राहुल गांधी ने एक बार फिर विदेशी धरती पर यह कहा कि भारत में लोकतंत्र पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। इस बार उन्होंने कोलंबिया में लोकतंत्र पर कथित हमलों को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बता दिया। वैसे तो राहुल गांधी एक अर्से से भारतीय लोकतंत्र को खतरे में पड़ा हुआ देख रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से वे इस खतरे को कुछ ज्यादा ही तूल दे रहे हैं।

वे इसके पहले भी अपनी विदेश यात्राओं में भारतीय लोकतंत्र के भविष्य को लेकर भय का भूत खड़ा कर चुके हैं। एक बार तो उन्होंने यह भी कह दिया था कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है और बड़े लोकतांत्रिक देश इसकी परवाह भी नहीं कर रहे हैं। इधर उन्होंने वोट चोरी का मुद्दा भी लोकतंत्र के लिए खतरे के तौर पर ही उछाला हुआ है, लेकिन इस मुद्दे की हवा निकलती दिख रही है।

बिहार में मतदाता सूची का अंतिम मसौदा जारी हुए कई दिन बीत गए हैं, लेकिन वोट चोरी का दावा करने वाले ऐसे लोगों को सामने नहीं ला पा रहे हैं, जो बिहार के नागरिक हों और जिनका नाम वोटर लिस्ट से सभी वैध दस्तावेज होते हुए भी कट गया हो। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी तब तक भारतीय लोकतंत्र को खतरे में पाएंगे, जब तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता में नहीं आ जाती।

क्या लोकतंत्र के सुरक्षित होने की गारंटी यही है कि दल विशेष यानी कांग्रेस लगातार चुनाव जीते और वह देश पर शासन भी करे? क्या देश पर शासन करना कांग्रेस का जन्मसिद्ध अधिकार है? यदि राहुल गांधी यह समझ रहे हैं कि किसी मिथ्या आरोप को दोहराते रहने से वह सच की शक्ल ले लेगा तो ऐसा होने वाला नहीं है, भले ही वे दुनिया भर में घूम-घूम कर अपने आरोप दोहराते रहें।

राहुल गांधी की समस्या केवल यह नहीं है कि वे निराधार आरोपों को तूल देते हैं और फिर उन पर टिके रहने की सामर्थ्य भी नहीं जुटा पाते, बल्कि यह भी है कि उनकी ओर से कई बार ऐसी गूढ़ या फिर पहेलीनुमा बातें कर दी जाती हैं, जिन्हें न तो समझा जा सकता है और न ही किसी को समझाया जा सकता है। कई बार तो उनके साथियों के लिए भी उनकी बातों का मतलब बता पाना कठिन होता है।

उन्होंने कोलंबिया में इंजीनियरिंग के छात्रों के बीच कार और मोटरसाइकिल के इंजन के भार में अंतर को लेकर जो विचित्र एवं अबूझ व्याख्या प्रस्तुत की, वह यदि हास-परिहास का विषय बनी तो इसके लिए वे किसी अन्य को दोष नहीं दे सकते। अपने आरोपों पर कायम न रह पाने और रह-रह कर अबूझ बातें करने के कारण ही राहुल गांधी की छवि परिपक्व नेता की नहीं बन पा रही है। यदि इससे किसी को सबसे अधिक चिंतित होना चाहिए तो कांग्रेस को। इसलिए और भी, क्योंकि राहुल गांधी ही अघोषित रूप से उसका संचालन कर रहे हैं।