जागरण संपादकीय: स्वदेशी की राह, संघ प्रमुख का संबोधन सदैव ही देश की रुचि का विषय बनता है
चूंकि स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की बातें पहले भी की जा चुकी हैं और सब जानते हैं कि उनके वांछित परिणाम हासिल नहीं हुए इसलिए इस बार देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक प्रभावी रूपरेखा बननी चाहिए। यह शुभ संकेत है कि हाल में इस दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। स्वदेशी के सहारे देश को आत्मनिर्भर बनाना एक लंबी प्रक्रिया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वार्षिक विजयदशमी कार्यक्रम में संघ प्रमुख का संबोधन सदैव ही देश की रुचि का विषय बनता है। इस बार ऐसा इसलिए और अधिक रहा, क्योंकि संघ ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस विशेष अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई ऐसी बातें कहीं, जो सरकार के साथ समाज के लोगों का ध्यान खींचने वाली हैं।
इस पर आश्चर्य नहीं कि उन्होंने अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से भारत पर थोपे गए टैरिफ की चर्चा की। 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ ने भारत के समक्ष जो कठिन चुनौती खड़ी कर दी है, उसका प्रभावी ढंग से सामना स्वदेशी और स्वावलंबन की राह पर चलकर ही किया जा सकता है।
इस बात को सरकार भी रेखांकित कर चुकी है और अब संघ प्रमुख ने भी दोहरा दिया। यह समय की मांग है कि स्वदेशी और स्वावलंबन पर तब तक बल दिया जाए, जब तक वांछित सफलता न मिल जाए। जहां सरकार को स्वदेशी की राह को आसान करना होगा, वहीं समाज को सहयोग देने के लिए तत्पर रहना होगा। इस उम्मीद में नहीं रहा जाना चाहिए कि अमेरिका के साथ शीघ्र ही आपसी व्यापार समझौता हो जाएगा।
एक तो जब तक ऐसा हो न जाए तब तक चैन से नहीं बैठा जा सकता और दूसरे, यदि ऐसा हो जाए तो भी भारत को स्वदेशी और स्वावलंबन की राह पर चलना छोड़ना नहीं चाहिए। क्यों नहीं छोड़ना चाहिए, इसका संकेत संघ प्रमुख के इस कथन से मिलता है कि व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता लाचारी में नहीं बदलनी चाहिए। वास्तव में इस स्थिति से बचने का ही उपाय है स्वदेशी उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
यह ठीक है कि आज के युग में कोई देश अलग-थलग नहीं रह सकता, लेकिन वह किसी पर निर्भर रहने का भी जोखिम नहीं उठा सकता। भारत को न तो इस भरोसे रहना चाहिए कि देर-सबेर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने अड़ियल रवैये का परित्याग कर देंगे और न ही इसके कि चीन से संबंध सुधरने से उसके लिए आसानी हो जाएगी, क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि न तो अमेरिका भारत को आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है और न ही चीन।
इसकी भी अनदेखी न की जाए कि आज परस्पर मित्रता का आधार अपने-अपने आर्थिक-कूटनीतिक हित हैं। इन स्थितियों में सर्वोत्तम उपाय स्वदेशी को बल देते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाना है। चूंकि स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की बातें पहले भी की जा चुकी हैं और सब जानते हैं कि उनके वांछित परिणाम हासिल नहीं हुए, इसलिए इस बार देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक प्रभावी रूपरेखा बननी चाहिए। यह शुभ संकेत है कि हाल में इस दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। स्वदेशी के सहारे देश को आत्मनिर्भर बनाना एक लंबी प्रक्रिया है।
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