अशांत जादवपुर
जादवपुर विश्वविद्यालय कैंपस में एक फिल्म दिखाने की घटना को केंद्र कर प्रख्यात शिक्षा प्रतिष्ठान एक बार फिर अशांत हो उठा है। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने क्षुब्ध होकर कहा कि जादवपुर विश्वविद्यालय अशांति का केंद्र बन गया है।
जादवपुर विश्वविद्यालय कैंपस में एक फिल्म दिखाने की घटना को केंद्र कर प्रख्यात शिक्षा प्रतिष्ठान एक बार फिर अशांत हो उठा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ओर से विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी फिल्म बुद्धा इन ए ट्राफिक जाम के प्रदर्शन को लेकर आयोजकों और छात्रों के बीच संघर्ष हुआ। हंगामे के दौरान आयोजक पक्ष के कुछ सदस्यों ने कथित तौर पर कुछ छात्राओं के साथ छेडख़ानी की। छात्रों ने छेडख़ानी करनेवाले चार युवाओं को पकड़ लिया और विश्वविद्यालय परिसर में कैद कर रखा। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति सुरंजन दास खुद बीच बचाव करने के लिए घटना स्थल पर गए। उन्होंने हस्तक्षेप किया लेकिन छात्रों के गिरफ्त में आए छेडख़ानी करनेवाले चार सदस्यों के विरुद्ध थाना में रिपोर्ट कर्ज करने की शर्त पर उन्हें छोड़ा गया। इस घटना को केंद्र कर लगातार दूसरे दिन शनिवार को भी विश्वविद्यालय परिसर अशांत रहा। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने क्षुब्ध होकर कहा कि जादवपुर विश्वविद्यालय अशांति का केंद्र बन गया है। उन्होंने कहा कि एक समय यह विश्वविद्यालय उत्कृष्टता का केंद्र था लेकिन अब यह अशांति का केंद्र बन गया है। विश्वविद्यालय प्रबंधन को इस बारे में कड़ा कदम उठाना चाहिए। राज्यपाल ने पूरे प्रकरण पर कुलपति सुरंजन दास से रिपोर्ट तलब की।
ऐसा कहा जा रहा है कि फिल्म में चरमपंथी वामपंथी संगठनों द्वारा छात्रों पर गलत तरीके से प्रभाव जमाने का प्रसंग आया है। इसलिए छात्रों ने फिल्म की स्क्रीनिंग का विरोध किया। सवाल उठता है कि छात्रों के संबंध में विवाद पैदा करनेवाली फिल्म को विश्वविद्यालय परिसर में स्क्रीनिंग की अनुमति किसने दी। हालांकि छात्रों द्वारा कड़ा प्रतिवाद करने से फिल्म की स्क्रीनिंग बंद हो गयी और दोनों पक्षों में संघर्ष हुआ। आयोजकों ने पहले विश्वविद्यालय के हॉल में फिल्म की स्क्रीनिंग की अनुमति ली थी। लेकिन बाद में हॉल के प्रबंधकों ने अनुमति रद कर दी। उसके बाद आयोजकों ने विश्वविद्यालय कैंपस में ही फिल्म दिखाने की व्यवस्था की। फिल्म प्रदर्शित होने पर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। दरअसल आयोजको को भी पता था कि वहां फिल्म के प्रदर्शन पर विरोध होगा। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आयोजकों ने जबरन फिल्म प्रदर्शित की जो कड़ा विरोध करने पर बंद हो गई और विवाद ने अंतत: संघर्ष का रूप ले लिया। जादवपुर में छात्र आंदोलन के नाम पर उच्छंृखलता कोई नई बात नहीं है। विश्वविद्यालय में देर रात तक कुलपति को घेर कर रखने का उदाहरण है। छात्र आंदोलन के उग्र होने पर अक्सर जादवपुर विश्वविद्यालय में पुलिस के घुसने का उदाहरण भी भरा पड़ा। विश्वविद्यालय में संघर्ष की नौबत नहीं आने देने के लिए सभी पक्षों को संयत रहना होगा। संघर्ष का लाभ उठाकर छात्राओं के साथ छेडख़ानी और बदसलूकी जघन्य अपराध है। विश्वविद्यालय प्रबंधन को भी इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर सतर्क रहना चाहिए।
[स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल]














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