मिताली जैन। वर्तमान समय में कैंसर भले ही एक लाइलाज बीमारी न हो, लेकिन प्रतिवर्ष लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आने के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। इस विश्वव्यापी बीमारी की जद से भारत भी अछूता नहीं है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर अर्थात आइएआरसी की रिपोर्ट तो यही बताती है। इस रिपोर्ट की मानें तो भारत में इस साल अब तक कैंसर के 11,57,294 नए मामले सामने आए हैं। यह रिपोर्ट साफ दर्शाती है कि कैंसर से निपटने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के नए मरीजों में लगभग 5,87,249 महिलाएं हैं। कैंसर के प्रकार की बात करें तो भारत के लोग सबसे अधिक ब्रेस्ट, मुंह, गर्भाशय, फेफड़े और पेट के कैंसर से पीड़ित हैं। वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च के आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में मुख और फेफड़ों व महिलाओं में स्तन कैंसर से होने वाली मृत्यु सभी कैंसर संबंधित मौतों का लगभग 50 प्रतिशत है। इस प्रकार सभी कैंसर के प्रकारों में इन कैंसरों के प्रति प्रभावी रूप से कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है।

जागरूकता जरूरी
भारत के शहरी क्षेत्रों में भले ही अधिकतर लोग इस बीमारी से भली-भांति वाकिफ हों, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसे लेकर अपने मन में तरह-तरह के भ्रम पाले हुए हैं, जिस कारण इस बीमारी का इलाज और भी अधिक कठिन हो जाता है। इसलिए जब तक लोगों को जागरूक नहीं किया जाता, तब तक इस बीमारी की रोकथाम संभव नहीं है। ग्रामीण इलाकों में लोगों का मानना है कि कैंसर का कोई इलाज संभव नहीं है या फिर कैंसर होने पर मौत निश्चित है। इस प्रकार की भ्रांतियां, सामान्य अज्ञानता व निरक्षरता आदि कैंसर के इलाज में एक बड़ी बाधा बनकर सामने आते हैं। कैंसर एक ऐसा रोग है जो करीबन 150 साल पुराना है, लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी आज तक पूरी दुनिया इसे जड़ से उखाड़ने में नाकाम रही है।

कैंसर के कारण
अगर भारत में कैंसर के होने की वजहों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि यहां पर इसकी वजह अन्य विकासशील देशों जैसी नहीं है। भारत में लोगों की अशिक्षा, कुपोषण, लड़कियों की कम उम्र में शादी व शादी के तुरंत बाद मां बन जाना, सेहत के प्रति लापरवाही, बड़ी संख्या में धूम्रपान व तंबाकू का सेवन इस बीमारी के कारण बनकर सामने आते हैं। वहीं अगर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात हो तो इस समय कैंसर भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चिंता बनकर उभर रहा है। भारत में इससे रोकथाम के लिए पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है। मानकों के अनुसार, प्रत्येक दस लाख की आबादी पर एक रेडियोथेरेपी मशीन होनी चाहिए, लेकिन भारत में प्रत्येक दस लाख आबादी पर मात्र 0.41 मशीनें ही उपलब्ध हैं। ऐसे में मरीजों को बेहतर सुविधाएं न मिल पाने के कारण उनकी अकाल मृत्यु हो जाती है।

लगातार बढ़ रहे हैं कैंसर के मामले
यहां सबसे दुखद यह है कि बीते एक दशक में पूरी दुनिया में कैंसर के मामले कम होने के स्थान पर बढ़ते ही जा रहे हैं। आइएआरसी की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में पिछले दस सालों में कैंसर के करीबन 41 प्रतिशत नए मरीज बढ़े हैं। वहीं कैंसर के कारण होने वाली मौतों में भी गिरावट आने के स्थान पर बढ़ोतरी हुई है। साल 2008 में पूरे विश्व में कैंसर के कारण जहां करीबन 76 लाख मौतें हुई थीं, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़कर 96 लाख तक पहुंच गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च की रिपोर्ट भी कहती है कि साल 2020 तक भारत में 17 लाख और नए मरीज कैंसर की चपेट में आ सकते हैं, जिनमें करीबन आठ लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु भी हो सकती है। इन रिपोर्टो से यह साफ जाहिर है कि कैंसर से जूझने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं।

स्वस्थ नागरिक से संपन्न राष्ट्र
किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके नागरिकों से ही बनता है और अगर नागरिक ही स्वस्थ न हो तो एक बेहतर राष्ट्र की कल्पना कैसे की जा सकती है। भारत में भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जा रहा हो, लेकिन इस सुधार के साथ-साथ इसे आम लोगों की पहुंच तक बेहद आसान बनाना भी उतना ही आवश्यक है। कहते हैं कि प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर अर्थात रोकथाम इलाज से बेहतर है। इसलिए यह कोशिश करनी होगी कि लोग इसकी चपेट में न आ सकें। इसके लिए जागरुकता ही एक महत्वपूर्ण और कारगर हथियार है। लोगों को यह बताने की आवश्यकता है कि कैंसर किस प्रकार फैलता है और अगर कोई व्यक्ति इसकी जद में आ जाए तो किन संकेतों के जरिये वह स्वयं इसका पता लगा सकता है।

पहचान जल्‍दी होने पर इलाज संभव
कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसकी पहचान जितनी जल्दी हो जाए, इलाज उतना ही आसान व जल्द हो जाता है। पहली स्टेज पर इसकी जानकारी होने पर मरीज को बेहद आसानी से बचाया जा सकता है। लेकिन यह बेहद दुखद बात है कि भारत में करीब 70 प्रतिशत से भी अधिक कैंसरग्रस्त लोग इसके शरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं और तीसरी या चौथी स्टेज में आ जाने के बाद अस्पताल का रुख करते हैं और इस कारण उन्हें बचा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में लोग समझते हैं कि कैंसर होने का मतलब मौत ही है।

चेतावनी भर से नहीं चलेगा काम
वर्तमान में भारत में कैंसर की जो स्थिति है, उसे देखते हुए यह साफ कहा जा सकता है कि सिर्फ बीड़ी, सिगरेट या तंबाकू के पैकेट पर चेतावनी लिख देने मात्र से ही लोगों को जागरूक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनका इस्तेमाल करने वाले अधिकतर लोग तो ऐसे हैं, जो वास्तव में इस चेतावनी को पढ़ ही नहीं सकते और जो पढ़ सकते हैं, वह भी उस ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते। इस बीमारी की रोकथाम के लिए सबसे पहले स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा। साथ ही बड़े स्तर पर अभियान के जरिये लोगों को कैंसर की पर्याप्त जानकारी व इसके लक्षणों के बारे में बताना होगा। लेकिन यह सब तभी संभव है, जब दृढ़ राजनीतिक व प्रशासनिक संकल्प लिया जाए।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)