जीएन वाजपेयी। अमेरिका का भारत पर 50 प्रतिशत का ऊंचा टैरिफ यही संकेत करता है कि वाशिंगटन उसे विशेष रूप से निशाना बना रहा है। उसी दौरान चीन द्वारा आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में गतिरोध पैदा किया गया। आर्थिक विकास के लिए यह खतरा गंभीर था। वर्चस्व की चुनौती और कभी-कभी ईर्ष्या का भाव आम जन से लेकर राष्ट्रों की प्रगति को बाधित करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति को जन्म देता है। भारत कई बार ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रमों का शिकार हुआ है। सौभाग्य से हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने हर बार दृढ़ता से इसका मुकाबला करने और पीछे हटने से इन्कार करते हुए देश को झुकने नहीं दिया। भारत के स्वाभिमान पर कभी आंच नहीं आई।

इस रुझान को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि जिन शक्तियों ने अपनी आर्थिक ताकत, सैन्य क्षमता, बाजार के आकार एवं महत्वपूर्ण सामग्रियों पर एकाधिकार किया है, वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल दूसरों को धमकाने में करते हैं। ये शक्तियां लोगों से लेकर राष्ट्रों को सबक सिखाने को तत्पर रहती हैं। अफसोस की बात है कि ऐसे मामलों में भारत के पास प्रतिकार के लिए ब्रह्मास्त्र नहीं है। आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की सहायता कर रहे चीन को भारत रोक नहीं पाया और अमेरिका के राष्ट्रपति रह-रहकर संघर्ष विराम का श्रेय लेने से बाज नहीं आ रहे। इन परिस्थितियों और परिदृश्य में 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के प्रधानमंत्री के संकल्प के समक्ष खतरा उत्पन्न होता दिख रहा है।

यह उचित समय है कि अपने हितों की रक्षा के लिए एक ऐसे ‘सुदर्शन चक्र’ की संकल्पना को साकार किया जाए, जो किसी भी भू-राजनीतिक, आर्थिक या ऐसी ही अन्य अनेक चुनौतियों की काट करते हुए आवश्यकता पड़ने पर प्रहार भी कर सके। व्यापक सुधारों, दृष्टिकोण में परिवर्तन और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से ही यह संभव हो सकता है। यदि संतुलन साधने और शक्ति प्राप्त करने की इस कवायद में तात्कालिक तौर पर कुछ कठिनाई भी महसूस करनी पड़ी तो उसमें कोई हर्ज नहीं। अच्छी बात है कि दीवार पर लिखी इबारत को भांपते हुए सरकार ने कुछ कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं।

इस कड़ी में जीएसटी सुधारों के साथ आयकर में कमी और उसे सुगम बनाने की पहल हुई है। अगला कदम आयात शुल्क को तार्किक बनाने के साथ उसमें कटौती का होना चाहिए। इसमें कृषि एवं डेरी उत्पादों को अपवाद के रूप में रखा जा सकता है। याद रहे कि आयात शुल्क इनपुट लागत बढ़ाते हैं। अक्सर उद्योगों को अनावश्यक संरक्षण प्रदान करते हैं। अक्षमताओं को बढ़ावा देते हैं। उत्पादों को प्रतिस्पर्धी नहीं बनने देते।

समय की आवश्यकता है कि विनिर्माण, कृषि और डेरी क्षेत्रों को उन्नत करने के लिए एक व्यापक रणनीति बनाई जानी चाहिए। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ को और सक्षम बनाकर नवाचार, अवसंरचना विकास और कौशल विकास की स्थिति सुधारी जा सकती है। इस प्रक्रिया में उन्नत तकनीकों को अपनाना, उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करना और मूल्य संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करना भारतीय उत्पादों को वैल्यू चेन में ऊपर ले जाने के साथ ही मूल्य दबाव को भी घटाएगा।

हमें यह नहीं भूलना होगा कि श्रम एवं न्यायिक जैसे दो महत्वपूर्ण सुधार लंबे समय से अटके हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत की श्रम उत्पादकता वैश्विक मानकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है और इसे जी-20 देशों में सबसे कम माना जाता है। कम वेतन के बावजूद हमारे उत्पाद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। विश्व बैंक की कारोबारी संचालन से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में एक अनुबंध को लागू करने में औसतन 1,445 दिन लगते हैं और इसमें अनुबंध की समग्र लागत का 25 प्रतिशत खप जाता है। अर्से से लंबित इन सुधारों को लागू करने के लिए तत्परता दिखाने, भ्रष्टाचार को समाप्त करने और सभी हितधारकों के बीच सहमति बनाना आवश्यक है।

एकसमान धरातल तैयार करने, ग्राहक हितों की रक्षा और बाजार के प्रवाह को बनाए रखने पर अत्यधिक जोर देने से नवाचार और उदार प्रतिस्पर्धा की राह में अवरोध उत्पन्न हुए हैं। ऐसे में सरकार द्वारा नियुक्त समिति को जल्द ही ऐसे दृष्टिकोण की अनुशंसा करनी चाहिए, जो व्यापार में सरलता, नवाचार और जीवन की सुगमता को बढ़ावा दें। चूंकि अमेरिका और चीन के साथ व्यापार ने कुछ जोखिम पैदा किए हैं, इसलिए अपने व्यापार के भौगोलिक दायरे को बढ़ाना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो चला है। सरकार कई देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों को बढ़ावा दे रही है। इन समझौतों पर जितनी जल्दी सहमति बन जाए, उतना ही बेहतर।

महंगाई नियंत्रण, घाटे में कमी, सावरिन डेट नियंत्रण और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के द्वारा वृहद आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए मोदी सरकार सराहना की पात्र है। आर्थिक स्थायित्व को देखते हुए ही वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने 18 वर्ष बाद देश की रेटिंग को अपग्रेड किया है। भारत को अपनी यह स्थिति कायम रखनी चाहिए। भू-राजनीतिक जोखिम निजी निवेश की हिचकिचाहट बढ़ा रहे हैं। इस हिचक को दूर करके उसे उत्साह में बदलना होगा। हालांकि ऐसे सभी उपायों के मामले में कुछ समय लगेगा तो इस दौरान घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए।

अमेरिका के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव के दौर में प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा और शी चिनफिंग और पुतिन के साथ सौहार्दपूर्ण मुलाकात एक कूटनीतिक मास्टर स्ट्रोक अंतरराष्ट्रीय ढांचे को प्रभावित करने की शक्ति का प्रमाण रही। इसकी धमक अटलांटिक पार तक सुनी गई। अमेरिका द्वारा व्यापार वार्ता पर नए सिरे से वार्ता शुरू करना इसका परिणाम कहा जा सकता है। हालांकि अमेरिका के मौजूदा रवैये को देखते हुए कोई भी अपेक्षा उचित नहीं होगी। इसलिए यदि भारत हर परिस्थिति में अपने हितों की सुरक्षा चाहता है तो उसे पीएम मोदी के रिफार्म, ट्रांसफार्म और परफार्म यानी सुधार, परिवर्तन और प्रदर्शन के मंत्र को ही अपनाना होगा। यही भारत को विकसित राष्ट्र बनाने और वैश्विक शक्तियों के सापेक्ष प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में उपयोगी साबित होगी।

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)