भ्रष्टाचार का पुल, सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट की यह दुर्गति है तो अन्य परियोजनाओं का क्या
बिहार सरकार कुछ भी कहे इस पुल का दोबारा गिर जाना उसकी बदनामी कराने वाला है और इसके लिए वह अन्य किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती। पुल के गिरने पर बिहार सरकार की प्रतिक्रिया निराश करने वाली है।
बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर निर्माणाधीन पुल का दूसरी बार ढहना भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। शर्मनाक केवल यह नहीं कि यह निर्माणाधीन पुल दूसरी बार गिरा, बल्कि यह भी है कि यह नौ साल से बन रहा है, लेकिन पूरा होने का नाम नहीं ले रहा। यह लेट-लतीफी इसलिए हैरान करने वाली है कि अभी हाल में संसद का नया भवन तैयार हुआ है। यह करीब ढाई वर्ष में बनकर तैयार हो गया।
क्या यह विचित्र नहीं कि संसद का नया भवन तो लगभग ढाई वर्ष में बन गया, लेकिन एक पुल नौ वर्ष में भी नहीं बन पाया? यह तब है, जब इस पुल को नीतीश सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। जब सरकार की प्राथमिकता वाले प्रोजेक्ट की यह दुर्गति है तो यह सहज ही समझा जा सकता है कि अन्य परियोजनाओं की क्या स्थिति होगी?
बिहार सरकार कुछ भी कहे, इस पुल का दोबारा गिर जाना उसकी बदनामी कराने वाला है और इसके लिए वह अन्य किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती। पुल के गिरने पर बिहार सरकार की प्रतिक्रिया निराश करने वाली है। आखिर यह कहने का क्या अर्थ कि ठीक से नहीं बन रहा था, इसलिए गिर जा रहा है? प्रश्न यह है कि ठीक से न बनने की जवाबदेही किसकी है? इस पुल के फिर से गिर जाने से यह भी पता चलता है कि बिहार बदहाली से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहा है? इस पुल के ढांचे का दूसरी बार गिरना यह भी बताता है कि जब यह पहली बार गिरा तो जरूरी सबक सीखने से इन्कार किया गया।
भागलपुर को खगड़िया से जोड़ने वाले पुल के दूसरी बार गिर जाने से यह जानना कठिन है कि अब यह कब तक बनकर तैयार होगा और उसकी लागत में कितनी वृद्धि होगी? यह तय है कि जो भी वृद्धि होगी, वह जनता के पैसे की बर्बादी ही होगी।
इस पुल के दूसरी बार गिर जाने को महज दुर्योग कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं की जा सकती, क्योंकि बिहार में इसके पहले भी कई निर्माणाधीन या फिर नए बने पुल ढह चुके हैं। इसका मतलब है कि निर्माण परियोजनाओं में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। ऐसा तब होता है, जब भ्रष्ट तत्वों के गठजोड़ पर लगाम लगाने से इन्कार करने के साथ यह देखने से बचा जाता है कि निर्माण परियोजनाएं समय से और सही तरीके से क्यों नहीं पूरी हो रही हैं?
वैसे तो सड़कों, पुलों आदि के निर्माण में भ्रष्टाचार और उनकी गुणवत्ता की अनदेखी एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, लेकिन यह तो हद है कि कोई निर्माणाधीन पुल दो-दो बार गिर जाए। समझना कठिन है कि जब अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए निर्माण आज भी अपनी मजबूती की गवाही दे रहे हैं, तब निर्माणाधीन परियोजनाएं पूरी होने के पहले ही क्यों ध्वस्त हो जा रही हैं?