जागरण संपादकीय: कानून की संवैधानिकता, पूरी परख के बाद ही फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने विचार के लिए जो तीन बिंदु चुने हैं वे हैं वक्फ संपत्तियों को गैर अधिसूचित करने की प्रक्रिया वक्फ बोर्डों एवं केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और सरकारी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत करना। इन तीन बिंदुओं पर केंद्र सरकार पहले ही यह आश्वासन दे चुकी है कि इन पर यथास्थिति बनी रहेगी।
संशोधित वक्फ कानून पर सुनवाई के समय इस कानून को असंवैधानिक, मनमाना साबित करने और उस पर अंतरिम रोक लगाने पर जोर देने वाली दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट का इस निष्कर्ष पर पहुंचना संतोषजनक है कि संसद से पारित कानून संवैधानिकता की धारणा पर टिके होते हैं और जब तक इसका ठोस आधार न हो कि ऐसा नहीं है, तब तक अंतरिम राहत देना ठीक नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अंतरिम राहत पाने के लिए बहुत ठोस और स्पष्ट आधार पेश करना होता है। पता नहीं कि वक्फ कानून को असंवैधानिक बता रहा पक्ष ऐसे ठोस एवं स्पष्ट आधार पेश कर सकेगा या नहीं, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि उसकी कोशिश येन-केन प्रकारेण इस कानून को सिरे से खारिज कराने की है।
इसका संकेत इससे मिला कि वक्फ कानून को अनुचित, असंवैधानिक बताने के लिए ऐसी भी दलीलें दी गईं, जिनका कोई औचित्य नहीं बनता। इसके अतिरिक्त उन विषयों से इतर भी जाने की कोशिश की गई, जिन्हें सुनवाई के लिए तय किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने विचार के लिए जो तीन बिंदु चुने हैं, वे हैं वक्फ संपत्तियों को गैर अधिसूचित करने की प्रक्रिया, वक्फ बोर्डों एवं केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और सरकारी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत करना। इन तीन बिंदुओं पर केंद्र सरकार पहले ही यह आश्वासन दे चुकी है कि इन पर यथास्थिति बनी रहेगी।
कहना कठिन है कि वक्फ कानून की संवैधानिकता पर विचार कर रहा सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचेगा, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी कानून पर कोई निर्णय उसकी संवैधानिकता की पूरी परख करके ही दिया जाना चाहिए। वैसा कदापि नहीं होना चाहिए, जैसा तीन कृषि कानूनों के मामले में हुआ था।
इन कानूनों की संवैधानिकता की परख किए बिना ही उनके अमल पर रोक लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के विरोधियों को यही संदेश दिया था कि वे सही हैं। इसी कारण कृषि कानून विरोधी आंदोलन लंबा खिंचा और अंततः सरकार को न चाहते हुए भी उन्हें वापस लेने का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला करना पड़ा।
विश्व का कोई कानून ऐसा नहीं होता, जिसे परिपूर्ण कहा जा सके। यदि किसी कानून में कोई कमी-विसंगति हो तो उसे दूर किया जाना चाहिए, न कि पूरे कानून को ही खारिज कर दिया जाना चाहिए। संशोधित वक्फ कानून के विरोधी कुछ भी दावा और दुष्प्रचार करें, पुराना कानून खामियों से भरा ही नहीं, वक्फ बोर्डों को मनमाने एवं दमनकारी अधिकार देने वाला भी था। इसके न जाने कितने ऐसे हैरान करने वाले प्रमाण और पीड़ित लोग बीते तीन-चार महीनों में ही सामने आए, जिनकी अनदेखी संसद में बहस के दौरान विपक्षी नेता भी नहीं कर सके।














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