विचार: जुंबा ने खड़ी कर दी कट्टरपंथियों की खाट, वोट बैंक के लिए राजनीतिक दलों की संकुचित राजनीति
केरल देश का सबसे प्रगतिशील राज्य माना जाता है। यह आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत संपन्न है लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यहां कट्टरता बढ़ रही है। भारत को इस्लामी देश बनाने का ख्वाब देखने वाला पीएफआइ यहीं फला-फूला और सबसे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट में भर्ती होने के लिए केरल से ही तमाम युवक गए।
राजीव सचान। केरल की वामपंथी सरकार की इसके लिए सराहना होनी चाहिए कि उसने युवाओं को नशे से बचाने के लिए स्कूलों में जुंबा कराने के अपने फैसले पर कायम रहना तय किया। जुंबा नृत्य और संगीत आधारित एक एरोबिक गतिविधि है। इसे मनोरंजन के साथ-साथ सेहत और विशेष रूप से फिटनेस के लिए उपयुक्त माना जाता है।
यह दुनिया भर में लोकप्रिय है। उपयोगिता सिद्ध होने के चलते ही उसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। यह आम धारणा है कि छात्रों और युवाओं को जुंबा के प्रति आकर्षित कर उन्हें नशे एवं अन्य हानिकारक प्रवृत्तियों से दूर रखा जा सकता है। दुनिया भर में युवाओं विशेष रूप से छात्रों को ड्रग्स से बचाने के लिए जो तमाम उपाय किए जाते हैं, उनमें से एक जुंबा भी है।
इसे प्रचलित करने का श्रेय एक कोलंबियाई फिटनेस ट्रेनर अल्बर्टो “बैटो” पेरेज को जाता है। उन्होंने डांस और म्यूजिक के जरिये लोगों को फिटनेस की ट्रेनिंग देनी शुरू की। जब इस नए-अनोखे तरीके की लोकप्रियता बढ़ गई तो उन्होंने एक कंपनी बना ली। जुंबा की लोकप्रियता बढ़ने के साथ अलग-अलग देशों में उसे अपने यहां के गीत-संगीत पर आजमाना शुरू कर दिया गया। भारत में इसे बालीवुड फिल्मों के गानों के साथ भी किया जाता है। चाहें तो गूगल करके देखें और सुनें। इसे महिलाएं और बुजुर्ग भी करते हैं।
इससे इन्कार नहीं कि हाल के वर्षों में भारत में छात्रों और युवाओं के बीच नशे का चलन बढ़ा है। पहले उत्तर पूर्व के राज्यों में बड़ी संख्या में युवा नशे का शिकार बने। इसके बाद पंजाब में और अब तो कई अन्य राज्यों में ड्रग्स लेने वाले छात्रों और अमीर-गरीब युवाओं की संख्या बढ़ रही है। रेव पार्टियां आम सी हो रही हैं। केरल में ड्रग्स की समस्या को देखते हुए ही मुख्यमंत्री पी. विजयन ने स्कूलों में जुंबा करने का फैसला लिया, लेकिन कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों को जुंबा में अश्लीलता और अनैतिकता दिख गई।
कई मुस्लिम संगठनों ने स्कूलों में जुंबा कराने के केरल सरकार के फैसले का विरोध किया। किसी ने कहा कि लड़के-लड़कियां एक साथ डांस करेंगे। किसी ने कहा कि यह हमारी मजहबी मान्यताओं के खिलाफ है। ऐसा कहने वाले केरल के कुछ छात्र एवं युवा मुस्लिम संगठन भी हैं। केरल के जिन मुस्लिम संगठनों ने जुंबा को अश्लीलता आदि बढ़ाने वाला करार दिया, वे वही हैं जिन्हें योग भी रास नहीं आता। इनके लिए बुर्का तो उपयोगी और सेक्युलर किस्म का परिधान है, लेकिन साड़ी केवल हिंदू महिलाओं का परिधान और माथे पर तिलक... तो तौबा तौबा।
खुद को सेक्युलर और अपने गठबंधन को इंडिया कहने वाले दलों के नेताओं को ऐसे ही कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ बोलने में शर्म आती है। मौका मिलता है तो वे किंतु-परंतु करके कट्टरपंथी संगठनों के साथ खड़े होना पसंद करते हैं, क्योंकि इससे वोट बैंक सुरक्षित होता है। वास्तव में सेक्युलर भारत की यही हकीकत है और इसीलिए इस पर हैरानी नहीं कि आपातकाल में संविधान की प्रस्तावना में जबरन ठूंसे गए सेक्युलर शब्द की बेशर्मी से हिमायत की जा रही है। मानो आपातकाल के पहले भारत घोर सांप्रदायिक था।
हैरानी इस पर नहीं कि केरल के मुस्लिम संगठन जुंबा के खिलाफ खड़े हो गए हैं। हैरानी इस पर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक संगठन को भी इसमें खोट नजर आया। उसकी ओर से यह कहा गया कि जुंबा फिटनेस प्रोग्राम सांस्कृतिक आक्रमण है। पता नहीं वह कैसे इस नतीजे पर पहुंचा। उसने जाने-अनजाने खुद को कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के साथ ही खड़ा कर लिया।
यह धारणा मूर्खतापूर्ण है कि पश्चिम का सब कुछ बुरा है। यदि ऐसा है तो क्या उन लोगों की ओर से पश्चिम की सभी चीजों का परित्याग किया जाएगा, जो कह रहे हैं कि आखिर जुंबा की जगह योग क्यों नहीं? योग की महत्ता से इन्कार नहीं, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि छात्रों के बीच जुंबा आसानी से लोकप्रिय होने वाली एरोबिक गतिविधि है। यह अच्छा है कि केरल सरकार ने कहा कि हर मामले को सांप्रदायिक और मजहबी नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। काश वह ऐसा तब भी कह पाती, जब केरल में हमास के आतंकियों का गुणगान हो रहा था।
केरल देश का सबसे प्रगतिशील राज्य माना जाता है। यह आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत संपन्न है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यहां कट्टरता बढ़ रही है। भारत को इस्लामी देश बनाने का ख्वाब देखने वाला पीएफआइ यहीं फला-फूला और सबसे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट में भर्ती होने के लिए केरल से ही तमाम युवक गए।
समस्या यह है कि वोट बैंक के लिए कभी कांग्रेस कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का पक्ष लेती है और कभी माकपा-भाकपा आदि। यदि खुद को सेक्युलरिज्म का चैंपियन कहने वाली कांग्रेस और उसके सहयोगी सेक्युलरिज्म अर्थात पंथनिरपेक्षता यानी सर्वपंथ समभाव के प्रति तनिक भी ईमानदार हैं तो उन्हें दबे छुपे स्वरों में ही सही, केरल सरकार की प्रशंसा करनी चाहिए।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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