डा. विशेष गुप्ता : हाल में जारी हुई वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2023 में खुशहाली के मानकों पर 150 देशों की सूची में भारत को 126वां स्थान मिला है। खुशहाली के मामले में भारत ने पिछले साल के मुकाबले इस बार तीन अंकों की बढ़त बनाई, लेकिन हैरत की बात है कि इस सूची में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को 108वें, बांग्लादेश को 118वें, श्रीलंका को 112वें, नेपाल को 78वें, म्यामांर को 72वें और चीन को 64वें पायदान पर रखकर भारत से बेहतर आंका गया है। खुशहाली से जुड़ी यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की संस्था सतत विकास समाधान नेटवर्क तैयार करती है। जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता, भ्रष्टाचार का स्तर, सामाजिक स्वतंत्रता, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, महंगाई, अर्थव्यवस्था, उद्यम एवं रोजगार के अवसर, निजी स्वतंत्रता, सामाजिक सुरक्षा और जीवन स्तर में होने वाले बदलाव जैसे मुद्दों को इसकी रैंकिंग का आधार बनाया जाता है।

जाहिर है इस रिपोर्ट में वही मानक रखे गए हैं जिन्हें लोगों को एक सामान्य जीवन जीने के लिए न्यूनतम माना गया है, परंतु अफसोस की बात है कि भारत इन पर खरा नहीं उतर पाया और हमारे पड़ोसी देश जो खुद ही अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुश्किलों और बदहाली से जूझ रहे हैं, वे खुशहाली के मामले में भारत से आगे निकलने में कामयाब हो गए।

दुनिया में खुशहाली मापने की यह रिपोर्ट कुछ संदेह पैदा करती है। चीन में लोगों को सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक आजादी भी ठीक से नहीं मिली है। कोरोना काल में दुनिया ने चीन को कठघरे में खड़ा किया। फिर भी वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत के 126वें के मुकाबले वह 64वें स्थान पर है। आर्थिक रूप से बदहाल श्रीलंका में जहां नागरिक अधिकारों को खुलेआम कुचला गया, उसे इस हैप्पीनेस की सूची में भारत से बेहतर दर्शाया गया है। पाकिस्तान में लोग भूख से बेहाल हैं, अर्थव्यवस्था आखिरी सांसें गिन रही है, उसे हैप्पीनेस के मामले में भारत से बेहतर प्रस्तुत किया गया है। बांग्लादेश की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है।

मेरा इरादा यहां किसी देश की हैप्पीनेस रिपोर्ट पर अंगुली उठाना नहीं है, मगर विकास की ओर बढ़ रहे भारत की बिना किसी सत्यता की जांच किए तथ्यों के पक्षपाती विश्लेषण के आधार पर उसकी प्रसन्नता को कम आंकना देश की राजनीतिक सत्ता को चुनौती देने से कम नहीं है। राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए भारत में इसका विरोध होना स्वाभाविक ही है।

संदर्भवश यहां विश्व में उभरते भारत से जुड़ीं हाल की दो सर्वे रिपोर्ट भी गौरतलब हैं। पहली रिपोर्ट कंसल्टिंग फर्म हैप्पीप्लस की ‘द स्टेट आफ हैप्पीनेस-2023’ है जिसमें साफ उल्लेख है कि भारत में 65 प्रतिशत लोग तुलनात्मक रूप से खुश हैं। दूसरी सर्वे रिपोर्ट इप्सोस ग्लोबल हैप्पीनेस से जुड़ी है जिसमें कहा गया है कि भारत सहित दुनिया के 73 प्रतिशत लोग अपने जीवन में संतुष्ट हैं। अभी हाल में कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं अर्थशास्त्री अरविंद पानगड़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के विशाल मोरे ने अपने शोध पत्र ‘भारत में गरीबी और असमानता-कोविड-19 के पूर्व और उपरांत’ में स्पष्ट कहा है कि कोविड के दौरान देश में असमानता कम हुई है।

देखा जाए तो यह ग्लोबल रिपोर्ट जिन मानकों को लेकर तैयार की गई है कोरोना काल तक में भारत इन पर तुलनात्मक रूप से खरा उतरा है।

पिछले नौ वर्षों में देश में गरीबी 22 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत से नीचे आ गई है। गरीबी की दर भी आज 0.8 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है। प्रति व्यक्ति आय के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार भी दोगुना हुआ है। देश में 6.53 लाख प्राथमिक स्कूलों का निर्माण हुआ है। वित्त वर्ष 2012-13 में देश में खाद्यान्न का जो उत्पादन 255 मिलियन टन था वह वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 317 मिलियन टन हो गया। कोविड से उत्पन्न विषम परिस्थितियों के बाद भी विगत वित्त वर्ष में 418 अरब डालर का रिकार्ड निर्यात हुआ।

भारत ने अपने सभी लोगों को कोरोना रोधी वैक्सीन लगाने के साथ ही दुनिया के करीब सौ देशों को वैक्सीन के साथ-साथ दवाइयों का मुफ्त वितरण भी किया। पिछले दो वर्षों में 3.40 लाख करोड़ रुपये की लागत से देश के लगभग 80 करोड़ लोगों तक जरूरी राशन पहुंचा है। इराक, यमन और अफगानिस्तान से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध तक भारत के राहत और बचाव अभियान की चर्चा पूरी दुनिया में हुई है। देश में पिछले नौ वर्षों में जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, कौशल विकास योजना और डिजिटल इंडिया एवं स्वच्छ भारत जैसी ढेरों योजनाएं कार्यान्वित की गई हैं। जहां पूरी दुनिया बूढ़ी हो चली है, वहीं भारत की गिनती इस समय विश्व में सबसे युवा देश में हो रही है। आज भारत में युवा निराश और हताश नहीं हैं। वे पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित और खुश हैं।

वास्तव में खुशहाली शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ एक मानसिक घटना भी है। शरीर की जरूरतें तो लोग जैसे-तैसे पूरी कर ही लेंगे, परंतु लोगों को वास्तविक सुख की अनुभूति मन के स्तर पर ही होती है, परंतु इस वैश्विक रिपोर्ट में जिस प्रकार भारत के विकास और खुशहाल मन को अनदेखा कर वास्तविक तथ्यों के साथ पक्षपात किया गया है, उस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पिछले दिनों जिस प्रकार केंद्र सरकार के खिलाफ कुछ अभियानों को हवा दी गई, कहीं यह रिपोर्ट भी भारत को कमतर आंकने की वही साजिश तो नहीं है? निश्चित ही वैश्विक स्तर पर खुशहाली का यह सूचकांक देश के बहुआयामी विकास का एक आईना है। मगर देश के समावेशी विकास को यदि यह आईना झुठलाता है तो इस विषय पर गंभीर चिंतन-मनन की आवश्यकता है।

(लेखक समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर हैं)