अंततः दो हजार के नोटों को बदलने का काम शुरू हो गया। भले ही रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में सभी बैंकों को निर्देश जारी किए हों, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें लेकर वे असमंजस में हैं और इसीलिए उनके तौर-तरीकों में एकरूपता नहीं दिख रही है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में इस समस्या का समाधान हो जाए कि दो हजार के नोट बदलने और उन्हें जमा करने के मामले में किस तरह के नियमों का पालन होना है, लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं होगा।

रिजर्व बैंक ने दो हजार के नोट वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा था कि वे वैध बने रहेंगे। प्रश्न यह है कि कब तक? रिजर्व बैंक ने यह भी सूचित किया है कि नोट बदलने की समयसीमा यानी 30 सितंबर के बाद आगे आवश्यक निर्णय लिए जाएंगे। क्या तब तक उक्त प्रश्न अनुत्तरित रहेगा? जो भी हो, यह उल्लेखनीय है कि पहले दिन बैंकों में नोट बदलवाने या जमा कराने के लिए ज्यादा भीड़ नहीं दिखी। क्या इसका यह अर्थ है कि आम लोगों के पास दो हजार के अधिक नोट नहीं हैं?

लगता तो ऐसा ही है, लेकिन इसी के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सोने के दाम में उछाल आ गया है। इसके अतिरिक्त आभूषणों की खरीद में भी तेजी देखी जा रही है और डालर की खरीद में भी। इससे नोटबंदी के बाद के दिनों की याद ताजा हो रही है। तब पांच सौ और एक हजार के नोटों को बैंकों में जमा कराने के साथ आभूषणों और जमीन-जायदाद की खरीद में खपाया गया था। इसके चलते ही नोटबंदी के वांछित परिणाम नहीं मिल सके थे।

आशा की जाती है कि रिजर्व बैंक ने यह सुनिश्चित किया होगा कि दो हजार के नोट वापस लेने के उसके फैसले के पीछे जो उद्देश्य तय किए गए, वे पूरे होंगे। चूंकि दो हजार के नोट कुल करेंसी के 10 प्रतिशत के ही करीब हैं, इसलिए उन्हें वापस लेने के फैसले का अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव होगा। इसके बाद भी रिजर्व बैंक को उन तत्वों को सफल नहीं होने देना चाहिए, जो दो हजार के नोटों को मनचाहे तरीके से खपाने में लगे हुए हैं।

इससे यही पता चलता है कि दो हजार के नोट कालेधन का जरिया बना लिए गए थे। शायद इसी कारण कई वर्ष पहले उनकी छपाई बंद कर दी गई थी। आम लोगों के बीच उनका प्रचलन भी कम हो गया था, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि कालेधन वालों ने उनकी जमाखोरी नहीं की। यदि दो हजार के नोट वापस लेने के फैसले के बाद भी कालेधन वालों पर अंकुश नहीं लगता तो इससे यही साबित होगा कि यदि सरकार और रिजर्व बैंक डाल-डाल हैं तो वे पात-पात। अच्छा होगा कि काले धन की अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने के नए उपाय खोजे जाएं।