हंसने लगे। यह पाकिस्तान के चरित्र को दर्शाता है कि यह देश पूरी तरह अमानवीय है और उसकी ऊर्जा केवल भारतीयों के प्रति जहर उगलने में खर्च हो रही है।
एशिया कप में तीन बार भारत के हाथों मुंह की खाकर तिलमिलाने वाले पाकिस्तान का दामन अतीत से ही दागदार रहा है। खुद की अलग पहचान को मुद्दा बनाकर भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान निर्माण से भी यह तबका संतुष्ट नहीं हुआ। अपने अस्तित्व में आने के बाद से पाकिस्तान का ध्यान अपनी तरक्की पर कम, भारत को नुकसान पहुंचाने पर अधिक रहा है।
वह भारत से बदला लेने के लिए इतना जुनून से भरा है कि अपने लोगों के भी निर्ममतापूर्वक दमन से बाज नहीं आता। इसका उदाहरण पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में देखने को मिल रहा है। वहां लोग बगावत की राह पर हैं। भारत को पाकिस्तान के बिगड़ते हालात से सतर्क रहना होगा।
पाकिस्तान भारत के खिलाफ कितना भी जहर उगले, उसे भारत के खिलाफ लड़ी सभी लड़ाइयों में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। 1965 के युद्ध में हारने के बाद वह हाजी पीर पास वापस करने के लिए गिड़गिड़ाया। फिर 1971 में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी सेना का सबसे बड़ा और शर्मनाक आत्मसमर्पण था। शिमला में समझौते की मेज पर भुट्टो ने इन सैनिकों और कुछ अन्य इलाके वापस करने की भीख मांगी।
1999 के कारगिल संघर्ष में घुसपैठ के उसके मंसूबों पर भारतीय सैनिकों ने पानी फेर दिया। पाकिस्तान की अमानवीयता उस समय भी उजागर हुई थी, जब उस संघर्ष में मारे गए अपने सैनिकों के शव तक स्वीकार करने से उसने इन्कार कर दिया था। इस मामले में 2025 की कहानी भी अलग नहीं, जब पहलगाम हमले के बाद पीएम मोदी ने तय कर लिया कि अब बहुत हो चुका है और पाकिस्तान को उसकी करतूत की कीमत भुगतनी ही होगी।
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान के भीतरी इलाकों में स्थित लश्कर और जैश के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। फिर भारतीय वायु सेना ने नूर खान एयर बेस सहित कई पाकिस्तानी एयर बेस और एयर स्ट्रिप्स को भी नष्ट किया। पाकिस्तान की हालत इतनी पतली हो गई कि उसने युद्धविराम की गुहार लगाई। यह बात अलग है कि उसकी धमकियों और ढोंग का सिलसिला आज तक जारी है।
पहलगाम आतंकी हमले पर पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने बेशर्मी से दावा किया कि इसे भारत के अपने लोगों ने ही अंजाम दिया और इसमें पाकिस्तानियों का कोई हाथ नहीं। पहले आतंकी हमला करना और फिर उससे पल्ला झाड़ना पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं। मुंबई हमले के बाद भी पाकिस्तान उसके पीछे अपनी भूमिका से कन्नी काटता रहा, पर अजमल कसाब के जिंदा पकड़े जाने से उसकी पोल पूरी दुनिया के सामने खुल गई।
पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले ही जनरल आसिम मुनीर ने भारत और हिंदुओं के खिलाफ जमकर जहर उगला था। जबकि पाकिस्तान के मंत्री हनीफ अब्बासी ने तो सार्वजनिक रूप से कहा था कि पाकिस्तान के पास भारत को निशाना बनाने के लिए चिह्नित 130 परमाणु वारहेड हैं। परमाणु युद्ध की विभीषिका को समझने वाला कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसी बातें नहीं करेगा।
एशिया कप से पहले पाकिस्तान के साथ मैच न खेलकर उसके बहिष्कार की मांग भी उठी थी, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण को देखते हुए भारतीय टीम उसके खिलाफ खेलने उतरी। हालांकि भारतीय टीम ने पहले से तय कर लिया था कि पाकिस्तानियों से कोई संपर्क-शिष्टाचार नहीं रखना है। कप्तान ने टास के दौरान पाकिस्तानी समकक्ष से हाथ नहीं मिलाया। खिलाड़ियों ने भी मैच के बाद विरोधियों से हाथ मिलाने के पारंपरिक शिष्टाचार से किनारा किया। उसके बाद पाकिस्तानियों की बेचैनी देखने को मिली।
उन्होंने शिकायती लहजे में हाथ-पैर तो खूब मारे, पर कहीं कोई राहत नहीं मिली। फाइनल जीतने के बाद भारतीय टीम ने पाकिस्तानी गृहमंत्री और एशियाई क्रिकेट परिषद के प्रमुख मोहसिन नकवी के हाथों ट्राफी नहीं लेने का फैसला किया। तब नकवी निर्लज्जता दिखाते हुए ट्राफी-पदक लेकर वहां से निकल गए। फाइनल में जीत के बाद जब पीएम मोदी ने यह पोस्ट किया कि ‘खेल के मैदान में भी आपरेशन सिंदूर जारी है और परिणाम भी वैसा ही रहा’ तो यह साफ हो गया कि यह मामला महज खेल तक सीमित नहीं रहा। इस पर कप्तान सूर्यकुमार यादव का जवाब भी बहुत कुछ कहता है कि ‘जब देश का नेता खुद फ्रंटफुट पर बल्लेबाजी करता है, तो अच्छा लगता है।’
एशिया कप में सहभागिता का निर्णय लेने के बाद उसे जीतना देश के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। खासतौर से पहलगाम हमले के बाद खेल के मैदान में भी उसका बदला चुकाने के लिए पाकिस्तान को कुचलना बेहद जरूरी था। इसके बावजूद भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने इस बिगड़ैल पड़ोसी के साथ अपने समीकरणों को नए सिरे से तय करे। उसे केवल चेतावनी देना ही पर्याप्त नहीं। भारत को 1965 और 1971 जैसी उदारता नहीं दोहरानी चाहिए। तभी हम सीमापार की चुनौतियों से निपट सकेंगे।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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