सीट बंटवारे पर टिका महागठबंधन, जिद से बढ़ सकती हैं मुश्किलें
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक 85 साल बाद बिहार में हुई। नासिर हुसैन ने दावा किया कि कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व करेगी। कांग्रेस राहुल गांधी द्वारा उठाए जा रहे सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर टिकी है। ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ कांग्रेस की चुनावी रणनीति का संकेत है।
राज कुमार सिंह। कार्यसमिति की बैठक के लिए 85 साल बाद बिहार लौटी कांग्रेस के इरादे को लेकर कोई संदेह था भी तो उसे पार्टी महासचिव नासिर हुसैन ने दूर कर दिया। उनका दावा है कि कांग्रेस जल्द ही घोषित होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के प्रचार अभियान का नेतृत्व करेगी। पटना के सदाकत आश्रम में पांच घंटे चली कार्यसमिति की बैठक में पारित प्रस्तावों में उठाए गए मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन असल मकसद विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाना और महागठबंधन में जीत की संभावनाओं वाली ज्यादा से ज्यादा सीटों के लिए दबाव ही है।
कांग्रेस की चुनावी उम्मीदें भी राहुल द्वारा उठाए जा रहे सामाजिक न्याय और वोट चोरी जैसे मुद्दों पर ही टिकी हैं। बैठक में पारित ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ कांग्रेस की चुनावी रणनीति का ही संकेत है।
जाति-संप्रदाय में बंटी बिहार की राजनीति में अपना वोट बैंक बनाए या बढ़ाए बिना आगामी चुनाव में बड़ा परिवर्तन संभव नहीं। लगभग साढ़े तीन दशक पहले मंडल-कमंडल के बीच राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में ज्यादातर ओबीसी और अल्पसंख्यक लालू यादव के पक्ष में गोलबंद हो गए तो सवर्ण जातियां भाजपा के साथ। दलितों का बड़ा हिस्सा रामविलास पासवान के साथ जुड़ गया। अपनी राजनीतिक संभावनाओं के लिए नीतीश कुमार को अति पिछड़े और महादलित का समीकरण बनाना पड़ा, जिसमें कुछ अल्पसंख्यक वर्ग भी जुड़ा।
इसी प्रक्रिया में लालू यादव के राजद का मुख्य जनाधार यादव-मुस्लिम गठजोड़ तक सिमट गया, जो अब विजयी समीकरण नहीं बनाता। दूसरी ओर, तमाम विस्तार के बावजूद भाजपा ओबीसी और दलित वर्ग में ज्यादा विस्तार नहीं कर पाई। अल्पसंख्यकों में भी भाजपा की पहुंच पसमांदा वर्ग तक ही सीमित है। इसीलिए दोनों पक्षों को सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार के जदयू की जरूरत पड़ती है, जिसकी ईबीसी, महादलित और अल्पसंख्यक वर्ग में स्वीकार्यता है। अब जब नीतीश कुमार का राजनीतिक जीवन ढलान पर है, कांग्रेस ईबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग को आकर्षित कर अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है।
अति पिछड़ा न्याय संकल्प के 10 सूत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अति पिछड़े वर्ग के सर्वांगीण विकास को ही लक्षित करते हैं, जिनमें आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक बढ़ाने से लेकर शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने और सरकारी ठेकों तक में भी 50 प्रतिशत आरक्षण देने जैसे वादे शामिल हैं।
राहुल के आरोपों की सत्यता तो किसी निष्पक्ष जांच से ही पता चल पाएगी, लेकिन कई बार सच से ज्यादा जनधारणा निर्णायक साबित होती है। वोट चोरी के आरोपों के समर्थन में राहुल ने अभी तक कर्नाटक और महाराष्ट्र के चुनाव क्षेत्रों के उदाहरण दिए हैं। जीत की संभावना के बीच हरियाणा में हार जाने की चर्चा भी वह करते रहे हैं। विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआइआर) में लाखों वोट काटे जाने को लेकर उन्होंने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ बिहार में निकाली। इससे कांग्रेस का खस्ताहाल संगठन सक्रिय हुआ।
कार्यसमिति की बैठक के जरिये कांग्रेस ने उस माहौल को बनाए रखते हुए सीट बंटवारे में मजबूत दावेदारी पेश की है। चर्चा है कि कांग्रेस ने 76 विधानसभा सीटों की सूची भी तेजस्वी यादव को इस संदेश के साथ सौंप दी है कि अगर सीट शेयरिंग में विलंब हुआ तो वह 30 सीटों पर प्रचार शुरू कर देगी। राजद बिहार विधानसभा में सबसे बड़ा दल है। फिर भी कांग्रेस उपमुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी को आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने में टालमटोल कर रही है।
2020 में हुए विधानसभा चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। राजग में सबसे शानदार प्रदर्शन भाजपा ने किया था, जबकि जदयू का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। महागठबंधन में सबसे अच्छा प्रदर्शन राजद ने किया, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। 70 सीटें लड़ने वाली कांग्रेस मात्र 19 सीटें जीत पाई। छोटे-छोटे वाम दलों का प्रदर्शन भी कांग्रेस से बेहतर रहा। ऐसे में बिहार चुनाव में सबसे अहम दोनों गठबंधनों में सीटों का बंटवारा होगा। अतीत का अनुभव बताता है कि भाजपा अपना गठबंधन बेहतर ढंग से संभाल लेती है, पर ऐसा महागठबंधन या आइएनडीआइए के बारे में नहीं कहा जा सकता।
हरियाणा में आप अलग लड़ी तो कांग्रेस एक प्रतिशत से भी कम मतों के अंतर से चुनाव हार गई। प्रतिशोधस्वरूप दिल्ली में कांग्रेस सभी सीटों पर लड़ी। कांग्रेस जीत तो एक भी सीट नहीं पाई, पर आप को सत्ता से बाहर करा दिया। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाले महाविकास आघाड़ी ने चंद महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया होता तो वैसी दुर्दशा नहीं होती। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा बिहार महागठबंधन में सीटों का बंटवारा किस तरह हो पाता है।
यदि जाति जनगणना और वोट चोरी जैसे मुद्दों से उत्साहित कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ने की जिद करेगी तो महागठबंधन में मुश्किलें बढ़ेंगी। अगर दबाव की रणनीति तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा न घोषित करने तक आगे बढ़ी, तो इसका मतलब है कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र से कोई सबक नहीं सीखा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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