परमात्म तत्व
यह ठीक है कि हमारे वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी महत्वपूर्ण खोज की हैं, जिनके सहारे हमारी औसत आयु बढ़ गई है या फिर हम महामारियों से थोड़ा निजात पा सके हैं, लेकिन आज भी हमारा अस्तित्व बहुत हद तक हमारी प्रकृति या परमात्मा पर ही निर्भर है।
यह ठीक है कि हमारे वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी महत्वपूर्ण खोज की हैं, जिनके सहारे हमारी औसत आयु बढ़ गई है या फिर हम महामारियों से थोड़ा निजात पा सके हैं, लेकिन आज भी हमारा अस्तित्व बहुत हद तक हमारी प्रकृति या परमात्मा पर ही निर्भर है। अब हमारे मन में यह आशंका बनी रहती है कि वह परमात्मा कैसा है और कहां रहता है। जहां तक मैं समझता हूं कि इस प्रकृति की जो ऊर्जा या चेतना-शक्ति है वास्तव में वही परमात्मा है। वही एक चेतन तत्व है जो इस संपूर्ण सृष्टि के चराचर को अपनी ऊर्जा प्रदान कर सौंदर्यपूर्ण और गतिशील बनाए रखता है। नदी-नालों, झरनों-तालाबों और पत्थरों-पहाड़ों में भी यह चेतन तत्व या प्राण-ऊर्जा प्रवाहमान है। अगर ऐसा नहीं होता तो नदी-नालों में प्रवाह नहीं होता और झरनों में कलकल ध्वनि भी मुखरित नहीं हो पाती। इस चेतना के बगैर पत्थर भला चमकीले कैसे हो सकते हैं और पहाड़ इतने अडिग और चिरस्थायी कैसे बने रह सकते हैं। आपने देखा होगा कि हममें से अनेक लोग सौभाग्य और अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त अपनी अंगुलियों में विभिन्न प्रकार के चमकीले पत्थर और रत्न धारण किए रहते हैं। इसका अर्थ है कि इन निर्जीव से दिखने वाले पत्थरों में भी प्रकृति ने अपनी ऊर्जा को प्रवाहित किया है।
हम अपने गांवों के आसपास अक्सर ऐसी नदियां देखते हैं जिनमें बरसात को छोड़कर अन्य ऋतुओं में पानी नहीं ठहरता। गर्मी के दिनों में तो ये नदियां बिल्कुल सूखी रहती हैं। ऐसी नदियों के बारे में हमें अपने बड़े-बुजुर्गों से यह सुनने को मिलता है कि पहले इस नदी में सालों पानी भरा रहता था, किंतु अब यह स्थिति नहीं है। लोग यह नहीं कहते कि नदी सूख गई है, वे यह कहते हैं कि नदी मर गई है। हमारे शास्त्रों में इन निर्जीव पदार्थों और वस्तुओं के भी पूजन और आराधना का उल्लेख मिलता है। हमारे ऋग्वेद में तो सरस्वती नदी को देवी और मां कहकर भी संबोधित किया गया है। आज भी गंगा आदि नदियों की आराधना इसी भाव से किया करते हैं। तात्पर्य यह है कि यह प्राण-ऊर्जा प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है, जिसका मुख्य स्नोत सूर्य और निहारिकाओं को माना जाता है। हमारा यह सुंदर शरीर भी इन्हीं प्राकृतिक तत्वों से निर्मित हुआ है और इस दयालु प्रकृति ने अपना श्रेष्ठतम अवदान हम मनुष्यों को दिया है। इसलिए इस प्रकृति से साहचर्य के बिना हम अपने स्वास्थ्य और सौंदर्य की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
[आचार्य सुदर्शन महाराज]
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