हाईटेक फेंसिंग से भारतीय सीमा पर डटे जवानों को मिल सकेगी राहत, कम होगा दबाव
भारत का संकट यह है कि वह चीन और पाकिस्तान के रूप में दो बेहद खतरनाक और संदिग्ध पड़ोसियों से घिरा हुआ है।
पीयूष द्विवेदी। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते। इस कथन के आलोक में भारत का संकट यह है कि वह चीन और पाकिस्तान के रूप में दो बेहद खतरनाक और संदिग्ध पड़ोसियों से घिरा हुआ है। वैसे चीन की तरफ से सीमा पर सैन्य गतिरोध के कुछ मामलों के अलावा कोई बहुत अधिक समस्या खड़ी नहीं की जाती है, लेकिन पाकिस्तान द्वारा अक्सर ही सरहद पर तैनात भारतीय जवानों पर फायरिंग की आड़ में आतंकी घुसपैठ की कोशिशें होती रहती हैं। एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2016 में 316 और 2017 में 381 बार पाकिस्तान की तरफ से देश में घुसपैठ की कोशिशें हुई हैं। इस दौरान हमारे जवानों ने वर्ष 2016 में जहां 35 आतंकियों को मौत की नींद सुलाया, वहीं 2017 में 59 आतंकियों का काम तमाम किया।
इससे साफ है कि हमारे सैनिकों की तत्परता और पराक्रम के फलस्वरूप पाकिस्तान को अपनी इन नापाक कोशिशों में अधिकतर विफलता ही हाथ लगी है। लेकिन इस पूरी कवायद में सीमा-सुरक्षा में लगे हमारे सैनिकों पर न केवल निगरानी का अतिरिक्त दबाव रहता है, बल्कि जब-तब घुसपैठियों के हमलों में हमें अपने अमूल्य सैनिकों के प्राणों की क्षति भी उठानी पड़ती है। लेकिन लगता है कि अब इस संकट से कुछ निजात मिल सकेगी, क्योंकि सरहद पर घुसपैठ की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने विदेशों की तरह ‘स्मार्ट फेंसिंग’ की तकनीक को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। गत 17 सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा भारत-पाक सीमा के साढ़े पांच-पांच किलोमीटर के दो क्षेत्रों में स्मार्ट फेंसिंग की शुरुआत की गई।
गृह मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि भविष्य में 2026 किलोमीटर के उस पूरे सीमा क्षेत्र, जिसे घुसपैठ के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है, को भी स्मार्ट फेंसिंग से युक्त किया जाएगा। इसकी शुरुआत व्यापक घुसपैठ सीमा प्रबंधन प्रणाली (सीआइबीएमएस) के तहत हुई है। कंटीले तारों की दीवार तो सीमा पर लगी है, लेकिन उसे काटकर घुसपैठिये देश में प्रवेश कर जाते हैं। परंतु अब ‘स्मार्ट फेंसिंग’ की इस तकनीकी दीवार को भेदना उनके लिए आसान नहीं होगा।
क्या है स्मार्ट फेंसिंग
स्मार्ट फेंसिंग उन्नत तकनीकी उपकरणों द्वारा खड़ी की गई एक अदृश्य दीवार होती है। एक ऐसी दीवार जिसके निकट क्षेत्र में किसी भी तत्व के आते ही उसकी सूचना संबंधित नियंत्रण कक्ष (कंट्रोल रूम) में मौजूद लोगों तक पहुंच जाती है। यह व्यवस्था न केवल जमीन, बल्कि पानी, आकाश और भूमिगत क्षेत्र में भी काम करती है। इन सभी स्थानों के लिए अलग-अलग प्रकार के अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाते हैं। जमीनी सीमा क्षेत्र के लिए हाईटेक सर्विलांस, इन्फ्रारेड कैमरे और लेजर किरणों पर आधारित अलार्म होते हैं। इन उपकरणों के जरिये न केवल घुसपैठ करने वाले के आने की सूचना मिल सकती है, बल्कि उसकी तस्वीरें आदि भी प्राप्त हो सकती हैं। आकाशीय रडार के जरिये हवाई निगरानी सुनिश्चित होती है। पानी की निगरानी के लिए सोनार (साउंड नेविगेशन एंड रेंजिंग) सेंसर काम करते हैं। सुरंगों के जरिये घुसपैठ पर रोकथाम के लिए भूमिगत सेंसर होते हैं।
यूं तो इन उपकरणों की कार्यप्रणाली एक गहरी वैज्ञानिक समझ का विषय है, लेकिन मोटे तौर पर देखें तो जमीनी निगरानी के लिए लगे उपकरणों में मुख्य उपकरण लेजर अलार्म है जिसके विषय में हम कितनी ही फिल्मों में भी देख चुके हैं। यह लेजर किरणों पर आधारित उपकरण होता है। ये किरणों अदृश्य होती हैं, लेकिन जैसे ही किसी भी व्यक्ति या वस्तु से इनका स्पर्श होता है, इनसे जुड़ा अलार्म बज उठता है। सीमा सुरक्षा में कंटीली तारों की जगह अब ये अदृश्य लेजर किरणों बिछ जाएंगी। हवाई निगरानी के लिए लगे रडार की कार्यप्रणाली को इतने से ही समझ सकते हैं कि यह निर्धारित दायरे में आने वाली चीजों के विषय में नियंत्रण कक्ष तक सूचना और संकेत भेजता है। जलीय निगरानी के लिए लगी सोनार प्रणाली नौसेना के उपयोग में आने वाली एक आधुनिक निगरानी तकनीक है।
यह तकनीक जल के भीतर या उसकी सतह पर संचरित ध्वनियों के द्वारा व्यक्ति-वस्तु के संबंध में सूचना देती है। इन सब उपकरणों द्वारा भेजी जाने वाली सूचनाओं को प्राप्त करने व उन पर कार्रवाई करने के लिए एक निर्देश व नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जाता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि सरहद पर इस अदृश्य तकनीकी दीवार के खड़े होने के बाद दुश्मन के लिए देश के भीतर दाखिल होने का कोई मार्ग शेष नहीं रह जाता। हालांकि इस परियोजना पर कितना खर्च आया है और इसके विस्तार में कितना खर्च आ सकता है, इन बातों को लेकर अभी आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।
इन देशों में है स्मार्ट फेंसिंग
भारत में स्मार्ट फेंसिंग की शुरुआत पहली बार हुई है, लेकिन दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां इस प्रणाली का कुछ समय पहले से उपयोग हो रहा है। 2014 में सऊदी अरब ने इराक से लगती अपनी सीमा पर स्मार्ट फेंसिंग लगवाई थी। इसके प्रथम चरण में नौ सौ किमी सीमा क्षेत्र में विभिन्न उपकरणों के जरिये तकनीकी दीवार खड़ी की गई थी। हालांकि इसके बाद इजरायल ने जिस ढंग से अपने सीमा क्षेत्रों में स्मार्ट फेंसिंग की वह ज्यादा प्रभावी और कारगर है। इजरायल, जो कई मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है और जिस पर जिहादी आतंक का साया हमेशा मंडराता रहता है, ने अपनी जॉर्डन सीमा पर होने वाली घुसपैठ से बचने के लिए स्मार्ट फेंसिंग का सहारा लिया है। सऊदी अरब द्वारा स्मार्ट फेंसिंग के एक साल बाद 2015 में इजरायल ने इसकी शुरुआत की थी, जिसे बाद में कई और देशों ने भी अपनाया।
बुल्गारिया-मोरक्को आदि देशों ने 2015 में ही इजरायली कंपनियों से अपने सीमा क्षेत्रों में स्मार्ट फेंसिंग करवाई थी। यहां तक कि 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी अपनी मैक्सिको से सटी 3145 किमी लंबी सीमा पर अवैध घुसपैठ से लेकर ड्रग्स वगैरह की तस्करी के कारण स्मार्ट फेंसिंग के लिए इजरायल की कंपनी से ही करार किया था। जाहिर है, स्मार्ट फेंसिंग दुनिया के कई देशों द्वारा करवाई गई है। यह भी स्पष्ट है कि इस तकनीक का महारथी देश इजरायल है और अच्छी बात यह है कि भारत में हुई स्मार्ट फेंसिंग भी इजरायली तकनीक पर ही आधारित है।
भारत के लिए कितनी है कारगर
एक मत यह भी है कि भारतीय परिस्थतियों के लिहाज से यह प्रणाली प्रभावी साबित नहीं हो पाएगी। कारण यह बताया जाता है कि भारतीय सीमा क्षेत्र इजरायल से, जहां यह तकनीक सफल रही है, बहुत अधिक विस्तृत है। दूसरी चीज कि इजरायल में इस फेंसिंग से संबंधित किसी उपकरण के खराब होने पर उसे तुरंत ठीक करने की व्यवस्था है, जबकि भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इन बातों को एकदम से खारिज तो नहीं कर सकते, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि ये सब बातें कोई स्थाई अवरोध नहीं हैं, बल्कि एक नई तकनीक को अपनाने के मार्ग में आने वाली सामान्य चुनौतियां हैं। कोई भी नई व्यवस्था लागू करने पर कुछ समय तक चुनौतियां आती ही हैं, लेकिन इसका ये अर्थ तो नहीं कि चुनौतियों से घबराकर नई चीजों की तरफ से आंखें मूंद ली जाए।
भारतीय सीमा-क्षेत्र का विस्तृत होना भी कोई विशेष समस्या नहीं है, क्योंकि ऊपर ही हम जिक्र कर चुके हैं कि अमेरिका ने 2015 में अपनी तीन हजार किलोमीटर से भी लंबी मैक्सिको सीमा पर स्मार्ट फेंसिंग करवाई थी। भारत में अगर इसका यह सीमित प्रयोग सफल रहता है तो आगे 2026 किलोमीटर सीमा-क्षेत्र में भी इस प्रणाली को अमल में लाने की योजना है, जो कि अमेरिका की तुलना में काफी कम है। ऐसे में कह सकते हैं कि इस व्यवस्था के कारगर न होने का राग सकारात्मकता में भी नकारात्मकता खोजने का ही उदाहरण है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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