इस पर आश्चर्य नहीं कि विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस को मोदी सरकार के 11 वर्षों का काम बिल्कुल भी रास नहीं आया। कांग्रेस नेताओं ने मोदी सरकार की तीसरी पारी के पहले साल के कार्यकाल के कामकाज को भी खारिज करने का ही काम किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस ने हर संस्था को कमजोर करने के साथ उनकी स्वतंत्रता पर हमला किया है।

उनके अनुसार मोदी सरकार ने 11 साल बर्बाद कर दिए और इस कालखंड में उसने संविधान के पन्नों पर केवल तानाशाही की स्याही पोती है। कांग्रेस नेता ऐसे आरोप पहले भी लगा चुके हैं। वे कुछ नया नहीं कह सके, लेकिन इस पर हैरानी है कि खरगे मोदी सरकार पर तानाशाही के रास्ते पर चलने का आरोप तब लगा रहे हैं, जब चंद दिनों बाद ही देश में आपातकाल थोपने के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं।

इसका मतलब है कि कांग्रेस नेता मोदी सरकार पर नए सिरे से पुराने आरोप लगाते समय यह भी ध्यान नहीं रखते कि उन्हें कब क्या कहना चाहिए। यह और कुछ नहीं, विरोध के लिए विरोध की राजनीति का ही परिचायक है। शायद इसी कारण दिल्ली में युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी सरकार को हर मोर्चे पर नाकाम बताते हुए अपने कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन किया और इस दौरान प्रधानमंत्री का पुतला भी फूंका।

लोकतंत्र में यह सब चलता रहता है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या विपक्ष को सरकार की आलोचना इसी तरह करनी चाहिए? यदि किसी को इस आलोचना में सकारात्मकता अथवा रचनात्मकता दिखती है तो फिर नकारात्मकता किसे कहते हैं?

अच्छा होता कि विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस मोदी सरकार के 11 साल के कामकाज की गहन समीक्षा करते समय इसी अवधि में अपने कामकाज की भी परख करती और यह देखती कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के अलावा मुख्य विपक्षी दल के रूप में उसने क्या हासिल किया है?

यह प्रश्न उसे अपने आप से करना चाहिए। ऐसा शायद ही हो, लेकिन एक अच्छे लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच इतने कटु संबंध नहीं होने चाहिए कि वे राजनीतिक दुश्मन जैसे दिखें। लोकतंत्र में सत्तापक्ष के साथ ही विपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दोनों को रथ के पहियों की संज्ञा दी जाती है। वर्तमान में अपने देश में ऐसी संज्ञा नहीं दी जा सकती।

विपक्ष बिना विचारे सरकार के हर फैसले का विरोध ही करने को उतावला रहता है। यह ठीक नहीं। इसका नुकसान दल विशेष को नहीं, देश को हो रहा है। उचित होगा कि सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता आपसी संपर्क और संवाद के जरिये अपने रिश्तों को ठीक करने की दिशा में आगे बढ़ें। यह ध्यान रहे कि ताली दोनों हाथ से बजती है।