विश्व के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री की ओर से एक डाक टिकट और सिक्के को स्मारक के तौर पर जारी किया जाना इस संगठन की महत्ता को रेखांकित करता है। उसके जैसे व्यापक प्रभाव वाले संगठन को यह महत्ता मिलनी ही चाहिए।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री की ओर से जो सिक्का जारी किया गया, उसके एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक अंकित है और दूसरी ओर भारत माता का चित्र। इसका अर्थ यही है कि आरएसएस भारत मां के प्रति समर्पित है। वास्तव में इस समर्पण भाव के कारण ही समय के साथ संघ का प्रभाव बढ़ा है। उसकी उपस्थिति देश के हर हिस्से में है और वह बढ़ती ही जा रही है।

ऐसा इसीलिए है, क्योंकि संघ के स्वयंसेवक निस्वार्थ सेवा भाव के परिचायक हैं। उनका एक ही ध्येय होता है भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप देश को समरस और समर्थ बनाना। वे जिस त्याग एवं समर्पण भाव से समाज और राष्ट्र सेवा के अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं, उसकी मिसाल मिलना कठिन है।

इस मिसाल के जरिये वे यही संदेश देते हैं कि राष्ट्रनिर्माण के लक्ष्य में लोगों को भी जुटना होता है। यह वह मंत्र है, जिसे सभी को आत्मसात करना चाहिए, क्योंकि किसी भी राष्ट्र का उत्थान वहां के लोगों के सहयोग से ही होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनेक सहयोगी संगठन जिस सेवा भाव से अपना कार्य करते हैं, वही उन्हें औरों से अलग करता है। अपनी स्थापना से लेकर अब तक संघ को समय-समय पर संकीर्ण उद्देश्यों से लांछित किया गया, उसके स्वयंसेवकों को प्रताड़ित किया और उनके खिलाफ षड्यंत्र भी रचे गए, लेकिन संघ अपनी विचारधारा और अपने उन मूल्यों के प्रति अडिग रहा, जिनके लिए उसकी स्थापना की गई थी।

इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी रीति-नीति से असहमत अनेक लोग उसकी सराहना करने को विवश हुए। विडंबना यह है कि इसके बाद भी उसके प्रति मिथ्या आरोपों का एक सिलसिला चलता रहता है। यह तब है, जब संघ अपने आलोचकों को मान देता है और यहां तक कि उन्हें अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करता है तथा उनके प्रश्नों के उत्तर देता है।

ऐसा वही संगठन कर सकता है, जो अपने उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट हो और जो उनकी प्राप्ति को लेकर नीर-क्षीर ढंग से काम करता हो। आखिर विश्व में कितने ऐसे संगठन हैं, जो अपने विरोधियों से भी संवाद के पक्षधर हैं?

संघ को कई बार इसलिए निशाने पर लिया जाता है कि वह राजनीति को प्रभावित करने का काम कर रहा है। आखिर जिस संगठन का समाज पर गहरा प्रभाव हो, वह किसी न किसी स्तर पर राजनीति पर तो असर छोड़ेगा ही। इस पर आश्चर्य और आपत्ति क्यों? ऐसा होना तो स्वाभाविक है।